भगवान के मुँह पर पड़ती है उगते सूरज की किरणें - Narsingh Mandir Khandela in Hindi

भगवान के मुँह पर पड़ती है उगते सूरज की किरणें - Narsingh Mandir Khandela in Hindi, इसमें खंडेला के ऐतिहासिक नरसिंह मंदिर के बारे में जानकारी दी गई है।

Narsingh Mandir Khandela in Hindi

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सीकर जिले का खंडेला कस्बा ऐतिहासिक होने के साथ-साथ धार्मिक नगरी के रूप में भी अपनी अलग पहचान रखता है। कस्बे में लगभग 150 फीट ऊँची पहाड़ी पर भगवान नृसिंह का सवा छः सौ वर्ष पुराना मंदिर है।

यह मंदिर धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ ऐतिहासिक भी है। अपने निर्माण के समय से ही इस मंदिर का सम्बन्ध खंडेला के प्रसिद्ध चारोड़ा तालाब के साथ रहा है।

इस का निर्माण निर्वाण राजा दलपत सिंह ने करवाया था। निर्माण पूर्ण हो जाने पर विक्रम संवत् 1444 (1387 ईस्वी) को वैशाख सुदी चौदस के दिन द्रविड़ देश से पंडितों को बुलाकर मंदिर में श्री नृसिंह की मूर्ति स्थापित करवाई।

मंदिर काफी भव्य बना हुआ है। मंदिर के अन्दर दीवारों एवं छत पर आकर्षक भित्तिचित्र बने हुए हैं। अन्दर भगवान नृसिंह की भव्य प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के निर्माण में वास्तु एवं दिशाओं के कौशल का भरपूर इस्तेमाल किया गया है।

मंदिर में श्री नृसिंह की मूर्ति को इस प्रकार स्थापित किया गया है कि दक्षिणायन एवं उत्तरायण में उगते सूर्य की किरणें सीधी नृसिंह भगवान के मुखारविंद को सुशोभित करती है।

मुख्य मंदिर के बगल में स्तंभों पर टिका हुआ बारादरी के रूप में बड़ा सा हॉल बना हुआ है। इस हॉल के पास में स्थित बड़ा पाना गढ़ के साथ-साथ पूरे खंडेला कस्बे का सुन्दर नजारा किया जा सकता है।


मंदिर में स्थापित नृसिंह की प्रतिमा का सम्बन्ध चारोड़ा तालाब से किस प्रकार रहा है इस सम्बन्ध में हम आपको अवगत करवाते हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार तेरहवीं शताब्दी में खंडेलवाल वैश्य राजाराम चौधरी अपनी बाल्यावस्था में अपनी माता के साथ अलवर से खंडेला आए थे।

तत्कालीन निर्वाण राजा के मंत्री धीरजमल ने राजाराम की माता को अपनी बहन बनाकर इन्हें आश्रय दिया।

बाद में राजाराम के तीन पुत्र हुए जिनमें सबसे छोटे पुत्र का नाम चाढ़ था। चाढ़ बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे तथा नृसिंह भगवान को अपना इष्ट मानकर उनकी भक्ति किया करते थे।

चाढ़ अपनी धार्मिक प्रवृत्ति के कारण खंडेला में आने वाले साधु संतों की सेवा किया करते थे। एक बार खंडेला में दक्षिण भारत से साधु संत आए जिनकी इन्होंने काफी सेवा की।

इनकी सेवा से प्रसन्न होकर एक संत ने इन्हें कहा कि जल्द ही इन्हें इनके इष्ट देव के दर्शन होंगे। बाद में एक रात को नृसिंह भगवान ने इन्हें स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि उनकी मूर्ति अगले खेड़े में झाड़ के पेड़ के नीचे दबी हुई है जिसे बाहर निकालो।

अगली सुबह चाढ़ उस स्थान पर गए एवं खुदाई करवाई। विक्रम संवत् 1439 (1382 ईस्वी) में नृसिंह चतुर्दशी के दिन सवा प्रहर के समय नृसिंह की मूर्ति निकली।

जिस स्थान पर नृसिंह की मूर्ति निकली थी उस स्थान पर चाढ़ ने एक तालाब बनवाया जिसे आज भी चारोड़ा (चाढोड़ा) के नाम से जाना जाता है। समय के साथ-साथ यह तालाब एक कुंड की शक्ल में तबदील हो गया।

श्री नृसिंह की मूर्ति को चाढ़ ने अपनी हवेली में विराजित करवाया। बाद में निर्वाण राजा दलपत सिंह ने नृसिंह भगवान के लिए मंदिर का निर्माण शुरू करवाया।

मंदिर का निर्माण कार्य पाँच वर्ष तक चला। निर्माण कार्य पूर्ण हो जाने के पश्चात संवत् 1444 (1387 ईस्वी) में वैशाख सुदी चौदस के दिन द्रविड़ देश के पंडितों से श्री नृसिंह की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करवाई गई।

गौरतलब है कि इन्हीं नृसिंह भक्त चाढ़ के वंशज खंडेलवाल वैश्य चौधरियों के नाम से प्रसिद्ध हैं। अगर आप घूमने के साथ-साथ इतिहास और धर्म में भी रुचि रखते हैं तो आपको एक बार यहाँ जरूर जाना चाहिए।

नरसिंह मंदिर की मैप लोकेशन - Map Location of Narsingh Mandir



नरसिंह मंदिर का वीडियो - Video of Narsingh Mandir



डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें क्योंकि इसे आपको केवल जागरूक करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
रमेश शर्मा

नमस्ते! मेरा नाम रमेश शर्मा है। मैं एक रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट हूँ और मेरी शैक्षिक योग्यता में M Pharm (Pharmaceutics), MSc (Computer Science), MA (History), PGDCA और CHMS शामिल हैं। मुझे भारत की ऐतिहासिक धरोहरों और धार्मिक स्थलों को करीब से देखना, उनके पीछे छिपी कहानियों को जानना और प्रकृति की गोद में समय बिताना बेहद पसंद है। चाहे वह किला हो, महल, मंदिर, बावड़ी, छतरी, नदी, झरना, पहाड़ या झील – हर जगह मेरे लिए इतिहास और आस्था का अनमोल संगम है। इतिहास का विद्यार्थी होने की वजह से प्राचीन धरोहरों, स्थानीय संस्कृति और इतिहास के रहस्यों में मेरी गहरी रुचि है। मुझे खास आनंद तब आता है जब मैं कलियुग के देवता बाबा खाटू श्याम और उनकी पावन नगरी खाटू धाम से जुड़ी ज्ञानवर्धक और उपयोगी जानकारियाँ लोगों तक पहुँचा पाता हूँ। एक फार्मासिस्ट होने के नाते मुझे रोग, दवाइयाँ, जीवनशैली और हेल्थकेयर से संबंधित विषयों की भी अच्छी जानकारी है। अपनी शिक्षा और रुचियों से अर्जित ज्ञान को मैं ब्लॉग आर्टिकल्स और वीडियो के माध्यम से आप सभी तक पहुँचाने का प्रयास करता हूँ। 📩 किसी भी जानकारी या संपर्क के लिए आप मुझे यहाँ लिख सकते हैं: ramesh3460@gmail.com

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