जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम के शासन काल में 1760-61 ईस्वी के लगभग वर्तमान श्रीमाधोपुर के निकट हाँसापुर (वर्तमान में हाँसपुर) तथा फुसापुर (वर्तमान में पुष्पनगर) के सामंतो ने विद्रोह करके कर देना बंद कर दिया था।
इन विद्रोही सामंतो का दमन करने के लिए महाराजा सवाई माधोसिंह ने अपने प्रधान दीवान नोपपुरा निवासी बोहरा राजा श्री खुशाली राम जी को सैन्य टुकड़ी के साथ भेजा।
इस अभियान के लिए बोहरा जी ने चौपड़ बाजार में स्थित वर्तमान शिवमंदिर के निकट अपना डेरा लगाया था। उस समय इस जगह पर एक तालाब हुआ करता था।
एक दिन बोहरा जी ने इस तालाब की पाल पर एक खेजड़ी की डाली आरोपित की जो कि धीरे-धीरे हरी भरी होकर वृक्ष का रूप लेने लग गई। तालाब किनारे इस प्रकार की ऊर्वरा भूमि को देखकर बोहरा जी के मन में इस स्थान पर नगर बसाने की अभिलाषा जागृत हुई।
Foundation of shrimadhopur
तत्पश्चात 1761 में वैशाख शुक्ल तृतीय (अक्षय तृतीया) को बोहरा राजा श्री खुशाली राम जी ने श्रीमाधोपुर नगर की स्थापना उसी खेजड़ी के वृक्ष की जगह पर की।
यह खेजड़ी का पेड़ आज भी नगर के बीचो बीच चौपड़ बाजार में वर्तमान शिवालय परिसर के अन्दर हनुमान मंदिर में स्थित है। इस पेड़ के निकट ही हनुमान जी की उत्तरमुखी मूर्ति तथा चर्तुमुखी शिवलिंग भी स्थित है।
Chaturmukhi shiling in shiv mandir
मंदिर के पुजारी ओमप्रकाश शर्मा के अनुसार श्रीमाधोपुर की स्थापना के समय इस शिवमंदिर में चतुर्मुखी शिवलिंग की स्थापना हुई थी।
इसके कुछ वर्षों पश्चात इस परिसर के ऊपर दूसरा शिवमंदिर निर्मित हुआ जिसमे चर्तुमुखी शिवलिंग के साथ-साथ माता गोरी, अष्टधातु की माता पार्वती, गणेश जी तथा नंदी की मूर्तियाँ भी स्थापित की गई।
Parvati and gori idols are together in shiv mandir
इस मंदिर की शिव पंचायत की सबसे खास बात यह है कि यहाँ माता पार्वती तथा माता गोरी की मूर्ति एक साथ है तथा कार्तिकेय की मूर्ति नहीं है जबकि सभी जगह शिव पंचायत में माता गोरी की जगह कार्तिकेय की मूर्ति होती है। मंदिर में प्रवेश द्वार पर सीढियों के निकट द्वारपाल के रूप में कीर्तिक स्वामी की मूर्ति मौजूद है।
माता पार्वती की अष्टधातु की मूर्ति बेशकीमती है जिसका खुलासा कुछ समय पूर्व इस मूर्ति के चोरी हो जाने पर हुआ। मूर्ति के बरामद हो जाने पर यह पता चला कि अन्तराष्ट्रीय बाजार में इस चमत्कारी मूर्ति की कीमत करोड़ों रुपये में आँकी गई है।
घटना के पश्चात अब मंदिर की सुरक्षा भी काफी बढ़ा दी गई है जिनमे सीसीटीवी कैमरों के साथ-साथ चैनल गेट भी लगाए गए हैं।
Suggestions
यह मंदिर एक मंदिर ना होकर वह पावन भूमि है जहाँ से श्रीमाधोपुर कस्बे की नींव रखी गई। हम सभी श्रीमाधोपुर वासियों को प्रत्येक अक्षय तृतीया के दिन इस स्थान पर इकठ्ठा होकर इस दिन को धूमधाम से श्रीमाधोपुर की स्थापना दिवस के रूप में मनाना चाहिए।
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Ramesh Sharma
M Pharm, MSc (Computer Science), MA (History), PGDCA, CHMS
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