हिंदी कविताएँ भाग 1 - Hindi Poems Part 1

हिंदी कविताएँ भाग 1 - Hindi Poems Part 1, इसमें हिन्दी भाषा की कविताएँ सम्मिलित की गई हैं जिसमें अलग अलग मूड की कुल दस कविताएँ शामिल की गई हैं।

Hindi Poems Part 1

1. हमारा तिरंगा हिंदी कविता


भारत की शान, हमारा तिरंगा
सबकी पहचान, हमारा तिरंगा

पूरब की आन, पश्चिम की बान
उत्तर की शान, दक्षिण का मान
भारतीयों की जान, हमारा तिरंगा

भारत की शान, हमारा तिरंगा
सबकी पहचान, हमारा तिरंगा

घर-घर पर जब तिरंगा, शान से फहराए
मन में श्रद्धा, आस्था, देशप्रेम जगाए
देश की पहचान, हमारा तिरंगा

भारत की शान, हमारा तिरंगा
सबकी पहचान, हमारा तिरंगा

तिरंगे का अशोक चक्र, बहुत कुछ सिखाए
समय का महत्व, 24 भागों में बताए
भारत की प्रगति दिखाए, हमारा तिरंगा

भारत की शान, हमारा तिरंगा
सबकी पहचान, हमारा तिरंगा

हम सब एक है, तिरंगा सिखाता है
अपने तीनों रंगो के, मायने बताता है
भारत महान जताए, हमारा तिरंगा

भारत की शान, हमारा तिरंगा
सबकी पहचान, हमारा तिरंगा

2. नहीं सोचा था हिंदी कविता


नहीं सोचा था,
कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगा
जब जीवन अंधकार में डूबता जायेगा
किसी भी ओर उजाला नजर नहीं आयेगा
मन हद से ज्यादा आशंकित हो जायेगा
गुजरता बीतता, एक एक पल डराएगा

नहीं सोचा था,
कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगा
जब कुछ भी समझ में नहीं आयेगा
मन हमेशा किसी सोच में डूबा रहेगा
मेहनत बेअसर और भाग्य रूठ जायेगा
लगेगा कि सोना भी छुआ तो मिट्टी बन जायेगा

नहीं सोचा था,
कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगा
जब तथाकथित घर और परिवार छूट जायेगा
जैसे अकेला आया था, उसी तरह अकेला रह जायेगा
उम्मीद और भरोसा, इस कदर टूट कर बिखर जायेगा
दिल अब किसी पर भी यकीन नहीं कर पायेगा

नहीं सोचा था,
कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगा
जब जीवन की दोपहर में दर-दर भटकता रह जायेगा
जीने की इच्छा शक्ति से धीरे धीरे दूर होता जायेगा
तू अब तक समझ में नहीं आया, आगे भी नहीं आयेगा
शायद यही नियति तेरी, तू एक दिन यूँ ही गुजर जायेगा


4. फूलों को महक दी कुदरत ने हिंदी कविता


फूलों को महक दी कुदरत ने
काँटों को हमें महकाना है
जो काम किसी से हो ना सका
वो काम हमें कर जाना है।

सूरज से उजाला क्यों मांगे
चाँद सितारों से क्यों उलझे
जीवन की अँधेरी रातों में
अब खुद को हमें चमकाना है।

दौलत के नशे में चूर हो क्यों
ताकत पे बेहद मगरूर हो क्यों
दुनिया है तमाशा दो दिन का
सब छोड़ यहीं पर जाना है।

लफ्जों की भी कीमत होती है
लफ्जों का तुम सम्मान करो
शायद वो हकीकत बन जाए
जो लफ्ज अभी अफसाना है।

ऐ दोस्त बहारों का मौसम
हर वक्त नहीं रहने वाला
जो आज खिला है गुलशन में
उस फूल को कल मुरझाना है।

5. सोशल मीडिया के सिपाही हिंदी कविता


जब से सोशल मीडिया आया है
फेसबुक व्हाट्सएप और ट्विटर का बुखार
सभी तरफ छाया है
नशा इस कदर बढ़ गया है
नफरत का जहर हर तरफ फैल गया है
जीवन की आपाधापी में
एक दौड़ सी लगी रहती है
हर मसला सोशल मीडिया पर सुलझाने के लिए
एक होड़ सी लगी रहती है।

अगर बात देशभक्ति की हो तो
हर कोई भगत सिंह बनकर
शब्दों का असला लेकर
सोशल मीडिया के परिसर में
धमाके कर अपनी देशभक्ति साबित करता है
फर्क इतना है कि
भगत सिंह आजादी के लिए
सूली पर चढ़ गए थे
और ये सोशल मीडिया के क्रांतिकारी
घर में बैठे-बैठे
चाय कॉफी की चुस्कियों के साथ
वक्त की नजाकत को समझते हुए
क्रान्ति को अंजाम देते हैं।

जब कोई आतंकवादी हमला होता है तो
आवाम के अघोषित प्रतिनिधि बनकर
पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करने के लिए
रात-दिन सोशल मीडिया पर
पोस्ट लिखते हैं
जो इनके विचारों से सहमत नहीं हो
उसे गद्दार और देशद्रोही बताकर
तुरंत पाकिस्तान भेजते हैं।

इन्हें गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार,
महंगाई, बिजली, पानी आदि से
कोई मतलब नहीं है
इन्हें शहीदों के परिवार को मिलने वाली
उस सहायता से भी कोई मतलब नहीं है
जो किसी सरकार ने शहीद होने पर
उस परिवार के लिए घोषित की थी
इन्हें सरकारी सहायता के लिए
भटकती शहीद की वीरांगना, अबोध बच्चों और माँ की
उन अश्रु पूरित आँखों से भी कोई मतलब नहीं है
जो अपने पति, पिता और पुत्र को खोने के बाद
सम्मान की उम्मीद में तकती है।

खुफिया विभाग द्वारा
आतंकवादी हमले के अंदेशे के पश्चात भी
ये सत्ता को उसके उस नाकारापन के लिए
कभी नहीं कोसते हैं
जिसकी वजह से आतंकवादी हमला हो जाता है
ये अपने आप को सैनिकों का शुभचिंतक बताकर
सिर्फ ढिंढोरा पीटते हैं
और सैनिकों को घटिया खाना मिलने पर भी
सत्ता के खिलाफ नहीं बोलते हैं।

शायद ये अपनी देशभक्ति को
अपने फायदे के तराजू में तौलते हैं
तभी तो ये अधिकतर समय
सिर्फ अपने फायदे के लिए मुँह खोलते हैं
सोशल मीडिया के इन तथाकथित सिपाहियों में
अमूमन वो लोग ज्यादा होते हैं
जो सक्षम तथा अच्छे ओहदों पर होते हैं
जिनके घरों से शायद एक भी सैनिक नहीं निकलता है
ये क्या जाने जब कोई सैनिक मरता है
तो कई दिनों तक उसके घर में चूल्हा नहीं जलता है।

इनके हिसाब से वास्तविक युद्ध भी
सोशल मीडिया की पोस्टों की तरह लड़ा जाता है
परन्तु ये नहीं जानते हैं कि
बार्डर पर जब एक जिंदगी जंग लड़ती है
तब उसके पीछे कई जिंदगियाँ
रातों को जाग-जागकर भगवान से
उसकी सलामती की दुआ करती हैं।

सरकारी अवार्ड लौटाने वालों को लताड़कर
कलाकारों को फिल्मों से निकलवाकर
कभी मंदिर-मस्जिद
कभी हिन्दू-मुस्लिम
कभी कश्मीर को लेकर
किसी को भी, कभी भी
देशद्रोही का तमगा तुरंत देकर
अपनी चपलता का परिचय देते रहते हैं।

गाली-गलौच और अपशब्द हैं इनके प्रमुख हथियार
जिनसे ये अपने सभी विरोधियों पर करते हैं वार
राहुल को पप्पू, ममता को गाली
केजरीवाल को खुजली बताकर, बजाते हैं ताली
हर वो शख्स जो सत्ता के विरोध में बोलता है
इनके द्वारा देशद्रोही कहलाकर
इनके कहर को झेलता है
ऐसा लगता है कि ये
विपक्ष विहीन भारत चाहते हैं
तभी तो किसी न किसी मुद्दे पर
स्वघोषित नृप द्वारा आयोजित
अश्वमेध यज्ञ के अश्व को घुमाते है।

आधुनिक नृप भी
सोशल मीडिया की ताकत से वाकिफ है
तभी तो अश्वमेध की सफलता के लिए
सेनानायकों को सौंपी जिम्मेदारी है
सेनानायक चौबीसों घंटे
रणनीतिक तैयारियों के तहत
चाणक्य के उपाय-चतुष्ठय को अपनाकर
नए-नए मैसेज तथा पोस्ट रचकर
सोशल मीडिया पर अश्वमेध की
सफलता सुनिश्चित करते हैं
नृप और उसके सेवक, काफी चतुर और सजग है
जो स्वयं सेनानायकों को फॉलो कर
पल-पल की रणनीति और तैयारियों पर नजर रखते हैं।

मार्केटिंग की ताकत से
मिट्टी को सोना बनाकर बेचा जा सकता है
भारतीय बहुत भावुक होते हैं इसलिए
भावनाओं से खेलकर सत्ता तक
फिर से पहुँचा जा सकता है
मार्केटिंग के सभी हुनर अपनाकर
अपनी जयकार करवाओ
हिन्दू शेर की उपाधि के साथ फिर से सत्ता पाओ।

6. मैं नादान था हिंदी कविता


मैं नादान था जो इस भुलावे में रहा
कि परिवार एक मंदिर की तरह होता है
जिसमें कई देवी-देवताओं का वास होता है
आखिर मैं इस सच्चाई को क्यों नहीं समझ पाया
कि परिवार की वजह से ही राम को बनवास होता है

मैं नादान था जो इस भुलावे में रहा
कि मेरे दिल को कोई पढ़ लेगा
जान लेगा कि मुझमें कोई सनक नहीं है
बस एक ही कमी रह गई मुझ में
कि मेरे पास सिक्कों की खनक नहीं है

मैं नादान था जो इस भुलावे में रहा
कि दुनिया में कोई है जो मुझे जानता है
सुख में और दुख में मुझे अपना मानता है
मेरी आँखों से ही जान लेता है मेरे दिल का हाल
और मेरी हँसी को मुझसे ज्यादा पहचानता है

नादानी से निकल कर अब मैं ये जान चुका हूँ
दुनियादारी को हद से ज्यादा पहचान चुका हूँ
अपनो से ठोकरें खा कर इस बात को मान चुका हूँ
आज के युग में पैसा ही काबिलीयत का सबूत है
मैं अब अपनी काबिलीयत साबित करने की ठान चुका हूँ

10. मैं हूँ विद्यार्थी हिंदी कविता


जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
आया शरण में तेरी
अरज तू सुन ले मेरी
देखते देखते साल चला गया
जाते जाते मुझको जला गया
इस साल मैं पढ़ ना पाया
मजे भी कर ना पाया
अब बेडा पार लगा दे माँ
मुझको पास करा दे माँ

जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
किससे करूँ मेरे मन की बात
दोस्त भी माथा पकडे रोये दिन रात
मैंने बोला यार मैं तो पढ़ नहीं पाया
वो बोला यार मैं भी पढ़ नहीं पाया
सारे बोले यार हम तो पढ़ नहीं पाए
कोरस में सारे रोये हाये हाये
हाये को याहू में बदलवा दे माँ
मुझको पास करा दे माँ

जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
लगा था इस साल भी
प्रमोट हो जाऊंगा
बिना पढ़े लिखे ही
पास हो जाऊँगा
अगर एग्जाम हुई
कुछ भी लिख नहीं पाऊंगा
मुझको प्रमोट करा दे माँ
मुझको पास करा दे माँ

जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
अगर एग्जाम हुई
डब्बा गोल हो जायेगा
तेरा ये पक्का भक्त
कहाँ मुँह छिपायेगा
दंडवत प्रणाम करके
नारियल चढाऊंगा
अगरबत्ती जलाऊंगा
भक्ति की शक्ति दिखा दे माँ
मुझको पास करा दे माँ

जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी ...

11. जिंदगी निकल गई  हिंदी कविता


अगर मैं,
चला जाऊँ दुनिया से
तो क्या होगा?
रोएँगे चंद लोग
दुखी होंगे चंद लोग
बताएँगे चंद लोग इसे
भगवान की मर्जी
फिर कुछ दिनों के बाद
सबकुछ वैसा ही हो जाएगा
जैसा मेरे जाने से पहले था

इंसान का अस्तित्व
क्षणभंगुर होता है
इस रहस्य का ज्ञान
इंसान को तब होता है
जब काया साथ नहीं देती
और मन रोता है
यादें लगती हैं सताने
सालते हैं पुराने जमाने
बीते हुए वक्त की रेत
हाथों से ऐसे फिसल गई
मैं मुट्ठी भींचने में लगा रहा
और जिंदगी निकल गई 

1. जवानी का गुरूर हिंदी कविता


जब बचपन बीते और किशोरावस्था जाने लगे
जब मन नए नए अरमान सजाने लगे
जब सपने मन मोहक और सुहाने लगे
जब रात और दिन अपना फर्क भुलाने लगे
यही जवानी का गुरूर है।

जब पढाई के अलावा भी दुनिया है, ये बात दोस्त समझाने लगे
जब माता-पिता की बातें बेमानी सी लगने लगे
जब दिमाग को बंधक बनाकर दिल का शासन चलने लगे
जब हर कृत्य को दिल के बेतुके तर्क ढ़कने लगे
यही जवानी का गुरूर है।

जब मित्र मंडली में नए इरादों के साथ साथ नए सपने पलने लगे
जब कोई सही राह दिखाने की कोशिश करें तो वो खलने लगे
जब बातों बातों में ही दिल बार बार जलने लगे
जब दूसरों को देखकर हाथ मलने लगे
यही जवानी का गुरूर है।

जब दिल में इरादे चट्टान की तरह मजबूत होने लगे
जब मंजिल की तरफ कदम बढे और रुकने लगे
जब गिर गिरकर हर हाल में आगे बढने लगे
जब किसी के सपने हमारी आँखों में पलने लगे
यही जवानी का गुरूर है।

जब खुद का साया खुद से ही बातें करने लगे
जब खुद के साये में किसी ओर की छवि नजर आने लगे
जब खुद का साया अक्स बनकर सताने लगे
जब अपने साये से दूर भाग जाने का मन करें
यही जवानी का गुरूर है।

जब मन में लहरों की माफिक उमंगें उठने लगे
जब दिल जो कहे वही करने का मन करने लगे
जब साँसों को महकाने वाली खुशबु का अहसास होने लगे
जब सारी कायनात अपनी सी लगने लगे
यही जवानी का गुरूर है।

जब मन में नए नए अरमान पलने लगे
जब किसी की देखकर धडकनें बहुत तेज चलने लगे
जब किसी को छुप छुप कर निहारने का मन करने लगे
जब किसी को हर सुख देने और उसके हर गम को लेने का मन करने लगे
यही जवानी का गुरूर है।

जब सारी दुनिया दुश्मन सी लगने लगे
जब दुनिया से बगावत करने का दिल करने लगे
जब किसी पर जान न्योछावर करने का इरादा होने लगे
जब किसी के लिए सारी दुनिया से टकराने का दिल करने लगे
यही जवानी का गुरूर है।

जब गुरूर उतरने लगता है तब सच्चाई सामने आती है
जब सुरूर का धुआँ हटने लगता है तब दिल को दहलाती है
जब दिमाग को पुनः सत्ता मिलती है तब दिल धक से रह जाता है
जो लुट चुका होता है उसकी भरपाई दिल कभी भी नहीं कर पाता है
दोस्तों जवानी को जिओ परन्तु इसके गुरूर को मगरूर मत होने दो
अपनी मंजिलों को हासिल करने के दृढ़ इरादों को कभी मत खोने दो
यही जवानी का गुरूर है।

2. शायद यही बुढ़ापा है हिंदी कविता


जब यौवन ढल ढल जाता है
जब यौवन पतझड़ बन जाता है
जब स्वास्थ्य कहीं खोने लगता है
जब शरीर क्षीण होने लगता है
शायद यही बुढ़ापा है।

जब सत्ता छिनती जाती है
जब सुना अनसुना होने लगता है
जब कोई पास नहीं रुकता है
जब खून के रिश्ते रोते हैं
शायद यही बुढ़ापा है।

जब कुछ कर नहीं पाते हैं
जब मन मसोसकर रह जाते हैं
जब बीते दिन बिसराते हैं
जब वक्त और परिस्थितियाँ बदल न पाते हैं
शायद यही बुढ़ापा है।

जब मन में ज्वार-भाटे उठते हैं
जब हर मौसम पतझड़ लगता है
जब पुराने दरख्तों से खुद की तुलना होती है
जब मन सदैव विचलित सा रहता है
शायद यही बुढ़ापा है।

जब दैहिक आकर्षण कम होने लगता है
जब आत्मिक प्रेम बढ़ने लगता है
जब समय रुपी दर्पण नए चेहरे दिखाता है
जब कर्मों का फल याद आता है
शायद यही बुढ़ापा है।

जब हर वक्त अकेलापन रुलाता है
जब वक्त काटना दूभर हो जाता है
जब हर पल दिल घबराता है
जब यादों का भंवर कचोटता है
शायद यही बुढ़ापा है।

जब रक्त के सम्बन्ध रंग दिखाते हैं
जब अपनो में उपेक्षा पाते हैं
जब बोझ समझ लिया जाता है
जब अहसान और उपकार गिनाये जाते हैं
शायद यही बुढ़ापा है।

इस उम्र में बस एक ये रिश्ता जो सब रिश्तों में अनोखा है
यह रक्त का नहीं, जिस्मों का नहीं, सिर्फ आत्माओं का रिश्ता है
यह रिश्ता उम्र के साथ गहरा ओर गहरा होता जाता है
यह निस्वार्थ प्रेम के साथ मृत्यु पर्यन्त निभाया जाता है
यह पति पत्नी का रिश्ता होता है जो सुख दुःख का सच्चा साथी होता है
शायद यही बुढ़ापा है।

4. मैं और मेरे कॉलेज के दोस्त हिंदी कविता


कॉलेज के दिनों में मिले मुझे कई अनजाने अपने
सब नें साथ में मिल जुल कर देखे थे सुनहरे सपने
कॉलेज का वक्त बीता और सब का साथ छूट गया
धीरे धीरे सबका आपस में संपर्क और नाता टूट गया

गुजरते वक्त के साथ सब प्रोफेशनल होते गए
चौबीसों घंटे सब अपने प्रोफेशन में खोते गए
भूलने लगे उन दिनों को जो अब कभी न लौट पाएँगे
उम्र के एक दौर में पुरानी यादें बनकर तड़पाएँगे

धीरे धीरे मेरे साथ मेरे सभी दोस्त पकने लगे हैं
अपने सफेद और उड़ते बालों को ढकने लगे हैं
ऐसा नहीं है कि पहले किसी वजह से जागते थे रातों में
लेकिन अब रातों में बेवजह जगने लगे हैं

उम्र ऐसी आ गई कि ना बुढ़ापा है और ना जवानी है
शरीर थकने लगा है लेकिन मन में अभी भी रवानी है
पापा, चाचा, ताऊ का किरदार निभाने लग गए है मगर
'दिल तो बच्चा है जी' गाते हुए अभी भी हसरतें पुरानी है

कभी जब तन्हा होते हैं तो याद कर लेते हैं पुराने दिन
देखते देखते फुर्र से कहाँ उड़ गए वो सुनहरे पल छिन
कभी कभी मन करता है कि उस दौर में फिर से लौट जाऊँ
सबके गले लगूँ, कुछ उनकी सुनूँ, कुछ अपनी सुनाऊँ

5. पकौड़ा पॉलिटिक्स में पिसता युवा हिंदी कविता


अपने जीवन को बनते देख जुआ
वजीरे आजम की इस सलाह से बहुत निराश आज का युवा
कि पकौड़े तलना एक रोजगार है
जो पकौड़े नहीं तल सकता, सही मायनों में वही बेरोजगार है।

जब से बेरोजगारी के नए उपायों में पकौड़ा दर्शन लागू हुआ
तब बेरोजगारी का इलाज लगने लगा सिर्फ ईश्वर की दुआ
नेताओं के तो भाषण ही उनके शासन बन जाते हैं
सत्ता के मद में ये बेरोजगारों से सिर्फ पकौड़े तलवाते हैं।

सभी नेता गण वादे करके क्यों मुकर जाते हैं?
अपने किए हुए वादों को जुमला क्यों बतलाते हैं?
ऐसा लगता है कि वादे करके मुकर जाना नेताओं का जन्मसिद्ध अधिकार है
तभी तो बेरोजगार, गरीब तथा आम आदमी का सम्पूर्ण जीवन ही बेकार है।

रोजगार का वादा करके जिन्हें मँझधार में छोड़ दिया
अपना इच्छित लक्ष्य पाकर बेरोजगारों से मुँह मोड़ लिया
वादा था हर वर्ष करोड़ों नौकरियों का, कम से कम लाखों तो देते
उम्मीद बनाये रखने के लिए कुछ और जुमले ही कह देते।

हुक्मरान के अनुचरों की अगुवाई में आज घर-घर पकौड़ा गान हो रहा है
ऐसा लगता है कि पकौड़ा ही बेरोजगारों का भगवान हो रहा है
वह दिन दूर नहीं जब पकौड़ा रोजगारेश्वर जैसी श्रद्धा पाएगा
रोजगार के पूरक श्रद्धेय पकौड़े को फिर कोई कैसे खाएगा?

गलियों से संसद तक “पकौड़ा रोजगार” का गुणगान बढ़ा है
ऐसा लगता है कि आम आदमी पकौड़ा ज्ञान के लिए ही खड़ा है
कोई राज्यसभा में तो कोई अन्यत्र पकौड़ा भक्ति में लीन हुआ
सभी भक्तजनों का मन पकौड़ा चालीसा में पूर्णतया तल्लीन हुआ।

पकौड़े तलने वालों की शान में चार चाँद लगने लगे
पकौड़े की रेहड़ी लगाने वालों से रातों रात लोग जलने लगे
पकौड़ा टीवी तथा पकौड़ा न्यूज पर हर जगह इनके किस्से चलने लगे
समझदार है ये लोग जो शिक्षा में वक्त बिगाड़े बिना पकौड़े तलने लगे।

शायद जल्द ही “पकौड़ा रोजगार मंत्रालय” तथा “पकौड़ा रोजगार मंत्री” सामने आएँ
कई किस्म के पकौड़े तलवाकर “पकौड़ा रोजगार मंत्री” बेरोजगारों के हाथ थामते जाएँ
बेरोजगारों को केवल एक शर्त पर बाँटा जाएगा “पकौड़ा रोजगार लोन”
केवल “जिओ डिजिटल लाइफ” के साथ आपको करना होगा एक फोन।

बेरोजगारों की सत्ता प्रमुखों से यही इल्तिजा है कि शिक्षा का मखौल ना उड़ाइए
हर वर्ष करोड़ों रोजगार देने के जो वादे किए हैं बस उन्हें निभाइए
रोजगार के अवसर ना देकर, सरकार की नाकामियों को पकौड़ों के पीछे मत छिपाइए
बेरोजगारों को रोजगार चाहिए, उनसे रोजगार के नाम पर पकौड़े मत तलवाइए।

पकौड़े तलने के लिए उच्च शिक्षा की जरूरत नहीं होती है
उच्च शिक्षित युवा जब पकौड़े तलता है तो ज्ञान की देवी रोती है
पकौड़े तलना कोई गर्व की बात नहीं, यह तो पेट पालने की मजबूरी है
अगर इसमें गर्व नजर आता है, तो क्या, आज से हर नेता पुत्र के लिए पकौड़े तलना जरूरी है?

6. तुम प्रचार करने कब आओगे हिंदी कविता


उसके मुँह से आती है आवाज, लगातार
शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और विकास
वो बात ना दूजी करता है
उसकी इन्हीं बातों से जनता का ध्यान भटकता है,
तुम कब इसको भटकाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे

मिश्रा, वर्मा, बग्गा, ठाकुर
सब राष्ट्रवाद में डूबे हैं
जो हमसे सहमत नहीं
उसके नेक नहीं मंसूबे हैं,
तुम कब ये आभास कराओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे

शाह गिनाते सीएए
वो बात स्कूल की करता है
शाह बताते शाहीन बाग
वो बात स्वास्थ्य की करता है,
तुम कब इनसे भटकाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे

सभी क्षत्रप आखिर कब तक
उस आप प्रधान से टकराएँगे
लगता है कि सीएए और शाहीन बाग
तब असली रंग दिखाएँगे,
जब तुम इनको दोहराओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे

बहुत कम समय है आ जाओ
सत्ता का वनवास मिटा जाओ
इस बार अगर तुम आओगे
पिछला परिणाम ना पाओगे,
बस तुम ही हमको जितवाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे

पिछली बार ना सीएए था, ना शाहीन बाग
इस बार हैं मनमाफिक मुद्दे तमाम
हिंदुत्व रुपी लोहा गर्म है हथौड़ा मारो
चुनाव रुपी वैतरणी से हमें तारो,
तुम कब नैया पार लगाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे

जिसने दिल्ली की सत्ता को साध लिया
उसी ने हिंदुस्तान पर राज किया
केंद्र की सत्ता के बाद भी कुछ कमी सी है
अजी, हमारे हाथ में अभी दिल्ली जो नहीं है,
तुम कब दिल्ली दिलवाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे

यदि फिर भी समय ना माकूल हुआ
गर, इस बार भी परिणाम प्रतिकूल हुआ
तुम पर हार का लांछन ना आएगा
यह तो दिल्ली की फ्री फ्री जनता पर जाएगा,
तुम कब भयमुक्त होकर आओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे

9. सोनू सूद नायक बन गया हिंदी कविता


कोरोना महामारी के इस डरावने दौर में
जब चारों तरफ घूम रहे हैं यमदूत
तब वो लोगों की मदद कर रहा बनकर देवदूत
उस इंसान का नाम है सोनू सूद, सोनू सूद

लॉकडाउन में लोगों को खाना खिलाया
परदेसी मजदूरों को उनके घर भिजवाया
बस तो बस, हवाई जहाज भी चलवा दिया
इसने कई बिछुड़ों को फिर से मिलवा दिया

अब महामारी काफी विकराल रूप ले रही है
दवा के साथ-साथ दुआ भी बेअसर हो रही है
दुवाओं का ही आसरा है, दवा की कमी बता रहे हैं
दवाओं के लिए भी अब लोग, इन पर ही भरोसा जता रहे हैं

बहुत से लोगों ने इस आपदा को अवसर बनाया है
पूरी उम्र में ना कमाया उससे अधिक कमाया है
मरीज अमीर हो या गरीब, जवान हो या बुजुर्ग, चाहे जैसा है
अवसरवादियों लिए तो जान की कीमत सिर्फ और सिर्फ पैसा है

जिनको करनी चाहिए थी मदद वो सभी गायब हो गए
जिन्हें हमने बनाया था साहब ना जाने वो कहाँ खो गए
इनकी जगह मदद कर ये "सूद" सहित दिलों में घर कर गया
फिल्मों का यह खलनायक "सोनू" ना जाने कब नायक बन गया

10. ये रातों का सूनापन हिंदी कविता


ये रातों का सूनापन, ये सन्नाटा
कब जाएगा मेरे मन से
कब तक चुराएगी नींदे मेरी
ये चिंताएँ।

क्यों सोचती हूँ उनके लिए
जिन्होंने मुझे तोड़ा है
आज मैं उन्हीं लोगों के लिए
व्याकुल हूँ
जिन्होंने मुझे यूँ इस हाल पे छोड़ा है।

क्या रिश्ते ऐसे होते हैं
जो अपनों को यूँ ठुकराते हैं
क्यूँ मुँह फेरा सबने मुझसे
मैंने तो परायों को भी अपना माना
दिए संस्कार माँ ने जो
उन सबको जी जान से निभाया।

जन्म लिया जिस घर में मैंने
छोड़ आई उन अपनों को
इस घर में आकर त्याग दिया
अपने सभी इच्छित सपनों को।

जो न किया माँ-बाप, भाई-बहन के लिए
सब कुछ किया इन परायों के लिए
कभी स्वीकारा नहीं दिल से इन्होंने
जिनको मैंने अपना माना।

क्या खता हुई मुझसे
ये समझ नहीं पाई हूँ
बहुत सी अनकही हरकतों से लगता है
मैं परायी थी और अभी भी पराई हूँ।

जब तक सर झुका कर
सारे आदेशों का अक्षरशः पालन किया
तब तक सब खुश थे मुझसे
लेकिन जब मैंने जीना चाहा
तो सबने मुझको ठुकराया।

ऐसी जगह पर भी मुझे मिला
कोई एक मेरा अपना
जो हाथ पकड़ लाया घर में
वही समझता है मेरा सपना

उसने मुझे संबल देकर संभाला
इस रिश्ते को जी कर
मन को खुश कर लेती हूँ।
लेकिन फिर घबरा जाती हूँ

ये सोचकर
क्यों हो गए सभी पराये मुझसे
क्यों रिश्तों में खटास हुई
क्यों वापस नहीं मिल जाते हम
मिल जुल कर रहें सभी एक साथ
सही मायने में यही जीवन है।

यही सोचकर
रातों को मैं सो नहीं पाती हूँ
क्या बिखरे रिश्ते कभी वापस जुड़ पायेंगे
जो कर बैठे पराया मुझको

क्या कभी मुझे अपनाएँगे
मन बार-बार यही पूछता है कि
ये रातों का सूनापन, ये सन्नाटा
कब जाएगा मेरे मन से।

11. कुछ दिन तो उदयपुर में गुजार लो हिंदी कविता


अगर एक बार उदयपुर आ गए तो इसे भुला नहीं पाओगे
जीवन भर के लिए कई खट्टी मीठी यादें साथ ले जाओगे
ले जाओगे मेवाड़ के स्वाभिमान और प्यार की सौगात
याद तो आयेंगे तुम्हें झीलों की नगरी में गुजारे हुए दिन रात
सिटी पैलेस से पिछोला में जगनिवास और जगमंदिर का नजारा
दूध तलाई, म्यूजिकल गार्डन और करणी माता बुलाती है दुबारा
अक्सर शहर का बाजार और तंग गलियाँ बन जाती हैं पहेली
अमराई और गणगौर घाट के साथ देख लो बागोर की हवेली
सुखाड़िया सर्किल से सहेलियों की बाड़ी होते हुए फतेहसागर की पाल
इस झील के आगोश में होती है सुबह, दोपहर और शाम बड़ी बेमिसाल
सर्पिलाकार सड़क से सज्जनगढ़ मानसून पैलेस की चढ़ाई
बड़ी तालाब से बाहुबली हिल्स की ट्रेकिंग नही जाती भुलाई
मोती मगरी और नीमच माता से इस रोमांटिक सिटी को निहार लो
जीवन में कम से कम एक बार कुछ दिन तो उदयपुर में गुजार लो

11. साइको हिंदी कविता


कहते हैं
बरसों के साथ के बाद
मन की बातें भी
समझ में आने लगती है
फिर कुछ कहने के लिए
जुबां की जरूरत नहीं होती

शायद ये मेरी ही भूल है
जो मैं इन बातों को
सच मान बैठा
और लगा बैठा किसी से उम्मीद
कि वो मेरे मन की बातों को
बिना कहे समझता है

जब किसी बात पर
होती है उससे नाराजगी
तब इसी उम्मीद में
करता हूँ उसका इंतजार
कि दूर कर देगा वो गिले शिकवे
देकर एक जादू की झप्पी

लेकिन उसने मेरे गुस्से को
मेरा गुरूर जान लिया
बड़ी आसानी से मुझे
इगोइस्ट मान लिया
और साथ में दे दी मुझे
साइको की उपाधि

शायद मैं साइको ही हूँ
जो उसे इस कदर
चाहता हूँ कि
उस पर गुस्सा आने पर भी
खुद को ही तकलीफ
देता रहता हूँ

शायद मैं साइको ही हूँ
जो मुझसे
उसकी बेरुखी
बर्दाश्त नहीं होती
और तड़पता रहता हूँ तब तक
जब तक वो मेरे पास नहीं आता

मैं क्या करूं
मुझे नही आता मनाना
मुझे नहीं आता
बोलकर और जताकर
किसी तरह की
फॉर्मेलिटी निभाना

मेरे लिए उसके बिना
बेमानी है
जीवन की कल्पना
शायद इसीलिए
बिना सोचे समझे
जता देता हूँ हक अपना

लेकिन बहुत तकलीफ होती है तब
जब आपका ये हक
उसकी निगाह में
आपका गुरूर बनकर
आपको इंसान से
बना देता है साइको

1. मेरी कमियाँ बताने वाले हिंदी कविता


मेरी कमियाँ बताने वाले, मेरी खूबियाँ भी बताते तो कोई बात होती
गैरों को बताना ठीक नहीं था, मुझको बताते तो कोई बात होती

अपना दर्द सुनाने वाले, मेरा भी सुनाते तो कोई बात होती
सिक्के का एक पहलू ही दिखाया, दूसरा भी दिखाते तो कोई बात होती

घरेलू बातें दुनिया में बताना गलत है, इस बात को निभाते तो कोई बात होती
दूसरों पर मनमाफिक तोहमत लगाकर, इतना ना गिराते तो कोई बात होती

अपने माता पिता जैसी चिंता, सभी बुजुर्गों के लिए जताते तो कोई बात होती
दूसरे बुजुर्ग भी माँ बाप जैसे हो सकते हैं, अहसास जो कराते तो कोई बात होती

बहू भी बेटी बन सकती है, कभी बनके दिखाते तो कोई बात होती
सभी के साथ अपना रिश्ता, आत्मिक सा बनाते तो कोई बात होती

हैसियत अपने घर की बहुओं की, निष्पक्षता से तौल पाते तो कोई बात होती
बहुएँ तो सिर्फ काम करने के लिए होती है, यह सोच बदल पाते तो कोई बात होती

अपने हिसाब से अपनी जिंदगी जीना गलत नहीं है, कहके दिखाते तो कोई बात होती
अपने लिए इसे जायज और दूसरों के लिए नाजायज, ना ठहराते तो कोई बात होती

उकसाने के बजाये बुजुर्गों को भी, गलती का अहसास कराते तो कोई बात होती
तुम रिश्तों में सेतु बन सकते थे, कभी बनके दिखाते तो कोई बात होती

2. बरगद की छाँव हिंदी कविता


सुना है बरगद की छाँव में शीतलता मिलती है
इसकी शाखाओं पर बहुत से पंछियों की शाम ढलती है
बरगद नहीं पनपने देता दूसरे पेड़ों को अपने साए में
इसके साए में इन्हें तन्हा-तन्हा मृत्यु मिलती है

जब बरगद की दूसरी जड़ें जमीन को छूने लगती है
बरगद से अलग, अपने अस्तित्व को ढूँढने लगती हैं
ये जड़े बरगद के साये वाले पेड़ नहीं है
इन जड़ों से तो बरगद को मजबूती मिलती है

जब बरगद की सारी ताकत कुछ शाखाएँ ले जाती है
जब बरगद की बाकी शाखाएँ मुँह ताकती रह जाती है
झुकने लगता है जब बरगद सिर्फ एक ही तरफ
तब कोई भी शाख अपना अस्तित्व बचा नहीं पाती है

कहते हैं बरगद पर परमात्मा का वास होता है
इसके साये में सुरक्षित होने का आभास होता है
लेकिन अस्तित्व रहता है उसी बरगद का सदियों तक
जिसको अपनी जड़ों में मजबूती का विश्वास होता है

जब बरगद की जड़ों को ताकत का अहसास होता है
जब बरगद की शाखाओं में आपसी विश्वास होता है
तब गुजर जाते हैं पतझड़ और तूफानों के कई मौसम यूँ ही
और इसके घोंसलों का हर एक पंछी खुशहाल होता है


6. मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे हिंदी कविता


मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे
मन उद्विग्न हो रहा है
मंथन कर रहा है कि जीवन भर
मैंने क्या पाया और क्या खोया
उसका हिसाब लगा रहा है
हिसाब सही नहीं लग पा रहा है
मन भूली बीती बातों को
सही सही नहीं तौल पा रहा है
सुख और दुःख के सारे क्षण
घूम घूम कर सामने आ रहे हैं
न चाहते हुए भी
कातर आँखों से आँसू बहा रहे हैं।

मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे
कई हसरतें कई उम्मीदें
मन को व्याकुल कर रही हैं
सोच रहा हूँ कुछ वक्त और मिलता तो
ये भी कर लेता, वो भी कर लेता
पर हसरतें और इच्छाएँ तो, स्वर्ण मृग सदृश्य हैं
जिनका खयाल तो आता है
पूर्ण करने की लालसा होती है
परन्तु कभी पूर्ण नहीं हो पाती
लेकिन फिर भी मन उनके पीछे भागता है।

मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे
अभी भी मोह माया के मकड़जाल से
मुक्त नहीं हो पाया हूँ
सोच रहा हूँ अगर कुछ समय और मिल जाता तो
अपना लोक परलोक सुधार लेता
जन्म सफल हो जाता
स्वजनों के लिए कुछ करता
सभी अधूरी तृष्णाओं को पूर्ण कर लेता
लेकिन फिर दिल में खयाल आता है
जब मैं कुछ करने में सक्षम था
तब कुछ भी करने की चाहत न थी
अब जब कुछ नहीं कर सकता
तब बहुत कुछ करना चाहता हूँ
क्या ये कुछ करने का जज्बा अभी पैदा हुआ है
या फिर कर्मों का फल पाने से मन घबरा रहा है क्योंकि
बचपन से सुना था कि चित्रगुप्त कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं
जो जैसा कर्म करता है उसी अनुसार फल मिलता है।

मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे
चित्त शांत क्यों नहीं है
किस बात की उधेड़बुन है
अकेलेपन का अहसास डरा रहा है
जीवन का खालीपन सता रहा है
जीवन यात्रा अकेले ही पूर्ण करनी होती है
इंसान अकेला ही आता है और अकेला ही जाता है
अब समझ में आया है कि
जीवन तो नश्वर है
इस नश्वर जीवन का केंद्र, सिर्फ और सिर्फ ईश्वर है।

8. बचपन की बेफिक्री और भोलापन हिंदी कविता


न अपनो की चिंता, न परायों की फिकर
बात बात पर इठलाकर बातें मनवाने का हठ
भोलेपन और मासूमियत में पूछे गए अनगिनत सवाल
उत्तर न मिलने पर बारम्बार वही पूछने का खयाल
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।

छुप छुप कर घर से बाहर निकलकर मिट्टी में खेलना
कपड़े गंदे करके घर लौटकर माँ की डाँट खाना
वादा करना कि फिर ऐसा नहीं होगा लेकिन फिर वही करना
माँ का हर बार जानबूझकर नासमझ बनने का दिखावा करना
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।

तुतलाती आवाज में दोस्तों की शिकायत करके उन्हें चिढ़ाना
दोस्तों से रूठना और फिर अगले ही पल उनके साथ घुल मिलकर खेलना
अपनी माँ को दुनिया की सबसे अच्छी माँ बतलाना
माँ में ही, और माँ के ही इर्दगिर्द, सारी दुनिया को समझना
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।

स्कूल न जाने के लिए ना ना प्रकार के बहाने बनाना
कभी सिरदर्द तो कभी पेट दर्द या कभी जीभ दिखलाना
नित्यकर्म के क्रियाकलापों में बेवजह अधिक समय लगाना
स्कूल के लिए देरी हो जाने के आखिरी कारण की पैरवी करना
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।

न धन का मोह और न माया का लालच
न कोई फिक्र और न ही कोई चाहत
कोई एक चाँकलेट दिला दे तो वो देवदूत समान सुहावना
अगर चाँकलेट नहीं दिलाये तो यमदूत समान डरावना
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।

न जात का पता न धर्म को जाने
हर इंसान को सिर्फ और सिर्फ इंसान माने
दोस्त ही दुनिया और खेल को ही सब कुछ माने
दोस्त के प्यार और दोस्ती को ही दिल पहचाने
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।

जब से बचपन बीता है अब तो ये आलम है
ऐसा लगता है कि दुनिया में फिर से नया जन्म लिया है
सभी लोग दुनियादारी सिखाने लगे हैं
जाति, धर्म, समाज, बिरादरी आदि के बारे में बतलाने लगे हैं
दुनिया के हिसाब से जीओगे तो समझदार नागरिक कहलाओगे
अगर अपने मन के हिसाब से जीओगे तो नासमझ बालक बन जाओगे
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।

9. प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है हिंदी कविता


हिंदी दिवस के दिन न जाने क्यों हमारा हिंदी प्रेम उमड़ आता है
हर कोई अपने आप को हिंदी भाषा प्रेमी बतलाता है
अंग्रेजी को छोड़ हिंदी भाषा की श्रेष्ठता के गुण गाता है
सोशल मीडिया पर अपना हिंदी प्रेम दिखाता है
अगले दिन उसका हिंदी ज्ञान ना जाने कहाँ खो जाता है
हिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।

फिर दस जनवरी को पुनः हिंदी भाषा को उसका गौरव दिलवाता है
बड़े जोर शोर से वह वर्ल्ड हिंदी डे यानी विश्व हिंदी दिवस मनाता है
सम्पूर्ण विश्व में एक दिन हिंदी भाषा का डंका जोर शोर से बजाता है
सभी को हिंदी भाषा का महत्व तथा उसकी समृद्धता के बारे में बताता है
आखिर वह हिंदी प्रेमी हैं इसलिए सोशल मीडिया पर पुनः अपने हथियार उठाता है
हिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।

इन दो दिवसों के अतिरिक्त हम सभी ने हिंदी से मुँह मोड़ लिया
गुलामी की भाषा के यशोगान में मातृभाषा से नाता तोड़ लिया
भावनाओं का प्रस्तुतीकरण जो हिंदी में है उसे अनुभव करना छोड़ दिया
संस्कृत की बेटी को यथोचित मान न देकर भावना विहीन भाषा से नाता जोड़ लिया
दिखावटी हिंदी प्रेम के प्रदर्शन के लिए हमें यह एक दिन बहुत भाता है
हिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।

शायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जिसके लिए कोई दिवस मनाते हों
शायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जिसकी बदहाली पर आँसू बहाते हों
शायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जो उसके जन्मदाता देश में उपेक्षित हों
शायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जिसे बोलने वाले अशिक्षित समझे जाते हों
शायद इन्हीं वजहों से हिंदी दिवस तथा विश्व हिंदी दिवस का महत्व बढ़ जाता है
हिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।

10. कहाँ है वो लड़की हिंदी कविता


कहाँ है वो लड़की?
जिसे ढूँढने को दिल चाहता है
जिसका दीदार करने की हसरत रहती है
जिससे बात करने का दिल करता है
जिसको मिलने को दिल मचलता है।

कहाँ है वो लड़की?
जिसे अपने दिल का हाल बताऊँ
जिसे प्यार की कविता सुनाऊँ
जिसे अपने दिल को चीरकर दिखाऊँ
जिसके साथ प्रेम बंधन निभाऊँ।

कहाँ है वो लड़की?
जिसके आने की खबर फिजा दे देती है
जिसके आने से माहौल खुशनुमा हो जाता है
जिसके आते ही संगीत बजने का अहसास होने लगता है
जिसके जाने पर पुष्प मुरझा जाते है।

कहाँ है वो लड़की?
जिसकी पवित्रता ओस की बूंदों सी लगती है
जिसकी कोमलता रंगबिरंगी तितलियों के माफिक है
जिसकी अल्हड़ता कलरव करते पंछियों की तरह है
जिसका शर्मीलापन छुईमुई की माफिक है।

कहाँ है वो लड़की?
जो बड़ी भोली भोली सी लगती है
जो निश्छल और मासूम प्रतीत होती है
जिसमें देवत्व का अहसास होता है
जो मन मंदिर ही मूरत सी प्रतीत होती है।

कहाँ है वो लड़की?
जिसके दो पल के साथ में ही उम्रभर की खुशी मिलती है
जिसके साथ को दिल हमेशा तड़पता रहता है
दिन तो क्या रात में भी जिसकी कल्पना रहती है
हर जगह दिल सिर्फ और सिर्फ उसे ही ढूँढ़ता रहता है।

कहाँ है वो लड़की?
जिसके साथ कहीं दूर किसी जजीरे पर जाने का दिल करता है
वहाँ जाकर प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ उसके सौन्दर्य को तोलने का मन करता है
उसके साथ सूर्यास्त के सूरज को देखने का दिल करता है
जजीरे के एक एक पेड़ पर उसका नाम लिख देने को दिल करता है।

कहाँ है वो लड़की?
जिसके साथ तनहा किसी ऊँचे बर्फीले पहाड़ पर जाने का मन करता है
पहाड़ की ऊँचाई पर उसको मचलते हुए देखने का दिल करता है
जब पहाड़ पर आवारा बादल उसकी जुल्फों से टकरा कर खेलने लगे
तब उन आवारा बादलों को अपने हाथों से बिखराने का मन करता है।

कहाँ है वो लड़की?
जिसके साथ समुन्दर में किसी जहाज पर जाने का दिल करता है
समुन्दर में उसे इठलाते हुए देखने को दिल तरसता है
जब घनघोर घटा आसमान में उमड़ घुमड़ कर छा जाये
उस बारिश में उसके साथ भीगने को दिल करता है।

कहाँ है वो लड़की?
जिसको देखकर ये अहसास होने लगे
शायद हम दोनों जनम जनम के साथी है
प्यार की आग में जलकर रोशनी देने वाले
हम दोनों ही वो दीया और बाती है।


लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

रमेश शर्मा

नमस्ते! मेरा नाम रमेश शर्मा है। मैं एक रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट हूँ और मेरी शैक्षिक योग्यता में M Pharm (Pharmaceutics), MSc (Computer Science), MA (History), PGDCA और CHMS शामिल हैं। मुझे भारत की ऐतिहासिक धरोहरों और धार्मिक स्थलों को करीब से देखना, उनके पीछे छिपी कहानियों को जानना और प्रकृति की गोद में समय बिताना बेहद पसंद है। चाहे वह किला हो, महल, मंदिर, बावड़ी, छतरी, नदी, झरना, पहाड़ या झील, हर जगह मेरे लिए इतिहास और आस्था का अनमोल संगम है। इतिहास का विद्यार्थी होने की वजह से प्राचीन धरोहरों, स्थानीय संस्कृति और इतिहास के रहस्यों में मेरी गहरी रुचि है। मुझे खास आनंद तब आता है जब मैं कलियुग के देवता बाबा खाटू श्याम और उनकी पावन नगरी खाटू धाम से जुड़ी ज्ञानवर्धक और उपयोगी जानकारियाँ लोगों तक पहुँचा पाता हूँ। इसके साथ मुझे अलग-अलग एरिया के लोगों से मिलकर उनके जीवन, रहन-सहन, खान-पान, कला और संस्कृति आदि के बारे में जानना भी अच्छा लगता है। साथ ही मैं कई विषयों के ऊपर कविताएँ भी लिखने का शौकीन हूँ। एक फार्मासिस्ट होने के नाते मुझे रोग, दवाइयाँ, जीवनशैली और हेल्थकेयर से संबंधित विषयों की भी अच्छी जानकारी है। अपनी शिक्षा और रुचियों से अर्जित ज्ञान को मैं ब्लॉग आर्टिकल्स और वीडियो के माध्यम से आप सभी तक पहुँचाने का प्रयास करता हूँ। 📩 किसी भी जानकारी या संपर्क के लिए आप मुझे यहाँ लिख

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