कायथवाल बावड़ी का इतिहास - Kayathwal Baori in Hindi

कायथवाल बावड़ी का इतिहास - Kayathwal Baori in Hindi, इसमें श्रीमाधोपुर की स्थापना से पहले बनी कायथवाल बावड़ी के बारे में इतिहास सहित पूरी जानकारी दी है।

Kayathwal Baori

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श्रीमाधोपुर शहर में दरवाजे वाले बालाजी से कुछ आगे जाने पर एक ऐतिहासिक बावड़ी स्थित है जो कि इस कस्बे की ही नहीं वरन आस पास के पूरे क्षेत्र की एकमात्र बावड़ी है। आस पास के क्षेत्रों में इस बावड़ी के अतिरिक्त दूसरी कोई बावड़ी नहीं है।

किसी जमाने में श्रीमाधोपुर से गुजरने वाले राहगीरों के विश्राम तथा उनके लिए जल की व्यवस्था करने हेतु श्री मोतीलाल कायथवाल द्वारा 1787 में एक तिबारी तथा बावड़ी का निर्माण करवाया गया। इन दोनों के साथ ही साथ बालाजी के एक मंदिर का भी निर्माण करवाया गया।

उस समय यह बावड़ी अत्यंत भव्य हुआ करती होगी इस बात का अंदाजा आज भी इस बावड़ी की जीर्ण शीर्ण हालत देखकर लगाया जा सकता है। यह बावड़ी काफी लम्बे चौड़े क्षेत्र में फैली हुई है तथा इसकी गहराई लगभग चार मंजिला है।

इस बावड़ी में महिलाओं तथा पुरुषों के प्रवेश के लिए अलग-अलग द्वार बने हुए हैं जिन्हें क्रमशः जनाना प्रवेश द्वार तथा मर्दाना प्रवेश द्वार कहा जाता है।

कोडियों की अराइश एवं कलात्मक भित्ति चित्रों से युक्त यह बावड़ी शिल्प एवं स्थापत्य कला का एक नायाब उदाहरण होकर किसी भी शाही बावड़ी से कमतर नहीं थी।

इस बावड़ी के मेहराब युक्त दरवाजे, लम्बे-लम्बे गलियारे तथा सुन्दर सीढियाँ इतिहास को अपने अन्दर समेटकर अपनी बर्बादी की कहानी कहते हुए आँसू बहा रही हैं।

परन्तु अब इन आँसुओं की सुध लेने वाला कोई नहीं बचा है न ही तो स्थानीय प्रशासन तथा न ही इस क्षेत्र के जागरूक निवासी।

इस बावड़ी के ख्याति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका “राजस्थान सुजस” के सितम्बर 2017 के अंक में पेज नंबर 49 पर भी इसका जिक्र “सीताराम बाबा की बावड़ी” के नाम से किया गया है।

राज्य सरकार एक तरफ तो छोटी-छोटी बावड़ियों का भी संरक्षण कर उन्हें अपने पुराने स्वरूप में लाने का प्रयास कर रही है दूसरी तरफ इस क्षेत्र की एक मात्र बावड़ी उसकी नजरों से ओझल होकर उपेक्षित पड़ी हुई है।

राजस्थान एक शुष्क प्रदेश है तथा यहाँ जल की अत्यंत कमी होने के कारण हमें अपने परंपरागत जल के स्रोतों का जीर्णोद्धार कर उन्हें संरक्षित करना चाहिए।

इन परंपरागत जल स्रोतों में बावड़ी का स्थान सर्व प्रमुख होता है क्योंकि यहाँ पर पूरे वर्ष भर पीने योग्य स्वच्छ जल उपलब्ध होता है।

बावड़ियाँ इंसान की कारीगरी का एक ऐसा बेजौड़ नमूना होता है जो पर्यटन के साथ-साथ जल रुपी मूलभूत आवश्यकता की भी पूर्ति करती है।

यूँ तो धरती पर समुद्र के रूप में जल ही जल है परन्तु यह जल इंसान के किसी भी काम का नहीं है। वास्तव में धरती पर पीने योग्य जल की मात्रा बहुत कम है तथा इंसान हमेशा से जल की कमी से जूझता रहा है।

इसी जल की कमी को दूर करने के लिए हमारे पूर्वजों ने वर्षा के जल को इकट्ठा कर उसे वर्ष भर पीने योग्य बनाए रखने के लिए बावड़ियों के रूप में हमें नायाब उपहार दिया है।

हमें हमारे पूर्वजों से प्राप्त इस अमूल्य उपहार को धरोहर समझकर अपनी जी जान से उसकी देखभाल करनी चाहिए थी परन्तु हम सभी ने अपने इस कर्तव्य से विमुख होकर उस धरोहर को कूड़ेदान बना डाला है।

वर्तमान में हालात यह है कि स्थानीय निवासियों ने उसमें अपने घर का कूड़ा करकट डाल कर उसे नेस्तनाबूद करने की ठान रखी है।

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इस बात से भी कतई इनकार नहीं किया जा सकता है कि यह घृणित कार्य किसी के इशारे पर हो रहा हो। हो सकता है कि कुछ लोगों का इरादा इस बावड़ी को कूड़े करकट से भरकर उसे समतल जमीन में तब्दील करके उस जमीन को हड़पने का हो।

यह सब एक जाँच का विषय हो सकता है परन्तु हमारा इरादा सिर्फ और सिर्फ बावड़ी को अपने मौलिक स्वरूप में लाने के लिए अपना प्रयास करना है।

बावड़ी के पास ही बावड़ी आश्रम स्थित है तथा यह बड़े आश्चर्य की बात है कि इस आश्रम के कर्ता धर्ता भी इस बावड़ी की सुध लेने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं।

इस आश्रम की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वह इस बावड़ी को कूड़ेदान बनने से रोके तथा इसको अपने वास्तविक स्वरूप में लाने में अपना सक्रिय योगदान प्रदान करें।

इस आश्रम का बावड़ी से श्री सीताराम बाबा के जमाने से भावनात्मक लगाव रहा है अतः आश्रम से हमारा निवेदन है कि वह इस पुनीत कार्य में अपना सक्रिय सहयोग प्रदान करें।

स्थानीय निवासियों से भी यह निवेदन है कि वे अपनी इस धरोहर का महत्त्व समझकर इसे कूड़ेदान न बनाए तथा अगर वे इसकी साफ सफाई में अपना योगदान नहीं दे सकते हैं तो कम से कम इसमें कचरा ना डाले, यही उनका योगदान होगा।

स्थानीय नगरपालिका अध्यक्ष से भी निवेदन है कि वे इस मामले को तुरंत अपने संज्ञान में लेकर इस धरोहर की रक्षा में अपनी भागीदारी देने का पुनीत कार्य करें।

हम सभी को संगठित होकर इस ऐतिहासिक विरासत के जीर्णोद्धार में अपना सक्रिय रूप से योगदान देना चाहिए जिससे इस स्थान को एक दर्शनीय तथा पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा सके।

कायथवाल बावड़ी का वीडियो - Video of Kayathwal Baori



डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें क्योंकि इसे आपको केवल जागरूक करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
रमेश शर्मा

मेरा नाम रमेश शर्मा है। मैं एक रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट हूँ। मेरी क्वालिफिकेशन M Pharm (Pharmaceutics), MSc (Computer Science), MA (History), PGDCA और CHMS है। मुझे ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना, इनके इतिहास के बारे में जानना और प्रकृति के करीब रहना बहुत पसंद है। मैं अक्सर किसी किले, महल, मंदिर, बावड़ी, छतरी, नदी, झरने, पहाड़, झील आदि के करीब चला जाता हूँ। मुझे अनजाने ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी देने के साथ ऐसी छोटी कविताएँ लिखने का भी शौक है जिनमें कुछ सन्देश छिपा हो। इसके अलावा, एक रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट होने के नाते मुझे डिजीज, मेडिसिन्स, लाइफस्टाइल और हेल्थकेयर आदि के बारे में भी जानकारी है। अपनी शिक्षा और शौक की वजह से जो कुछ भी मैं जानता हूँ, मैं उसकी जानकारी ब्लॉग आर्टिकल और वीडियो के माध्यम से सभी को देता रहता हूँ। आप ShriMadhopur.com ब्लॉग से जुड़कर मेरे आर्टिकल पढ़ सकते हैं, साथ ही सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर @ShriMadhopurWeb पर फॉलो भी कर सकते हैं।

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