दरवाजे वाले बालाजी का इतिहास - Darwaje Wale Balaji in Hindi

Darwaje Wale Balaji in Hindi, इसमें श्रीमाधोपुर के दरवाजे वाले बालाजी के प्राचीन मंदिर के साथ ऐतिहासिक दरवाजे के बारे में सम्पूर्ण जानकारी दी गई है।

Darwaje Wale Balaji in Hindi

श्रीमाधोपुर नगर की स्थापना 1761 ईस्वी में वैशाख शुक्ल तृतीय (अक्षय तृतीय) के दिन जयपुर राज दरबार के प्रधान दीवान बोहरा राजा श्री खुशाली राम जी ने ऐतिहासिक खेजड़ी के वृक्ष के नीचे की थी।

यह खेजड़ी का वृक्ष आज भी चौपड़ बाजार में शिवालय के पीछे बालाजी के मंदिर के निकट स्थित है। श्रीमाधोपुर नगर का विन्यास नगर नियोजन की वैज्ञानिक पद्धति को पूर्णतया ध्यान में रखकर किया गया था।

इसके अनुसार नगर के चारों तरफ परकोटा बनाना तय हुआ तथा उसके लिए चारों दिशाओं में बारह बुर्ज तथा चार विशाल दरवाजों का निर्माण करवाया जाना प्रस्तावित था।

नगर की स्थापना के साथ-साथ ही प्रथम दरवाजे का निर्माण कार्य नगर की दक्षिण दिशा में हो गया था। इस दरवाजे का निर्माण प्रथम बुर्ज के निर्माण कार्य के लगभग साथ-साथ ही आरम्भ हो गया था। उस समय यह दरवाजा श्रीमाधोपुर शहर का प्रमुख प्रवेश द्वार था।

नगर में आने जाने वाले लोग सबसे पहले बालाजी का आशीर्वाद ले सके इस वजह से इस दरवाजे में बालाजी का एक मंदिर स्थापित किया गया जिसके कारण इस मंदिर को दरवाजे वाले बालाजी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में पश्चिम मुखी हनुमान जी की एक भव्य तथा प्राचीन मूर्ति स्थापित है।

वर्तमान में यह मंदिर तथा इसके साथ जीर्ण शीर्ण अवस्था में दरवाजा श्रीमाधोपुर कस्बे की पश्चिम दिशा में बावड़ी रोड़ पर महावीर दल के पास स्थित है। इस दरवाजे से कुछ मीटर की दूरी पर महावीर दल तथा लगभग दो सौ मीटर की दूरी पर ऐतिहासिक बावड़ी स्थित है।

धार्मिक तथा ऐतिहासिक दोनों ही तरीके से यह मंदिर बहुत महत्वपूर्ण है। इसकी दीवारों में इतिहास की झलक मिलती है तथा यह उस समय की कारीगरी का एक बेजोड़ उदाहरण भी है जो अत्यंत दर्शनीय है।


यह मात्र एक दरवाजा न होकर के तत्कालीन श्रीमाधोपुर नगर का ह्रदय द्वार था जो कि अब अपनी विरासत को अपने आगोश में समेटे हुए अपने भव्य अतीत को पथराई आँखों से याद करता रहता है।

इस मंदिर में प्रवेश करने के पश्चात हम उस युग का आभास कर सकते हैं जिस युग में श्रीमाधोपुर नगर की स्थापना हुई थी। ऐसे ऐतिहासिक तथा धार्मिक स्थलों की वजह से ही हम अपनी विरासत तथा संस्कृति से जुड़े हुए हैं। ऐसे स्थल ही पुराने तथा आधुनिक युग की कला तथा संस्कृति का समन्वय प्रदर्शित करते हैं।

वर्तमान समय में इस मंदिर में एक शिवालय भी स्थित है जिसकी स्थापना लगभग 1982 ईस्वी में की गई थी। समय-समय पर इस मंदिर की देखभाल अनेक समाजसेवी लोगों द्वारा की गई। सामूहिक सहयोग से एकत्र की गई धनराशि से मंदिर के बाहर की चारदीवारी का निर्माण कार्य संपन्न करवाया गया।

बहुत वर्षों से इस मंदिर में पूजन कार्य व्यास परिवार द्वारा किया जाता रहा है। मंदिर के प्रथम पुजारी श्री बाला बक्स व्यास थे तथा उनके पश्चात श्री दुर्गा सहाय व्यास, श्री गोवेर्धन व्यास, श्री रामेश्वर व्यास, श्री श्याम लाल व्यास और श्री मदन लाल व्यास द्वारा यह कार्य किया गया। वर्तमान समय में यह कार्य श्री मोहन लाल व्यास द्वारा किया जा रहा है।

दरवाजे वाले बालाजी का वीडियो - Video of Darwaje Wale Balaji



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रमेश शर्मा

नमस्ते! मेरा नाम रमेश शर्मा है। मैं एक रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट हूँ और मेरी शैक्षिक योग्यता में M Pharm (Pharmaceutics), MSc (Computer Science), MA (History), PGDCA और CHMS शामिल हैं। मुझे भारत की ऐतिहासिक धरोहरों और धार्मिक स्थलों को करीब से देखना, उनके पीछे छिपी कहानियों को जानना और प्रकृति की गोद में समय बिताना बेहद पसंद है। चाहे वह किला हो, महल, मंदिर, बावड़ी, छतरी, नदी, झरना, पहाड़ या झील – हर जगह मेरे लिए इतिहास और आस्था का अनमोल संगम है। इतिहास का विद्यार्थी होने की वजह से प्राचीन धरोहरों, स्थानीय संस्कृति और इतिहास के रहस्यों में मेरी गहरी रुचि है। मुझे खास आनंद तब आता है जब मैं कलियुग के देवता बाबा खाटू श्याम और उनकी पावन नगरी खाटू धाम से जुड़ी ज्ञानवर्धक और उपयोगी जानकारियाँ लोगों तक पहुँचा पाता हूँ। एक फार्मासिस्ट होने के नाते मुझे रोग, दवाइयाँ, जीवनशैली और हेल्थकेयर से संबंधित विषयों की भी अच्छी जानकारी है। अपनी शिक्षा और रुचियों से अर्जित ज्ञान को मैं ब्लॉग आर्टिकल्स और वीडियो के माध्यम से आप सभी तक पहुँचाने का प्रयास करता हूँ। 📩 किसी भी जानकारी या संपर्क के लिए आप मुझे यहाँ लिख सकते हैं: ramesh3460@gmail.com

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