अब तक किन राजाओं के अधिकार में रहा चित्तौड़गढ़? - Chittorgarh Fort

अब तक किन राजाओं के अधिकार में रहा चित्तौड़गढ़? - Chittorgarh Fort, इसमें चित्तौड़गढ़ किले के इतिहास के साथ इस पर शासन करने वाले राजाओं की जानकारी दी है।

Chittorgarh Fort

चित्तौड़गढ़ किले के निर्माण की अगर बात की जाए तो इसका निर्माण महाबली भीम द्वारा करवाया हुआ माना जाता है। बाद में सातवीं सदी में इसके निर्माण के तार मौर्य वंशी राजा चित्रांगद के साथ भी जुड़े हुए हैं। इसी वजह से पहले इस किले को चित्रकूट नाम से जाना जाता था।

7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग (ह्वेन त्सांग) ने चित्तौड़गढ की यात्रा की थी। अपनी इस यात्रा के विवरण में इसने चित्तौड़गढ़ को चिकिटो नाम से संबोधित किया है।

8वीं शताब्दी में गुहिल वंश के बप्पा रावल ने मौर्य वंश के अंतिम शासक मानमोरी या मान मौर्य को युद्ध में पराजित करके चित्तौड़गढ़ के किले पर अपना अधिकार किया।

मालवा के परमार राजा पृथ्वीवल्लभ मुंज ने इसे गुहिलवंशियों से छीन लिया और इस पर ग्यारहवीं शताब्दी में राजा भोज के बाद तक मालवा के परमारों का कब्जा रहा।

12वीं शताब्दी में गुजरात के सोलंकी राजा जयसिंह (सिद्धराज) ने मालवा के यशोवर्मन को हराकर मालवा पर कब्जा कर लिया जिस वजह से चित्तौड़ पर भी गुजरात के सोलंकी राजाओं का अधिकार हो गया।

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इसी शताब्दी में 1174 ईस्वी के लगभग मेवाड़ के रावल सामंत सिंह ने गुजरात के सोलंकी राजा को हराकर चित्तौड़ पर वापस गुहिल वंशियों का शासन स्थापित किया। रावल सामंत सिंह का विवाह अजमेर के पृथ्वीराज चौहान की बहन से हुआ था और ये तराइन के दूसरे युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे।

तेरहवीं शताब्दी में 1222 से लेकर 1229 ईस्वी तक मेवाड़ की तत्कालीन राजधानी नागदा पर दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश के आक्रमण हुए। 1229 ईस्वी में नागदा के पास भूताला के युद्ध में गुहिल वंशी रावल जैत्र सिंह की पराजय होने के बाद इल्तुतमिश की सेना ने पूरा नागदा नष्ट कर दिया।

भूताला के युद्ध के बाद रावल जैत्र सिंह ने नागदा को हमेशा के लिए छोड़ कर चित्तौड़ को अपनी राजधानी बनाया।

1303 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलगी ने चित्तौड़ पर आक्रमण करके रावल रतन सिंह को हराकर दुर्ग पर कब्जा किया और इसे अपने पुत्र खिज्र खाँ को सौंप दिया। खिज्र खाँ इस गढ़ में कुछ वर्षों तक रुका और वापसी पर इसने चित्तौड़ का राजकाज जालौर के मालदेव सोनगरा को सौंप दिया।

1335 ईस्वी के लगभग नागदा के निकट सिसोदा गाँव के गुहिल वंशी हम्मीर सिंह ने चित्तौड़ पर कब्जा किया और इसके बाद गुहिल वंशियों को सिसोदिया कहा जाने लगा। 1568 ईस्वी में अकबर के आक्रमण के बाद इस दुर्ग पर मुगलों का कब्जा हो गया।

लगभग सौलहवीं सदी तक यह किला मेवाड़ की राजधानी के रूप में रहा। यहाँ पर कई परम प्रतापी राजाओं का राज रहा जिनमे रावल रतन सिंह, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, महाराणा उदय सिंह आदि प्रमुख है। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के जीवन का काफी समय यहाँ पर गुजरा है।

इस तरह हम देख सकते हैं कि अपने निर्माण के बाद चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर मेवाड़ के गुहिलों (गुहिल वंश और सीसोदिया वंश), मालवा के परमारों (परमार वंश), गुजरात के सोलंकियों (चालुक्य वंश), अजमेर के चौहानों के साथ दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन के साथ मुगल शासक अकबर का कब्जा रहा है, इसलिए यहाँ की शिल्प कला पर इन सभी राजवंशों का प्रभाव भी साफ नजर आता है।


डिस्क्लेमर (Disclaimer)

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रमेश शर्मा

नमस्ते! मेरा नाम रमेश शर्मा है। मैं एक रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट हूँ और मेरी शैक्षिक योग्यता में M Pharm (Pharmaceutics), MSc (Computer Science), MA (History), PGDCA और CHMS शामिल हैं। मुझे भारत की ऐतिहासिक धरोहरों और धार्मिक स्थलों को करीब से देखना, उनके पीछे छिपी कहानियों को जानना और प्रकृति की गोद में समय बिताना बेहद पसंद है। चाहे वह किला हो, महल, मंदिर, बावड़ी, छतरी, नदी, झरना, पहाड़ या झील – हर जगह मेरे लिए इतिहास और आस्था का अनमोल संगम है। इतिहास का विद्यार्थी होने की वजह से प्राचीन धरोहरों, स्थानीय संस्कृति और इतिहास के रहस्यों में मेरी गहरी रुचि है। मुझे खास आनंद तब आता है जब मैं कलियुग के देवता बाबा खाटू श्याम और उनकी पावन नगरी खाटू धाम से जुड़ी ज्ञानवर्धक और उपयोगी जानकारियाँ लोगों तक पहुँचा पाता हूँ। एक फार्मासिस्ट होने के नाते मुझे रोग, दवाइयाँ, जीवनशैली और हेल्थकेयर से संबंधित विषयों की भी अच्छी जानकारी है। अपनी शिक्षा और रुचियों से अर्जित ज्ञान को मैं ब्लॉग आर्टिकल्स और वीडियो के माध्यम से आप सभी तक पहुँचाने का प्रयास करता हूँ। 📩 किसी भी जानकारी या संपर्क के लिए आप मुझे यहाँ लिख सकते हैं: ramesh3460@gmail.com

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