हे बीजेपी के तारणहार तुम कब प्रचार करने आओगे
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भाइयों बहनों, मैं आपका प्रधान सेवक बोल रहा हूँ
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सोशल मीडिया के सिपाही - कविता में युवाओं के साथ-साथ तथाकथित राष्ट्र भक्तों के देशप्रेम को रेखांकित किया गया है.
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फूलों को महक दी कुदरत ने
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पकौड़ा पॉलिटिक्स के बीच पिसता हुआ युवा - इस कविता में पकौड़ा पॉलिटिक्स की वजह से युवाओं के दिलों की व्यथा को व्यक्त किया गया है. राजनेताओं द्वारा पकौड़े तलने को एक रोजगार माने जाने पर आज के युवाओं की सोच को दर्शाया गया है.
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उदयपुर की कॉलेज लाइफ फिर से जिऊँ - कविता में उदयपुर शहर में कॉलेज पढ़ते समय की जिन्दगी को शब्दों में पिरोया है. यह कॉलेज लाइफ नब्बे के दशक की है जिसमे विद्यार्थी जीवन के गुजरे हुए सुनहरे दिनों का चित्रण है.
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मैं लड़की हूँ इसमें मेरा कसूर क्या है - कविता में एक लड़की की बचपन से लेकर विवाह के पश्चात तक की भावनाओं को रेखांकित किया गया है.
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रातों का सूनापन और सन्नाटा
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जो तुम होती पूर्णमासी के चाँद के माफिक - हिंदी कविता में एक लड़की को विभिन्न उपमाओं के साथ कल्पित किया गया है.
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दिल यही पूछता है कि मेरा घर कौनसा है - इस विडियो में यह दर्शाने की कोशिश की गई है कि एक लड़की बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक अपने घर के विषय में कैसे-कैसे विचारों का सामना करती है.
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आज वो मेरी याद में आँसू बहा रहे हैं - इस विडियो मृत्यु के पश्चात जब आत्मा अपने शरीर के इर्द गिर्द रहकर जो दृश्य देखती है और सोचती है, उसकी कल्पना की गई है.
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मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे - इस कविता में इंसान के मन में अपने जीवन की अंतिम घडी में उमड़ने वाले विचारों की कल्पना कर उन्हें रेखांकित किया गया है.
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अलसुबह की भोर - कविता में अलसुबह की भोर के विभिन्न रूप का विश्लेषण किया गया है. अलसुबह की भोर सभी के लिए ऊर्जावान और उमंग से भरा हुआ नया सवेरा लेकर आती है.
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बचपन की बेफिक्री और भोलापन - इस हिंदी कविता में बचपन की बेफिक्री और भोलेपन को शामिल करते हुए बच्चों की निष्फिक्र अल्हड़ता के बारे में बताया गया है.
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हिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है
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यही जवानी का गुरुर है - कविता में उन भावनाओं को रेखांकित किया गया है जो बचपन के पश्चात जवानी के जोश के साथ-साथ दिल में पैदा होने लगती है.
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शायद यही बुढ़ापा है - इस कविता में यौवन की बहार बीत जाने के पश्चात आने वाले पतझड़ रुपी बुढ़ापे के सन्दर्भ में विचारों की कल्पना की गई है.
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