हिंदी कविताएँ भाग 1 - Hindi Poems Part 1, इसमें हिन्दी भाषा की कविताएँ सम्मिलित की गई हैं जिसमें अलग अलग मूड की कुल दस कविताएँ शामिल की गई हैं।
1. हमारा तिरंगा हिंदी कविता
भारत की शान, हमारा तिरंगासबकी पहचान, हमारा तिरंगा
पूरब की आन, पश्चिम की बानउत्तर की शान, दक्षिण का मानभारतीयों की जान, हमारा तिरंगा
भारत की शान, हमारा तिरंगासबकी पहचान, हमारा तिरंगा
घर-घर पर जब तिरंगा, शान से फहराएमन में श्रद्धा, आस्था, देशप्रेम जगाएदेश की पहचान, हमारा तिरंगा
भारत की शान, हमारा तिरंगासबकी पहचान, हमारा तिरंगा
तिरंगे का अशोक चक्र, बहुत कुछ सिखाएसमय का महत्व, 24 भागों में बताएभारत की प्रगति दिखाए, हमारा तिरंगा
भारत की शान, हमारा तिरंगासबकी पहचान, हमारा तिरंगा
हम सब एक है, तिरंगा सिखाता हैअपने तीनों रंगो के, मायने बताता हैभारत महान जताए, हमारा तिरंगा
भारत की शान, हमारा तिरंगासबकी पहचान, हमारा तिरंगा
2. नहीं सोचा था हिंदी कविता
नहीं सोचा था,कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगाजब जीवन अंधकार में डूबता जायेगाकिसी भी ओर उजाला नजर नहीं आयेगामन हद से ज्यादा आशंकित हो जायेगागुजरता बीतता, एक एक पल डराएगा
नहीं सोचा था,कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगाजब कुछ भी समझ में नहीं आयेगामन हमेशा किसी सोच में डूबा रहेगामेहनत बेअसर और भाग्य रूठ जायेगालगेगा कि सोना भी छुआ तो मिट्टी बन जायेगा
नहीं सोचा था,कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगाजब तथाकथित घर और परिवार छूट जायेगाजैसे अकेला आया था, उसी तरह अकेला रह जायेगाउम्मीद और भरोसा, इस कदर टूट कर बिखर जायेगादिल अब किसी पर भी यकीन नहीं कर पायेगा
नहीं सोचा था,कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगाजब जीवन की दोपहर में दर-दर भटकता रह जायेगाजीने की इच्छा शक्ति से धीरे धीरे दूर होता जायेगातू अब तक समझ में नहीं आया, आगे भी नहीं आयेगाशायद यही नियति तेरी, तू एक दिन यूँ ही गुजर जायेगा
नहीं सोचा था,
कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगा
जब जीवन अंधकार में डूबता जायेगा
किसी भी ओर उजाला नजर नहीं आयेगा
मन हद से ज्यादा आशंकित हो जायेगा
गुजरता बीतता, एक एक पल डराएगा
नहीं सोचा था,
कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगा
जब कुछ भी समझ में नहीं आयेगा
मन हमेशा किसी सोच में डूबा रहेगा
मेहनत बेअसर और भाग्य रूठ जायेगा
लगेगा कि सोना भी छुआ तो मिट्टी बन जायेगा
नहीं सोचा था,
कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगा
जब तथाकथित घर और परिवार छूट जायेगा
जैसे अकेला आया था, उसी तरह अकेला रह जायेगा
उम्मीद और भरोसा, इस कदर टूट कर बिखर जायेगा
दिल अब किसी पर भी यकीन नहीं कर पायेगा
नहीं सोचा था,
कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगा
जब जीवन की दोपहर में दर-दर भटकता रह जायेगा
जीने की इच्छा शक्ति से धीरे धीरे दूर होता जायेगा
तू अब तक समझ में नहीं आया, आगे भी नहीं आयेगा
शायद यही नियति तेरी, तू एक दिन यूँ ही गुजर जायेगा
4. फूलों को महक दी कुदरत ने हिंदी कविता
फूलों को महक दी कुदरत नेकाँटों को हमें महकाना हैजो काम किसी से हो ना सकावो काम हमें कर जाना है।
सूरज से उजाला क्यों मांगेचाँद सितारों से क्यों उलझेजीवन की अँधेरी रातों मेंअब खुद को हमें चमकाना है।
दौलत के नशे में चूर हो क्योंताकत पे बेहद मगरूर हो क्योंदुनिया है तमाशा दो दिन कासब छोड़ यहीं पर जाना है।
लफ्जों की भी कीमत होती हैलफ्जों का तुम सम्मान करोशायद वो हकीकत बन जाएजो लफ्ज अभी अफसाना है।
ऐ दोस्त बहारों का मौसमहर वक्त नहीं रहने वालाजो आज खिला है गुलशन मेंउस फूल को कल मुरझाना है।
फूलों को महक दी कुदरत ने
काँटों को हमें महकाना है
जो काम किसी से हो ना सका
वो काम हमें कर जाना है।
सूरज से उजाला क्यों मांगे
चाँद सितारों से क्यों उलझे
जीवन की अँधेरी रातों में
अब खुद को हमें चमकाना है।
दौलत के नशे में चूर हो क्यों
ताकत पे बेहद मगरूर हो क्यों
दुनिया है तमाशा दो दिन का
सब छोड़ यहीं पर जाना है।
लफ्जों की भी कीमत होती है
लफ्जों का तुम सम्मान करो
शायद वो हकीकत बन जाए
जो लफ्ज अभी अफसाना है।
ऐ दोस्त बहारों का मौसम
हर वक्त नहीं रहने वाला
जो आज खिला है गुलशन में
उस फूल को कल मुरझाना है।
5. सोशल मीडिया के सिपाही हिंदी कविता
जब से सोशल मीडिया आया हैफेसबुक व्हाट्सएप और ट्विटर का बुखारसभी तरफ छाया हैनशा इस कदर बढ़ गया हैनफरत का जहर हर तरफ फैल गया हैजीवन की आपाधापी मेंएक दौड़ सी लगी रहती हैहर मसला सोशल मीडिया पर सुलझाने के लिएएक होड़ सी लगी रहती है।
अगर बात देशभक्ति की हो तोहर कोई भगत सिंह बनकरशब्दों का असला लेकरसोशल मीडिया के परिसर मेंधमाके कर अपनी देशभक्ति साबित करता हैफर्क इतना है किभगत सिंह आजादी के लिएसूली पर चढ़ गए थेऔर ये सोशल मीडिया के क्रांतिकारीघर में बैठे-बैठेचाय कॉफी की चुस्कियों के साथवक्त की नजाकत को समझते हुएक्रान्ति को अंजाम देते हैं।
जब कोई आतंकवादी हमला होता है तोआवाम के अघोषित प्रतिनिधि बनकरपाकिस्तान को नेस्तनाबूद करने के लिएरात-दिन सोशल मीडिया परपोस्ट लिखते हैंजो इनके विचारों से सहमत नहीं होउसे गद्दार और देशद्रोही बताकरतुरंत पाकिस्तान भेजते हैं।
इन्हें गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार,महंगाई, बिजली, पानी आदि सेकोई मतलब नहीं हैइन्हें शहीदों के परिवार को मिलने वालीउस सहायता से भी कोई मतलब नहीं हैजो किसी सरकार ने शहीद होने परउस परिवार के लिए घोषित की थीइन्हें सरकारी सहायता के लिएभटकती शहीद की वीरांगना, अबोध बच्चों और माँ कीउन अश्रु पूरित आँखों से भी कोई मतलब नहीं हैजो अपने पति, पिता और पुत्र को खोने के बादसम्मान की उम्मीद में तकती है।
खुफिया विभाग द्वाराआतंकवादी हमले के अंदेशे के पश्चात भीये सत्ता को उसके उस नाकारापन के लिएकभी नहीं कोसते हैंजिसकी वजह से आतंकवादी हमला हो जाता हैये अपने आप को सैनिकों का शुभचिंतक बताकरसिर्फ ढिंढोरा पीटते हैंऔर सैनिकों को घटिया खाना मिलने पर भीसत्ता के खिलाफ नहीं बोलते हैं।
शायद ये अपनी देशभक्ति कोअपने फायदे के तराजू में तौलते हैंतभी तो ये अधिकतर समयसिर्फ अपने फायदे के लिए मुँह खोलते हैंसोशल मीडिया के इन तथाकथित सिपाहियों मेंअमूमन वो लोग ज्यादा होते हैंजो सक्षम तथा अच्छे ओहदों पर होते हैंजिनके घरों से शायद एक भी सैनिक नहीं निकलता हैये क्या जाने जब कोई सैनिक मरता हैतो कई दिनों तक उसके घर में चूल्हा नहीं जलता है।
इनके हिसाब से वास्तविक युद्ध भीसोशल मीडिया की पोस्टों की तरह लड़ा जाता हैपरन्तु ये नहीं जानते हैं किबार्डर पर जब एक जिंदगी जंग लड़ती हैतब उसके पीछे कई जिंदगियाँरातों को जाग-जागकर भगवान सेउसकी सलामती की दुआ करती हैं।
सरकारी अवार्ड लौटाने वालों को लताड़करकलाकारों को फिल्मों से निकलवाकरकभी मंदिर-मस्जिदकभी हिन्दू-मुस्लिमकभी कश्मीर को लेकरकिसी को भी, कभी भीदेशद्रोही का तमगा तुरंत देकरअपनी चपलता का परिचय देते रहते हैं।
गाली-गलौच और अपशब्द हैं इनके प्रमुख हथियारजिनसे ये अपने सभी विरोधियों पर करते हैं वारराहुल को पप्पू, ममता को गालीकेजरीवाल को खुजली बताकर, बजाते हैं तालीहर वो शख्स जो सत्ता के विरोध में बोलता हैइनके द्वारा देशद्रोही कहलाकरइनके कहर को झेलता हैऐसा लगता है कि येविपक्ष विहीन भारत चाहते हैंतभी तो किसी न किसी मुद्दे परस्वघोषित नृप द्वारा आयोजितअश्वमेध यज्ञ के अश्व को घुमाते है।
आधुनिक नृप भीसोशल मीडिया की ताकत से वाकिफ हैतभी तो अश्वमेध की सफलता के लिएसेनानायकों को सौंपी जिम्मेदारी हैसेनानायक चौबीसों घंटेरणनीतिक तैयारियों के तहतचाणक्य के उपाय-चतुष्ठय को अपनाकरनए-नए मैसेज तथा पोस्ट रचकरसोशल मीडिया पर अश्वमेध कीसफलता सुनिश्चित करते हैंनृप और उसके सेवक, काफी चतुर और सजग हैजो स्वयं सेनानायकों को फॉलो करपल-पल की रणनीति और तैयारियों पर नजर रखते हैं।
मार्केटिंग की ताकत सेमिट्टी को सोना बनाकर बेचा जा सकता हैभारतीय बहुत भावुक होते हैं इसलिएभावनाओं से खेलकर सत्ता तकफिर से पहुँचा जा सकता हैमार्केटिंग के सभी हुनर अपनाकरअपनी जयकार करवाओहिन्दू शेर की उपाधि के साथ फिर से सत्ता पाओ।
जब से सोशल मीडिया आया है
फेसबुक व्हाट्सएप और ट्विटर का बुखार
सभी तरफ छाया है
नशा इस कदर बढ़ गया है
नफरत का जहर हर तरफ फैल गया है
जीवन की आपाधापी में
एक दौड़ सी लगी रहती है
हर मसला सोशल मीडिया पर सुलझाने के लिए
एक होड़ सी लगी रहती है।
अगर बात देशभक्ति की हो तो
हर कोई भगत सिंह बनकर
शब्दों का असला लेकर
सोशल मीडिया के परिसर में
धमाके कर अपनी देशभक्ति साबित करता है
फर्क इतना है कि
भगत सिंह आजादी के लिए
सूली पर चढ़ गए थे
और ये सोशल मीडिया के क्रांतिकारी
घर में बैठे-बैठे
चाय कॉफी की चुस्कियों के साथ
वक्त की नजाकत को समझते हुए
क्रान्ति को अंजाम देते हैं।
जब कोई आतंकवादी हमला होता है तो
आवाम के अघोषित प्रतिनिधि बनकर
पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करने के लिए
रात-दिन सोशल मीडिया पर
पोस्ट लिखते हैं
जो इनके विचारों से सहमत नहीं हो
उसे गद्दार और देशद्रोही बताकर
तुरंत पाकिस्तान भेजते हैं।
इन्हें गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार,
महंगाई, बिजली, पानी आदि से
कोई मतलब नहीं है
इन्हें शहीदों के परिवार को मिलने वाली
उस सहायता से भी कोई मतलब नहीं है
जो किसी सरकार ने शहीद होने पर
उस परिवार के लिए घोषित की थी
इन्हें सरकारी सहायता के लिए
भटकती शहीद की वीरांगना, अबोध बच्चों और माँ की
उन अश्रु पूरित आँखों से भी कोई मतलब नहीं है
जो अपने पति, पिता और पुत्र को खोने के बाद
सम्मान की उम्मीद में तकती है।
खुफिया विभाग द्वारा
आतंकवादी हमले के अंदेशे के पश्चात भी
ये सत्ता को उसके उस नाकारापन के लिए
कभी नहीं कोसते हैं
जिसकी वजह से आतंकवादी हमला हो जाता है
ये अपने आप को सैनिकों का शुभचिंतक बताकर
सिर्फ ढिंढोरा पीटते हैं
और सैनिकों को घटिया खाना मिलने पर भी
सत्ता के खिलाफ नहीं बोलते हैं।
शायद ये अपनी देशभक्ति को
अपने फायदे के तराजू में तौलते हैं
तभी तो ये अधिकतर समय
सिर्फ अपने फायदे के लिए मुँह खोलते हैं
सोशल मीडिया के इन तथाकथित सिपाहियों में
अमूमन वो लोग ज्यादा होते हैं
जो सक्षम तथा अच्छे ओहदों पर होते हैं
जिनके घरों से शायद एक भी सैनिक नहीं निकलता है
ये क्या जाने जब कोई सैनिक मरता है
तो कई दिनों तक उसके घर में चूल्हा नहीं जलता है।
इनके हिसाब से वास्तविक युद्ध भी
सोशल मीडिया की पोस्टों की तरह लड़ा जाता है
परन्तु ये नहीं जानते हैं कि
बार्डर पर जब एक जिंदगी जंग लड़ती है
तब उसके पीछे कई जिंदगियाँ
रातों को जाग-जागकर भगवान से
उसकी सलामती की दुआ करती हैं।
सरकारी अवार्ड लौटाने वालों को लताड़कर
कलाकारों को फिल्मों से निकलवाकर
कभी मंदिर-मस्जिद
कभी हिन्दू-मुस्लिम
कभी कश्मीर को लेकर
किसी को भी, कभी भी
देशद्रोही का तमगा तुरंत देकर
अपनी चपलता का परिचय देते रहते हैं।
गाली-गलौच और अपशब्द हैं इनके प्रमुख हथियार
जिनसे ये अपने सभी विरोधियों पर करते हैं वार
राहुल को पप्पू, ममता को गाली
केजरीवाल को खुजली बताकर, बजाते हैं ताली
हर वो शख्स जो सत्ता के विरोध में बोलता है
इनके द्वारा देशद्रोही कहलाकर
इनके कहर को झेलता है
ऐसा लगता है कि ये
विपक्ष विहीन भारत चाहते हैं
तभी तो किसी न किसी मुद्दे पर
स्वघोषित नृप द्वारा आयोजित
अश्वमेध यज्ञ के अश्व को घुमाते है।
आधुनिक नृप भी
सोशल मीडिया की ताकत से वाकिफ है
तभी तो अश्वमेध की सफलता के लिए
सेनानायकों को सौंपी जिम्मेदारी है
सेनानायक चौबीसों घंटे
रणनीतिक तैयारियों के तहत
चाणक्य के उपाय-चतुष्ठय को अपनाकर
नए-नए मैसेज तथा पोस्ट रचकर
सोशल मीडिया पर अश्वमेध की
सफलता सुनिश्चित करते हैं
नृप और उसके सेवक, काफी चतुर और सजग है
जो स्वयं सेनानायकों को फॉलो कर
पल-पल की रणनीति और तैयारियों पर नजर रखते हैं।
मार्केटिंग की ताकत से
मिट्टी को सोना बनाकर बेचा जा सकता है
भारतीय बहुत भावुक होते हैं इसलिए
भावनाओं से खेलकर सत्ता तक
फिर से पहुँचा जा सकता है
मार्केटिंग के सभी हुनर अपनाकर
अपनी जयकार करवाओ
हिन्दू शेर की उपाधि के साथ फिर से सत्ता पाओ।
6. मैं नादान था हिंदी कविता
मैं नादान था जो इस भुलावे में रहाकि परिवार एक मंदिर की तरह होता हैजिसमें कई देवी-देवताओं का वास होता हैआखिर मैं इस सच्चाई को क्यों नहीं समझ पायाकि परिवार की वजह से ही राम को बनवास होता है
मैं नादान था जो इस भुलावे में रहाकि मेरे दिल को कोई पढ़ लेगाजान लेगा कि मुझमें कोई सनक नहीं हैबस एक ही कमी रह गई मुझ मेंकि मेरे पास सिक्कों की खनक नहीं है
मैं नादान था जो इस भुलावे में रहाकि दुनिया में कोई है जो मुझे जानता हैसुख में और दुख में मुझे अपना मानता हैमेरी आँखों से ही जान लेता है मेरे दिल का हालऔर मेरी हँसी को मुझसे ज्यादा पहचानता है
नादानी से निकल कर अब मैं ये जान चुका हूँदुनियादारी को हद से ज्यादा पहचान चुका हूँअपनो से ठोकरें खा कर इस बात को मान चुका हूँआज के युग में पैसा ही काबिलीयत का सबूत हैमैं अब अपनी काबिलीयत साबित करने की ठान चुका हूँ
मैं नादान था जो इस भुलावे में रहा
कि परिवार एक मंदिर की तरह होता है
जिसमें कई देवी-देवताओं का वास होता है
आखिर मैं इस सच्चाई को क्यों नहीं समझ पाया
कि परिवार की वजह से ही राम को बनवास होता है
मैं नादान था जो इस भुलावे में रहा
कि मेरे दिल को कोई पढ़ लेगा
जान लेगा कि मुझमें कोई सनक नहीं है
बस एक ही कमी रह गई मुझ में
कि मेरे पास सिक्कों की खनक नहीं है
मैं नादान था जो इस भुलावे में रहा
कि दुनिया में कोई है जो मुझे जानता है
सुख में और दुख में मुझे अपना मानता है
मेरी आँखों से ही जान लेता है मेरे दिल का हाल
और मेरी हँसी को मुझसे ज्यादा पहचानता है
नादानी से निकल कर अब मैं ये जान चुका हूँ
दुनियादारी को हद से ज्यादा पहचान चुका हूँ
अपनो से ठोकरें खा कर इस बात को मान चुका हूँ
आज के युग में पैसा ही काबिलीयत का सबूत है
मैं अब अपनी काबिलीयत साबित करने की ठान चुका हूँ
10. मैं हूँ विद्यार्थी हिंदी कविता
जय हो माँ भारतीमैं हूँ विद्यार्थीआया शरण में तेरीअरज तू सुन ले मेरीदेखते देखते साल चला गयाजाते जाते मुझको जला गयाइस साल मैं पढ़ ना पायामजे भी कर ना पायाअब बेडा पार लगा दे माँमुझको पास करा दे माँ
जय हो माँ भारतीमैं हूँ विद्यार्थीकिससे करूँ मेरे मन की बातदोस्त भी माथा पकडे रोये दिन रातमैंने बोला यार मैं तो पढ़ नहीं पायावो बोला यार मैं भी पढ़ नहीं पायासारे बोले यार हम तो पढ़ नहीं पाएकोरस में सारे रोये हाये हायेहाये को याहू में बदलवा दे माँमुझको पास करा दे माँ
जय हो माँ भारतीमैं हूँ विद्यार्थीलगा था इस साल भीप्रमोट हो जाऊंगाबिना पढ़े लिखे हीपास हो जाऊँगाअगर एग्जाम हुईकुछ भी लिख नहीं पाऊंगामुझको प्रमोट करा दे माँमुझको पास करा दे माँ
जय हो माँ भारतीमैं हूँ विद्यार्थीअगर एग्जाम हुईडब्बा गोल हो जायेगातेरा ये पक्का भक्तकहाँ मुँह छिपायेगादंडवत प्रणाम करकेनारियल चढाऊंगाअगरबत्ती जलाऊंगाभक्ति की शक्ति दिखा दे माँमुझको पास करा दे माँ
जय हो माँ भारतीमैं हूँ विद्यार्थीजय हो माँ भारतीमैं हूँ विद्यार्थी ...
जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
आया शरण में तेरी
अरज तू सुन ले मेरी
देखते देखते साल चला गया
जाते जाते मुझको जला गया
इस साल मैं पढ़ ना पाया
मजे भी कर ना पाया
अब बेडा पार लगा दे माँ
मुझको पास करा दे माँ
जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
किससे करूँ मेरे मन की बात
दोस्त भी माथा पकडे रोये दिन रात
मैंने बोला यार मैं तो पढ़ नहीं पाया
वो बोला यार मैं भी पढ़ नहीं पाया
सारे बोले यार हम तो पढ़ नहीं पाए
कोरस में सारे रोये हाये हाये
हाये को याहू में बदलवा दे माँ
मुझको पास करा दे माँ
जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
लगा था इस साल भी
प्रमोट हो जाऊंगा
बिना पढ़े लिखे ही
पास हो जाऊँगा
अगर एग्जाम हुई
कुछ भी लिख नहीं पाऊंगा
मुझको प्रमोट करा दे माँ
मुझको पास करा दे माँ
जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
अगर एग्जाम हुई
डब्बा गोल हो जायेगा
तेरा ये पक्का भक्त
कहाँ मुँह छिपायेगा
दंडवत प्रणाम करके
नारियल चढाऊंगा
अगरबत्ती जलाऊंगा
भक्ति की शक्ति दिखा दे माँ
मुझको पास करा दे माँ
जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी ...
11. जिंदगी निकल गई हिंदी कविता
अगर मैं,चला जाऊँ दुनिया सेतो क्या होगा?रोएँगे चंद लोगदुखी होंगे चंद लोगबताएँगे चंद लोग इसेभगवान की मर्जीफिर कुछ दिनों के बादसबकुछ वैसा ही हो जाएगाजैसा मेरे जाने से पहले था
इंसान का अस्तित्वक्षणभंगुर होता हैइस रहस्य का ज्ञानइंसान को तब होता हैजब काया साथ नहीं देतीऔर मन रोता हैयादें लगती हैं सतानेसालते हैं पुराने जमानेबीते हुए वक्त की रेतहाथों से ऐसे फिसल गईमैं मुट्ठी भींचने में लगा रहाऔर जिंदगी निकल गई
अगर मैं,
चला जाऊँ दुनिया से
तो क्या होगा?
रोएँगे चंद लोग
दुखी होंगे चंद लोग
बताएँगे चंद लोग इसे
भगवान की मर्जी
फिर कुछ दिनों के बाद
सबकुछ वैसा ही हो जाएगा
जैसा मेरे जाने से पहले था
इंसान का अस्तित्व
क्षणभंगुर होता है
इस रहस्य का ज्ञान
इंसान को तब होता है
जब काया साथ नहीं देती
और मन रोता है
यादें लगती हैं सताने
सालते हैं पुराने जमाने
बीते हुए वक्त की रेत
हाथों से ऐसे फिसल गई
मैं मुट्ठी भींचने में लगा रहा
और जिंदगी निकल गई
1. जवानी का गुरूर हिंदी कविता
जब बचपन बीते और किशोरावस्था जाने लगेजब मन नए नए अरमान सजाने लगेजब सपने मन मोहक और सुहाने लगेजब रात और दिन अपना फर्क भुलाने लगेयही जवानी का गुरूर है।
जब पढाई के अलावा भी दुनिया है, ये बात दोस्त समझाने लगेजब माता-पिता की बातें बेमानी सी लगने लगेजब दिमाग को बंधक बनाकर दिल का शासन चलने लगेजब हर कृत्य को दिल के बेतुके तर्क ढ़कने लगेयही जवानी का गुरूर है।
जब मित्र मंडली में नए इरादों के साथ साथ नए सपने पलने लगेजब कोई सही राह दिखाने की कोशिश करें तो वो खलने लगेजब बातों बातों में ही दिल बार बार जलने लगेजब दूसरों को देखकर हाथ मलने लगेयही जवानी का गुरूर है।
जब दिल में इरादे चट्टान की तरह मजबूत होने लगेजब मंजिल की तरफ कदम बढे और रुकने लगेजब गिर गिरकर हर हाल में आगे बढने लगेजब किसी के सपने हमारी आँखों में पलने लगेयही जवानी का गुरूर है।
जब खुद का साया खुद से ही बातें करने लगेजब खुद के साये में किसी ओर की छवि नजर आने लगेजब खुद का साया अक्स बनकर सताने लगेजब अपने साये से दूर भाग जाने का मन करेंयही जवानी का गुरूर है।
जब मन में लहरों की माफिक उमंगें उठने लगेजब दिल जो कहे वही करने का मन करने लगेजब साँसों को महकाने वाली खुशबु का अहसास होने लगेजब सारी कायनात अपनी सी लगने लगेयही जवानी का गुरूर है।
जब मन में नए नए अरमान पलने लगेजब किसी की देखकर धडकनें बहुत तेज चलने लगेजब किसी को छुप छुप कर निहारने का मन करने लगेजब किसी को हर सुख देने और उसके हर गम को लेने का मन करने लगेयही जवानी का गुरूर है।
जब सारी दुनिया दुश्मन सी लगने लगेजब दुनिया से बगावत करने का दिल करने लगेजब किसी पर जान न्योछावर करने का इरादा होने लगेजब किसी के लिए सारी दुनिया से टकराने का दिल करने लगेयही जवानी का गुरूर है।
जब गुरूर उतरने लगता है तब सच्चाई सामने आती हैजब सुरूर का धुआँ हटने लगता है तब दिल को दहलाती हैजब दिमाग को पुनः सत्ता मिलती है तब दिल धक से रह जाता हैजो लुट चुका होता है उसकी भरपाई दिल कभी भी नहीं कर पाता हैदोस्तों जवानी को जिओ परन्तु इसके गुरूर को मगरूर मत होने दोअपनी मंजिलों को हासिल करने के दृढ़ इरादों को कभी मत खोने दोयही जवानी का गुरूर है।
जब बचपन बीते और किशोरावस्था जाने लगे
जब मन नए नए अरमान सजाने लगे
जब सपने मन मोहक और सुहाने लगे
जब रात और दिन अपना फर्क भुलाने लगे
यही जवानी का गुरूर है।
जब पढाई के अलावा भी दुनिया है, ये बात दोस्त समझाने लगे
जब माता-पिता की बातें बेमानी सी लगने लगे
जब दिमाग को बंधक बनाकर दिल का शासन चलने लगे
जब हर कृत्य को दिल के बेतुके तर्क ढ़कने लगे
यही जवानी का गुरूर है।
जब मित्र मंडली में नए इरादों के साथ साथ नए सपने पलने लगे
जब कोई सही राह दिखाने की कोशिश करें तो वो खलने लगे
जब बातों बातों में ही दिल बार बार जलने लगे
जब दूसरों को देखकर हाथ मलने लगे
यही जवानी का गुरूर है।
जब दिल में इरादे चट्टान की तरह मजबूत होने लगे
जब मंजिल की तरफ कदम बढे और रुकने लगे
जब गिर गिरकर हर हाल में आगे बढने लगे
जब किसी के सपने हमारी आँखों में पलने लगे
यही जवानी का गुरूर है।
जब खुद का साया खुद से ही बातें करने लगे
जब खुद के साये में किसी ओर की छवि नजर आने लगे
जब खुद का साया अक्स बनकर सताने लगे
जब अपने साये से दूर भाग जाने का मन करें
यही जवानी का गुरूर है।
जब मन में लहरों की माफिक उमंगें उठने लगे
जब दिल जो कहे वही करने का मन करने लगे
जब साँसों को महकाने वाली खुशबु का अहसास होने लगे
जब सारी कायनात अपनी सी लगने लगे
यही जवानी का गुरूर है।
जब मन में नए नए अरमान पलने लगे
जब किसी की देखकर धडकनें बहुत तेज चलने लगे
जब किसी को छुप छुप कर निहारने का मन करने लगे
जब किसी को हर सुख देने और उसके हर गम को लेने का मन करने लगे
यही जवानी का गुरूर है।
जब सारी दुनिया दुश्मन सी लगने लगे
जब दुनिया से बगावत करने का दिल करने लगे
जब किसी पर जान न्योछावर करने का इरादा होने लगे
जब किसी के लिए सारी दुनिया से टकराने का दिल करने लगे
यही जवानी का गुरूर है।
जब गुरूर उतरने लगता है तब सच्चाई सामने आती है
जब सुरूर का धुआँ हटने लगता है तब दिल को दहलाती है
जब दिमाग को पुनः सत्ता मिलती है तब दिल धक से रह जाता है
जो लुट चुका होता है उसकी भरपाई दिल कभी भी नहीं कर पाता है
दोस्तों जवानी को जिओ परन्तु इसके गुरूर को मगरूर मत होने दो
अपनी मंजिलों को हासिल करने के दृढ़ इरादों को कभी मत खोने दो
यही जवानी का गुरूर है।
2. शायद यही बुढ़ापा है हिंदी कविता
जब यौवन ढल ढल जाता हैजब यौवन पतझड़ बन जाता हैजब स्वास्थ्य कहीं खोने लगता हैजब शरीर क्षीण होने लगता हैशायद यही बुढ़ापा है।
जब सत्ता छिनती जाती हैजब सुना अनसुना होने लगता हैजब कोई पास नहीं रुकता हैजब खून के रिश्ते रोते हैंशायद यही बुढ़ापा है।
जब कुछ कर नहीं पाते हैंजब मन मसोसकर रह जाते हैंजब बीते दिन बिसराते हैंजब वक्त और परिस्थितियाँ बदल न पाते हैंशायद यही बुढ़ापा है।
जब मन में ज्वार-भाटे उठते हैंजब हर मौसम पतझड़ लगता हैजब पुराने दरख्तों से खुद की तुलना होती हैजब मन सदैव विचलित सा रहता हैशायद यही बुढ़ापा है।
जब दैहिक आकर्षण कम होने लगता हैजब आत्मिक प्रेम बढ़ने लगता हैजब समय रुपी दर्पण नए चेहरे दिखाता हैजब कर्मों का फल याद आता हैशायद यही बुढ़ापा है।
जब हर वक्त अकेलापन रुलाता हैजब वक्त काटना दूभर हो जाता हैजब हर पल दिल घबराता हैजब यादों का भंवर कचोटता हैशायद यही बुढ़ापा है।
जब रक्त के सम्बन्ध रंग दिखाते हैंजब अपनो में उपेक्षा पाते हैंजब बोझ समझ लिया जाता हैजब अहसान और उपकार गिनाये जाते हैंशायद यही बुढ़ापा है।
इस उम्र में बस एक ये रिश्ता जो सब रिश्तों में अनोखा हैयह रक्त का नहीं, जिस्मों का नहीं, सिर्फ आत्माओं का रिश्ता हैयह रिश्ता उम्र के साथ गहरा ओर गहरा होता जाता हैयह निस्वार्थ प्रेम के साथ मृत्यु पर्यन्त निभाया जाता हैयह पति पत्नी का रिश्ता होता है जो सुख दुःख का सच्चा साथी होता हैशायद यही बुढ़ापा है।
जब यौवन ढल ढल जाता है
जब यौवन पतझड़ बन जाता है
जब स्वास्थ्य कहीं खोने लगता है
जब शरीर क्षीण होने लगता है
शायद यही बुढ़ापा है।
जब सत्ता छिनती जाती है
जब सुना अनसुना होने लगता है
जब कोई पास नहीं रुकता है
जब खून के रिश्ते रोते हैं
शायद यही बुढ़ापा है।
जब कुछ कर नहीं पाते हैं
जब मन मसोसकर रह जाते हैं
जब बीते दिन बिसराते हैं
जब वक्त और परिस्थितियाँ बदल न पाते हैं
शायद यही बुढ़ापा है।
जब मन में ज्वार-भाटे उठते हैं
जब हर मौसम पतझड़ लगता है
जब पुराने दरख्तों से खुद की तुलना होती है
जब मन सदैव विचलित सा रहता है
शायद यही बुढ़ापा है।
जब दैहिक आकर्षण कम होने लगता है
जब आत्मिक प्रेम बढ़ने लगता है
जब समय रुपी दर्पण नए चेहरे दिखाता है
जब कर्मों का फल याद आता है
शायद यही बुढ़ापा है।
जब हर वक्त अकेलापन रुलाता है
जब वक्त काटना दूभर हो जाता है
जब हर पल दिल घबराता है
जब यादों का भंवर कचोटता है
शायद यही बुढ़ापा है।
जब रक्त के सम्बन्ध रंग दिखाते हैं
जब अपनो में उपेक्षा पाते हैं
जब बोझ समझ लिया जाता है
जब अहसान और उपकार गिनाये जाते हैं
शायद यही बुढ़ापा है।
इस उम्र में बस एक ये रिश्ता जो सब रिश्तों में अनोखा है
यह रक्त का नहीं, जिस्मों का नहीं, सिर्फ आत्माओं का रिश्ता है
यह रिश्ता उम्र के साथ गहरा ओर गहरा होता जाता है
यह निस्वार्थ प्रेम के साथ मृत्यु पर्यन्त निभाया जाता है
यह पति पत्नी का रिश्ता होता है जो सुख दुःख का सच्चा साथी होता है
शायद यही बुढ़ापा है।
4. मैं और मेरे कॉलेज के दोस्त हिंदी कविता
कॉलेज के दिनों में मिले मुझे कई अनजाने अपनेसब नें साथ में मिल जुल कर देखे थे सुनहरे सपनेकॉलेज का वक्त बीता और सब का साथ छूट गयाधीरे धीरे सबका आपस में संपर्क और नाता टूट गया
गुजरते वक्त के साथ सब प्रोफेशनल होते गएचौबीसों घंटे सब अपने प्रोफेशन में खोते गएभूलने लगे उन दिनों को जो अब कभी न लौट पाएँगेउम्र के एक दौर में पुरानी यादें बनकर तड़पाएँगे
धीरे धीरे मेरे साथ मेरे सभी दोस्त पकने लगे हैंअपने सफेद और उड़ते बालों को ढकने लगे हैंऐसा नहीं है कि पहले किसी वजह से जागते थे रातों मेंलेकिन अब रातों में बेवजह जगने लगे हैं
उम्र ऐसी आ गई कि ना बुढ़ापा है और ना जवानी हैशरीर थकने लगा है लेकिन मन में अभी भी रवानी हैपापा, चाचा, ताऊ का किरदार निभाने लग गए है मगर'दिल तो बच्चा है जी' गाते हुए अभी भी हसरतें पुरानी है
कभी जब तन्हा होते हैं तो याद कर लेते हैं पुराने दिनदेखते देखते फुर्र से कहाँ उड़ गए वो सुनहरे पल छिनकभी कभी मन करता है कि उस दौर में फिर से लौट जाऊँसबके गले लगूँ, कुछ उनकी सुनूँ, कुछ अपनी सुनाऊँ
कॉलेज के दिनों में मिले मुझे कई अनजाने अपने
सब नें साथ में मिल जुल कर देखे थे सुनहरे सपने
कॉलेज का वक्त बीता और सब का साथ छूट गया
धीरे धीरे सबका आपस में संपर्क और नाता टूट गया
गुजरते वक्त के साथ सब प्रोफेशनल होते गए
चौबीसों घंटे सब अपने प्रोफेशन में खोते गए
भूलने लगे उन दिनों को जो अब कभी न लौट पाएँगे
उम्र के एक दौर में पुरानी यादें बनकर तड़पाएँगे
धीरे धीरे मेरे साथ मेरे सभी दोस्त पकने लगे हैं
अपने सफेद और उड़ते बालों को ढकने लगे हैं
ऐसा नहीं है कि पहले किसी वजह से जागते थे रातों में
लेकिन अब रातों में बेवजह जगने लगे हैं
उम्र ऐसी आ गई कि ना बुढ़ापा है और ना जवानी है
शरीर थकने लगा है लेकिन मन में अभी भी रवानी है
पापा, चाचा, ताऊ का किरदार निभाने लग गए है मगर
'दिल तो बच्चा है जी' गाते हुए अभी भी हसरतें पुरानी है
कभी जब तन्हा होते हैं तो याद कर लेते हैं पुराने दिन
देखते देखते फुर्र से कहाँ उड़ गए वो सुनहरे पल छिन
कभी कभी मन करता है कि उस दौर में फिर से लौट जाऊँ
सबके गले लगूँ, कुछ उनकी सुनूँ, कुछ अपनी सुनाऊँ
5. पकौड़ा पॉलिटिक्स में पिसता युवा हिंदी कविता
अपने जीवन को बनते देख जुआवजीरे आजम की इस सलाह से बहुत निराश आज का युवाकि पकौड़े तलना एक रोजगार हैजो पकौड़े नहीं तल सकता, सही मायनों में वही बेरोजगार है।
जब से बेरोजगारी के नए उपायों में पकौड़ा दर्शन लागू हुआतब बेरोजगारी का इलाज लगने लगा सिर्फ ईश्वर की दुआनेताओं के तो भाषण ही उनके शासन बन जाते हैंसत्ता के मद में ये बेरोजगारों से सिर्फ पकौड़े तलवाते हैं।
सभी नेता गण वादे करके क्यों मुकर जाते हैं?अपने किए हुए वादों को जुमला क्यों बतलाते हैं?ऐसा लगता है कि वादे करके मुकर जाना नेताओं का जन्मसिद्ध अधिकार हैतभी तो बेरोजगार, गरीब तथा आम आदमी का सम्पूर्ण जीवन ही बेकार है।
रोजगार का वादा करके जिन्हें मँझधार में छोड़ दियाअपना इच्छित लक्ष्य पाकर बेरोजगारों से मुँह मोड़ लियावादा था हर वर्ष करोड़ों नौकरियों का, कम से कम लाखों तो देतेउम्मीद बनाये रखने के लिए कुछ और जुमले ही कह देते।
हुक्मरान के अनुचरों की अगुवाई में आज घर-घर पकौड़ा गान हो रहा हैऐसा लगता है कि पकौड़ा ही बेरोजगारों का भगवान हो रहा हैवह दिन दूर नहीं जब पकौड़ा रोजगारेश्वर जैसी श्रद्धा पाएगारोजगार के पूरक श्रद्धेय पकौड़े को फिर कोई कैसे खाएगा?
गलियों से संसद तक “पकौड़ा रोजगार” का गुणगान बढ़ा हैऐसा लगता है कि आम आदमी पकौड़ा ज्ञान के लिए ही खड़ा हैकोई राज्यसभा में तो कोई अन्यत्र पकौड़ा भक्ति में लीन हुआसभी भक्तजनों का मन पकौड़ा चालीसा में पूर्णतया तल्लीन हुआ।
पकौड़े तलने वालों की शान में चार चाँद लगने लगेपकौड़े की रेहड़ी लगाने वालों से रातों रात लोग जलने लगेपकौड़ा टीवी तथा पकौड़ा न्यूज पर हर जगह इनके किस्से चलने लगेसमझदार है ये लोग जो शिक्षा में वक्त बिगाड़े बिना पकौड़े तलने लगे।
शायद जल्द ही “पकौड़ा रोजगार मंत्रालय” तथा “पकौड़ा रोजगार मंत्री” सामने आएँकई किस्म के पकौड़े तलवाकर “पकौड़ा रोजगार मंत्री” बेरोजगारों के हाथ थामते जाएँबेरोजगारों को केवल एक शर्त पर बाँटा जाएगा “पकौड़ा रोजगार लोन”केवल “जिओ डिजिटल लाइफ” के साथ आपको करना होगा एक फोन।
बेरोजगारों की सत्ता प्रमुखों से यही इल्तिजा है कि शिक्षा का मखौल ना उड़ाइएहर वर्ष करोड़ों रोजगार देने के जो वादे किए हैं बस उन्हें निभाइएरोजगार के अवसर ना देकर, सरकार की नाकामियों को पकौड़ों के पीछे मत छिपाइएबेरोजगारों को रोजगार चाहिए, उनसे रोजगार के नाम पर पकौड़े मत तलवाइए।
पकौड़े तलने के लिए उच्च शिक्षा की जरूरत नहीं होती हैउच्च शिक्षित युवा जब पकौड़े तलता है तो ज्ञान की देवी रोती हैपकौड़े तलना कोई गर्व की बात नहीं, यह तो पेट पालने की मजबूरी हैअगर इसमें गर्व नजर आता है, तो क्या, आज से हर नेता पुत्र के लिए पकौड़े तलना जरूरी है?
अपने जीवन को बनते देख जुआ
वजीरे आजम की इस सलाह से बहुत निराश आज का युवा
कि पकौड़े तलना एक रोजगार है
जो पकौड़े नहीं तल सकता, सही मायनों में वही बेरोजगार है।
जब से बेरोजगारी के नए उपायों में पकौड़ा दर्शन लागू हुआ
तब बेरोजगारी का इलाज लगने लगा सिर्फ ईश्वर की दुआ
नेताओं के तो भाषण ही उनके शासन बन जाते हैं
सत्ता के मद में ये बेरोजगारों से सिर्फ पकौड़े तलवाते हैं।
सभी नेता गण वादे करके क्यों मुकर जाते हैं?
अपने किए हुए वादों को जुमला क्यों बतलाते हैं?
ऐसा लगता है कि वादे करके मुकर जाना नेताओं का जन्मसिद्ध अधिकार है
तभी तो बेरोजगार, गरीब तथा आम आदमी का सम्पूर्ण जीवन ही बेकार है।
रोजगार का वादा करके जिन्हें मँझधार में छोड़ दिया
अपना इच्छित लक्ष्य पाकर बेरोजगारों से मुँह मोड़ लिया
वादा था हर वर्ष करोड़ों नौकरियों का, कम से कम लाखों तो देते
उम्मीद बनाये रखने के लिए कुछ और जुमले ही कह देते।
हुक्मरान के अनुचरों की अगुवाई में आज घर-घर पकौड़ा गान हो रहा है
ऐसा लगता है कि पकौड़ा ही बेरोजगारों का भगवान हो रहा है
वह दिन दूर नहीं जब पकौड़ा रोजगारेश्वर जैसी श्रद्धा पाएगा
रोजगार के पूरक श्रद्धेय पकौड़े को फिर कोई कैसे खाएगा?
गलियों से संसद तक “पकौड़ा रोजगार” का गुणगान बढ़ा है
ऐसा लगता है कि आम आदमी पकौड़ा ज्ञान के लिए ही खड़ा है
कोई राज्यसभा में तो कोई अन्यत्र पकौड़ा भक्ति में लीन हुआ
सभी भक्तजनों का मन पकौड़ा चालीसा में पूर्णतया तल्लीन हुआ।
पकौड़े तलने वालों की शान में चार चाँद लगने लगे
पकौड़े की रेहड़ी लगाने वालों से रातों रात लोग जलने लगे
पकौड़ा टीवी तथा पकौड़ा न्यूज पर हर जगह इनके किस्से चलने लगे
समझदार है ये लोग जो शिक्षा में वक्त बिगाड़े बिना पकौड़े तलने लगे।
शायद जल्द ही “पकौड़ा रोजगार मंत्रालय” तथा “पकौड़ा रोजगार मंत्री” सामने आएँ
कई किस्म के पकौड़े तलवाकर “पकौड़ा रोजगार मंत्री” बेरोजगारों के हाथ थामते जाएँ
बेरोजगारों को केवल एक शर्त पर बाँटा जाएगा “पकौड़ा रोजगार लोन”
केवल “जिओ डिजिटल लाइफ” के साथ आपको करना होगा एक फोन।
बेरोजगारों की सत्ता प्रमुखों से यही इल्तिजा है कि शिक्षा का मखौल ना उड़ाइए
हर वर्ष करोड़ों रोजगार देने के जो वादे किए हैं बस उन्हें निभाइए
रोजगार के अवसर ना देकर, सरकार की नाकामियों को पकौड़ों के पीछे मत छिपाइए
बेरोजगारों को रोजगार चाहिए, उनसे रोजगार के नाम पर पकौड़े मत तलवाइए।
पकौड़े तलने के लिए उच्च शिक्षा की जरूरत नहीं होती है
उच्च शिक्षित युवा जब पकौड़े तलता है तो ज्ञान की देवी रोती है
पकौड़े तलना कोई गर्व की बात नहीं, यह तो पेट पालने की मजबूरी है
अगर इसमें गर्व नजर आता है, तो क्या, आज से हर नेता पुत्र के लिए पकौड़े तलना जरूरी है?
6. तुम प्रचार करने कब आओगे हिंदी कविता
उसके मुँह से आती है आवाज, लगातारशिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और विकासवो बात ना दूजी करता हैउसकी इन्हीं बातों से जनता का ध्यान भटकता है,तुम कब इसको भटकाओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
मिश्रा, वर्मा, बग्गा, ठाकुरसब राष्ट्रवाद में डूबे हैंजो हमसे सहमत नहींउसके नेक नहीं मंसूबे हैं,तुम कब ये आभास कराओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
शाह गिनाते सीएएवो बात स्कूल की करता हैशाह बताते शाहीन बागवो बात स्वास्थ्य की करता है,तुम कब इनसे भटकाओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
सभी क्षत्रप आखिर कब तकउस आप प्रधान से टकराएँगेलगता है कि सीएए और शाहीन बागतब असली रंग दिखाएँगे,जब तुम इनको दोहराओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
बहुत कम समय है आ जाओसत्ता का वनवास मिटा जाओइस बार अगर तुम आओगेपिछला परिणाम ना पाओगे,बस तुम ही हमको जितवाओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
पिछली बार ना सीएए था, ना शाहीन बागइस बार हैं मनमाफिक मुद्दे तमामहिंदुत्व रुपी लोहा गर्म है हथौड़ा मारोचुनाव रुपी वैतरणी से हमें तारो,तुम कब नैया पार लगाओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
जिसने दिल्ली की सत्ता को साध लियाउसी ने हिंदुस्तान पर राज कियाकेंद्र की सत्ता के बाद भी कुछ कमी सी हैअजी, हमारे हाथ में अभी दिल्ली जो नहीं है,तुम कब दिल्ली दिलवाओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
यदि फिर भी समय ना माकूल हुआगर, इस बार भी परिणाम प्रतिकूल हुआतुम पर हार का लांछन ना आएगायह तो दिल्ली की फ्री फ्री जनता पर जाएगा,तुम कब भयमुक्त होकर आओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
उसके मुँह से आती है आवाज, लगातार
शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और विकास
वो बात ना दूजी करता है
उसकी इन्हीं बातों से जनता का ध्यान भटकता है,
तुम कब इसको भटकाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
मिश्रा, वर्मा, बग्गा, ठाकुर
सब राष्ट्रवाद में डूबे हैं
जो हमसे सहमत नहीं
उसके नेक नहीं मंसूबे हैं,
तुम कब ये आभास कराओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
शाह गिनाते सीएए
वो बात स्कूल की करता है
शाह बताते शाहीन बाग
वो बात स्वास्थ्य की करता है,
तुम कब इनसे भटकाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
सभी क्षत्रप आखिर कब तक
उस आप प्रधान से टकराएँगे
लगता है कि सीएए और शाहीन बाग
तब असली रंग दिखाएँगे,
जब तुम इनको दोहराओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
बहुत कम समय है आ जाओ
सत्ता का वनवास मिटा जाओ
इस बार अगर तुम आओगे
पिछला परिणाम ना पाओगे,
बस तुम ही हमको जितवाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
पिछली बार ना सीएए था, ना शाहीन बाग
इस बार हैं मनमाफिक मुद्दे तमाम
हिंदुत्व रुपी लोहा गर्म है हथौड़ा मारो
चुनाव रुपी वैतरणी से हमें तारो,
तुम कब नैया पार लगाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
जिसने दिल्ली की सत्ता को साध लिया
उसी ने हिंदुस्तान पर राज किया
केंद्र की सत्ता के बाद भी कुछ कमी सी है
अजी, हमारे हाथ में अभी दिल्ली जो नहीं है,
तुम कब दिल्ली दिलवाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
यदि फिर भी समय ना माकूल हुआ
गर, इस बार भी परिणाम प्रतिकूल हुआ
तुम पर हार का लांछन ना आएगा
यह तो दिल्ली की फ्री फ्री जनता पर जाएगा,
तुम कब भयमुक्त होकर आओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
9. सोनू सूद नायक बन गया हिंदी कविता
कोरोना महामारी के इस डरावने दौर मेंजब चारों तरफ घूम रहे हैं यमदूततब वो लोगों की मदद कर रहा बनकर देवदूतउस इंसान का नाम है सोनू सूद, सोनू सूद
लॉकडाउन में लोगों को खाना खिलायापरदेसी मजदूरों को उनके घर भिजवायाबस तो बस, हवाई जहाज भी चलवा दियाइसने कई बिछुड़ों को फिर से मिलवा दिया
अब महामारी काफी विकराल रूप ले रही हैदवा के साथ-साथ दुआ भी बेअसर हो रही हैदुवाओं का ही आसरा है, दवा की कमी बता रहे हैंदवाओं के लिए भी अब लोग, इन पर ही भरोसा जता रहे हैं
बहुत से लोगों ने इस आपदा को अवसर बनाया हैपूरी उम्र में ना कमाया उससे अधिक कमाया हैमरीज अमीर हो या गरीब, जवान हो या बुजुर्ग, चाहे जैसा हैअवसरवादियों लिए तो जान की कीमत सिर्फ और सिर्फ पैसा है
जिनको करनी चाहिए थी मदद वो सभी गायब हो गएजिन्हें हमने बनाया था साहब ना जाने वो कहाँ खो गएइनकी जगह मदद कर ये "सूद" सहित दिलों में घर कर गयाफिल्मों का यह खलनायक "सोनू" ना जाने कब नायक बन गया
कोरोना महामारी के इस डरावने दौर में
जब चारों तरफ घूम रहे हैं यमदूत
तब वो लोगों की मदद कर रहा बनकर देवदूत
उस इंसान का नाम है सोनू सूद, सोनू सूद
लॉकडाउन में लोगों को खाना खिलाया
परदेसी मजदूरों को उनके घर भिजवाया
बस तो बस, हवाई जहाज भी चलवा दिया
इसने कई बिछुड़ों को फिर से मिलवा दिया
अब महामारी काफी विकराल रूप ले रही है
दवा के साथ-साथ दुआ भी बेअसर हो रही है
दुवाओं का ही आसरा है, दवा की कमी बता रहे हैं
दवाओं के लिए भी अब लोग, इन पर ही भरोसा जता रहे हैं
बहुत से लोगों ने इस आपदा को अवसर बनाया है
पूरी उम्र में ना कमाया उससे अधिक कमाया है
मरीज अमीर हो या गरीब, जवान हो या बुजुर्ग, चाहे जैसा है
अवसरवादियों लिए तो जान की कीमत सिर्फ और सिर्फ पैसा है
जिनको करनी चाहिए थी मदद वो सभी गायब हो गए
जिन्हें हमने बनाया था साहब ना जाने वो कहाँ खो गए
इनकी जगह मदद कर ये "सूद" सहित दिलों में घर कर गया
फिल्मों का यह खलनायक "सोनू" ना जाने कब नायक बन गया
10. ये रातों का सूनापन हिंदी कविता
ये रातों का सूनापन, ये सन्नाटाकब जाएगा मेरे मन सेकब तक चुराएगी नींदे मेरीये चिंताएँ।
क्यों सोचती हूँ उनके लिएजिन्होंने मुझे तोड़ा हैआज मैं उन्हीं लोगों के लिएव्याकुल हूँजिन्होंने मुझे यूँ इस हाल पे छोड़ा है।
क्या रिश्ते ऐसे होते हैंजो अपनों को यूँ ठुकराते हैंक्यूँ मुँह फेरा सबने मुझसेमैंने तो परायों को भी अपना मानादिए संस्कार माँ ने जोउन सबको जी जान से निभाया।
जन्म लिया जिस घर में मैंनेछोड़ आई उन अपनों कोइस घर में आकर त्याग दियाअपने सभी इच्छित सपनों को।
जो न किया माँ-बाप, भाई-बहन के लिएसब कुछ किया इन परायों के लिएकभी स्वीकारा नहीं दिल से इन्होंनेजिनको मैंने अपना माना।
क्या खता हुई मुझसेये समझ नहीं पाई हूँबहुत सी अनकही हरकतों से लगता हैमैं परायी थी और अभी भी पराई हूँ।
जब तक सर झुका करसारे आदेशों का अक्षरशः पालन कियातब तक सब खुश थे मुझसेलेकिन जब मैंने जीना चाहातो सबने मुझको ठुकराया।
ऐसी जगह पर भी मुझे मिलाकोई एक मेरा अपनाजो हाथ पकड़ लाया घर मेंवही समझता है मेरा सपना
उसने मुझे संबल देकर संभालाइस रिश्ते को जी करमन को खुश कर लेती हूँ।लेकिन फिर घबरा जाती हूँ
ये सोचकरक्यों हो गए सभी पराये मुझसेक्यों रिश्तों में खटास हुईक्यों वापस नहीं मिल जाते हममिल जुल कर रहें सभी एक साथसही मायने में यही जीवन है।
यही सोचकररातों को मैं सो नहीं पाती हूँक्या बिखरे रिश्ते कभी वापस जुड़ पायेंगेजो कर बैठे पराया मुझको
क्या कभी मुझे अपनाएँगेमन बार-बार यही पूछता है किये रातों का सूनापन, ये सन्नाटाकब जाएगा मेरे मन से।
ये रातों का सूनापन, ये सन्नाटा
कब जाएगा मेरे मन से
कब तक चुराएगी नींदे मेरी
ये चिंताएँ।
क्यों सोचती हूँ उनके लिए
जिन्होंने मुझे तोड़ा है
आज मैं उन्हीं लोगों के लिए
व्याकुल हूँ
जिन्होंने मुझे यूँ इस हाल पे छोड़ा है।
क्या रिश्ते ऐसे होते हैं
जो अपनों को यूँ ठुकराते हैं
क्यूँ मुँह फेरा सबने मुझसे
मैंने तो परायों को भी अपना माना
दिए संस्कार माँ ने जो
उन सबको जी जान से निभाया।
जन्म लिया जिस घर में मैंने
छोड़ आई उन अपनों को
इस घर में आकर त्याग दिया
अपने सभी इच्छित सपनों को।
जो न किया माँ-बाप, भाई-बहन के लिए
सब कुछ किया इन परायों के लिए
कभी स्वीकारा नहीं दिल से इन्होंने
जिनको मैंने अपना माना।
क्या खता हुई मुझसे
ये समझ नहीं पाई हूँ
बहुत सी अनकही हरकतों से लगता है
मैं परायी थी और अभी भी पराई हूँ।
जब तक सर झुका कर
सारे आदेशों का अक्षरशः पालन किया
तब तक सब खुश थे मुझसे
लेकिन जब मैंने जीना चाहा
तो सबने मुझको ठुकराया।
ऐसी जगह पर भी मुझे मिला
कोई एक मेरा अपना
जो हाथ पकड़ लाया घर में
वही समझता है मेरा सपना
उसने मुझे संबल देकर संभाला
इस रिश्ते को जी कर
मन को खुश कर लेती हूँ।
लेकिन फिर घबरा जाती हूँ
ये सोचकर
क्यों हो गए सभी पराये मुझसे
क्यों रिश्तों में खटास हुई
क्यों वापस नहीं मिल जाते हम
मिल जुल कर रहें सभी एक साथ
सही मायने में यही जीवन है।
यही सोचकर
रातों को मैं सो नहीं पाती हूँ
क्या बिखरे रिश्ते कभी वापस जुड़ पायेंगे
जो कर बैठे पराया मुझको
क्या कभी मुझे अपनाएँगे
मन बार-बार यही पूछता है कि
ये रातों का सूनापन, ये सन्नाटा
कब जाएगा मेरे मन से।
11. कुछ दिन तो उदयपुर में गुजार लो हिंदी कविता
अगर एक बार उदयपुर आ गए तो इसे भुला नहीं पाओगेजीवन भर के लिए कई खट्टी मीठी यादें साथ ले जाओगेले जाओगे मेवाड़ के स्वाभिमान और प्यार की सौगातयाद तो आयेंगे तुम्हें झीलों की नगरी में गुजारे हुए दिन रातसिटी पैलेस से पिछोला में जगनिवास और जगमंदिर का नजारादूध तलाई, म्यूजिकल गार्डन और करणी माता बुलाती है दुबाराअक्सर शहर का बाजार और तंग गलियाँ बन जाती हैं पहेलीअमराई और गणगौर घाट के साथ देख लो बागोर की हवेलीसुखाड़िया सर्किल से सहेलियों की बाड़ी होते हुए फतेहसागर की पालइस झील के आगोश में होती है सुबह, दोपहर और शाम बड़ी बेमिसालसर्पिलाकार सड़क से सज्जनगढ़ मानसून पैलेस की चढ़ाईबड़ी तालाब से बाहुबली हिल्स की ट्रेकिंग नही जाती भुलाईमोती मगरी और नीमच माता से इस रोमांटिक सिटी को निहार लोजीवन में कम से कम एक बार कुछ दिन तो उदयपुर में गुजार लो
11. साइको हिंदी कविता
कहते हैंबरसों के साथ के बादमन की बातें भीसमझ में आने लगती हैफिर कुछ कहने के लिएजुबां की जरूरत नहीं होती
शायद ये मेरी ही भूल हैजो मैं इन बातों कोसच मान बैठाऔर लगा बैठा किसी से उम्मीदकि वो मेरे मन की बातों कोबिना कहे समझता है
जब किसी बात परहोती है उससे नाराजगीतब इसी उम्मीद मेंकरता हूँ उसका इंतजारकि दूर कर देगा वो गिले शिकवेदेकर एक जादू की झप्पी
लेकिन उसने मेरे गुस्से कोमेरा गुरूर जान लियाबड़ी आसानी से मुझेइगोइस्ट मान लियाऔर साथ में दे दी मुझेसाइको की उपाधि
शायद मैं साइको ही हूँजो उसे इस कदरचाहता हूँ किउस पर गुस्सा आने पर भीखुद को ही तकलीफदेता रहता हूँ
शायद मैं साइको ही हूँजो मुझसेउसकी बेरुखीबर्दाश्त नहीं होतीऔर तड़पता रहता हूँ तब तकजब तक वो मेरे पास नहीं आता
मैं क्या करूंमुझे नही आता मनानामुझे नहीं आताबोलकर और जताकरकिसी तरह कीफॉर्मेलिटी निभाना
मेरे लिए उसके बिनाबेमानी हैजीवन की कल्पनाशायद इसीलिएबिना सोचे समझेजता देता हूँ हक अपना
लेकिन बहुत तकलीफ होती है तबजब आपका ये हकउसकी निगाह मेंआपका गुरूर बनकरआपको इंसान सेबना देता है साइको
कहते हैं
बरसों के साथ के बाद
मन की बातें भी
समझ में आने लगती है
फिर कुछ कहने के लिए
जुबां की जरूरत नहीं होती
शायद ये मेरी ही भूल है
जो मैं इन बातों को
सच मान बैठा
और लगा बैठा किसी से उम्मीद
कि वो मेरे मन की बातों को
बिना कहे समझता है
जब किसी बात पर
होती है उससे नाराजगी
तब इसी उम्मीद में
करता हूँ उसका इंतजार
कि दूर कर देगा वो गिले शिकवे
देकर एक जादू की झप्पी
लेकिन उसने मेरे गुस्से को
मेरा गुरूर जान लिया
बड़ी आसानी से मुझे
इगोइस्ट मान लिया
और साथ में दे दी मुझे
साइको की उपाधि
शायद मैं साइको ही हूँ
जो उसे इस कदर
चाहता हूँ कि
उस पर गुस्सा आने पर भी
खुद को ही तकलीफ
देता रहता हूँ
शायद मैं साइको ही हूँ
जो मुझसे
उसकी बेरुखी
बर्दाश्त नहीं होती
और तड़पता रहता हूँ तब तक
जब तक वो मेरे पास नहीं आता
मैं क्या करूं
मुझे नही आता मनाना
मुझे नहीं आता
बोलकर और जताकर
किसी तरह की
फॉर्मेलिटी निभाना
मेरे लिए उसके बिना
बेमानी है
जीवन की कल्पना
शायद इसीलिए
बिना सोचे समझे
जता देता हूँ हक अपना
लेकिन बहुत तकलीफ होती है तब
जब आपका ये हक
उसकी निगाह में
आपका गुरूर बनकर
आपको इंसान से
बना देता है साइको
1. मेरी कमियाँ बताने वाले हिंदी कविता
मेरी कमियाँ बताने वाले, मेरी खूबियाँ भी बताते तो कोई बात होतीगैरों को बताना ठीक नहीं था, मुझको बताते तो कोई बात होती
अपना दर्द सुनाने वाले, मेरा भी सुनाते तो कोई बात होतीसिक्के का एक पहलू ही दिखाया, दूसरा भी दिखाते तो कोई बात होती
घरेलू बातें दुनिया में बताना गलत है, इस बात को निभाते तो कोई बात होतीदूसरों पर मनमाफिक तोहमत लगाकर, इतना ना गिराते तो कोई बात होती
अपने माता पिता जैसी चिंता, सभी बुजुर्गों के लिए जताते तो कोई बात होतीदूसरे बुजुर्ग भी माँ बाप जैसे हो सकते हैं, अहसास जो कराते तो कोई बात होती
बहू भी बेटी बन सकती है, कभी बनके दिखाते तो कोई बात होतीसभी के साथ अपना रिश्ता, आत्मिक सा बनाते तो कोई बात होती
हैसियत अपने घर की बहुओं की, निष्पक्षता से तौल पाते तो कोई बात होतीबहुएँ तो सिर्फ काम करने के लिए होती है, यह सोच बदल पाते तो कोई बात होती
अपने हिसाब से अपनी जिंदगी जीना गलत नहीं है, कहके दिखाते तो कोई बात होतीअपने लिए इसे जायज और दूसरों के लिए नाजायज, ना ठहराते तो कोई बात होती
उकसाने के बजाये बुजुर्गों को भी, गलती का अहसास कराते तो कोई बात होतीतुम रिश्तों में सेतु बन सकते थे, कभी बनके दिखाते तो कोई बात होती
मेरी कमियाँ बताने वाले, मेरी खूबियाँ भी बताते तो कोई बात होती
गैरों को बताना ठीक नहीं था, मुझको बताते तो कोई बात होती
अपना दर्द सुनाने वाले, मेरा भी सुनाते तो कोई बात होती
सिक्के का एक पहलू ही दिखाया, दूसरा भी दिखाते तो कोई बात होती
घरेलू बातें दुनिया में बताना गलत है, इस बात को निभाते तो कोई बात होती
दूसरों पर मनमाफिक तोहमत लगाकर, इतना ना गिराते तो कोई बात होती
अपने माता पिता जैसी चिंता, सभी बुजुर्गों के लिए जताते तो कोई बात होती
दूसरे बुजुर्ग भी माँ बाप जैसे हो सकते हैं, अहसास जो कराते तो कोई बात होती
बहू भी बेटी बन सकती है, कभी बनके दिखाते तो कोई बात होती
सभी के साथ अपना रिश्ता, आत्मिक सा बनाते तो कोई बात होती
हैसियत अपने घर की बहुओं की, निष्पक्षता से तौल पाते तो कोई बात होती
बहुएँ तो सिर्फ काम करने के लिए होती है, यह सोच बदल पाते तो कोई बात होती
अपने हिसाब से अपनी जिंदगी जीना गलत नहीं है, कहके दिखाते तो कोई बात होती
अपने लिए इसे जायज और दूसरों के लिए नाजायज, ना ठहराते तो कोई बात होती
उकसाने के बजाये बुजुर्गों को भी, गलती का अहसास कराते तो कोई बात होती
तुम रिश्तों में सेतु बन सकते थे, कभी बनके दिखाते तो कोई बात होती
2. बरगद की छाँव हिंदी कविता
सुना है बरगद की छाँव में शीतलता मिलती हैइसकी शाखाओं पर बहुत से पंछियों की शाम ढलती हैबरगद नहीं पनपने देता दूसरे पेड़ों को अपने साए मेंइसके साए में इन्हें तन्हा-तन्हा मृत्यु मिलती है
जब बरगद की दूसरी जड़ें जमीन को छूने लगती हैबरगद से अलग, अपने अस्तित्व को ढूँढने लगती हैंये जड़े बरगद के साये वाले पेड़ नहीं हैइन जड़ों से तो बरगद को मजबूती मिलती है
जब बरगद की सारी ताकत कुछ शाखाएँ ले जाती हैजब बरगद की बाकी शाखाएँ मुँह ताकती रह जाती हैझुकने लगता है जब बरगद सिर्फ एक ही तरफतब कोई भी शाख अपना अस्तित्व बचा नहीं पाती है
कहते हैं बरगद पर परमात्मा का वास होता हैइसके साये में सुरक्षित होने का आभास होता हैलेकिन अस्तित्व रहता है उसी बरगद का सदियों तकजिसको अपनी जड़ों में मजबूती का विश्वास होता है
जब बरगद की जड़ों को ताकत का अहसास होता हैजब बरगद की शाखाओं में आपसी विश्वास होता हैतब गुजर जाते हैं पतझड़ और तूफानों के कई मौसम यूँ हीऔर इसके घोंसलों का हर एक पंछी खुशहाल होता है
सुना है बरगद की छाँव में शीतलता मिलती है
इसकी शाखाओं पर बहुत से पंछियों की शाम ढलती है
बरगद नहीं पनपने देता दूसरे पेड़ों को अपने साए में
इसके साए में इन्हें तन्हा-तन्हा मृत्यु मिलती है
जब बरगद की दूसरी जड़ें जमीन को छूने लगती है
बरगद से अलग, अपने अस्तित्व को ढूँढने लगती हैं
ये जड़े बरगद के साये वाले पेड़ नहीं है
इन जड़ों से तो बरगद को मजबूती मिलती है
जब बरगद की सारी ताकत कुछ शाखाएँ ले जाती है
जब बरगद की बाकी शाखाएँ मुँह ताकती रह जाती है
झुकने लगता है जब बरगद सिर्फ एक ही तरफ
तब कोई भी शाख अपना अस्तित्व बचा नहीं पाती है
कहते हैं बरगद पर परमात्मा का वास होता है
इसके साये में सुरक्षित होने का आभास होता है
लेकिन अस्तित्व रहता है उसी बरगद का सदियों तक
जिसको अपनी जड़ों में मजबूती का विश्वास होता है
जब बरगद की जड़ों को ताकत का अहसास होता है
जब बरगद की शाखाओं में आपसी विश्वास होता है
तब गुजर जाते हैं पतझड़ और तूफानों के कई मौसम यूँ ही
और इसके घोंसलों का हर एक पंछी खुशहाल होता है
6. मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे हिंदी कविता
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटेमन उद्विग्न हो रहा हैमंथन कर रहा है कि जीवन भरमैंने क्या पाया और क्या खोयाउसका हिसाब लगा रहा हैहिसाब सही नहीं लग पा रहा हैमन भूली बीती बातों कोसही सही नहीं तौल पा रहा हैसुख और दुःख के सारे क्षणघूम घूम कर सामने आ रहे हैंन चाहते हुए भीकातर आँखों से आँसू बहा रहे हैं।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटेकई हसरतें कई उम्मीदेंमन को व्याकुल कर रही हैंसोच रहा हूँ कुछ वक्त और मिलता तोये भी कर लेता, वो भी कर लेतापर हसरतें और इच्छाएँ तो, स्वर्ण मृग सदृश्य हैंजिनका खयाल तो आता हैपूर्ण करने की लालसा होती हैपरन्तु कभी पूर्ण नहीं हो पातीलेकिन फिर भी मन उनके पीछे भागता है।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटेअभी भी मोह माया के मकड़जाल सेमुक्त नहीं हो पाया हूँसोच रहा हूँ अगर कुछ समय और मिल जाता तोअपना लोक परलोक सुधार लेताजन्म सफल हो जातास्वजनों के लिए कुछ करतासभी अधूरी तृष्णाओं को पूर्ण कर लेतालेकिन फिर दिल में खयाल आता हैजब मैं कुछ करने में सक्षम थातब कुछ भी करने की चाहत न थीअब जब कुछ नहीं कर सकतातब बहुत कुछ करना चाहता हूँक्या ये कुछ करने का जज्बा अभी पैदा हुआ हैया फिर कर्मों का फल पाने से मन घबरा रहा है क्योंकिबचपन से सुना था कि चित्रगुप्त कर्मों का लेखा जोखा रखते हैंजो जैसा कर्म करता है उसी अनुसार फल मिलता है।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटेचित्त शांत क्यों नहीं हैकिस बात की उधेड़बुन हैअकेलेपन का अहसास डरा रहा हैजीवन का खालीपन सता रहा हैजीवन यात्रा अकेले ही पूर्ण करनी होती हैइंसान अकेला ही आता है और अकेला ही जाता हैअब समझ में आया है किजीवन तो नश्वर हैइस नश्वर जीवन का केंद्र, सिर्फ और सिर्फ ईश्वर है।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे
मन उद्विग्न हो रहा है
मंथन कर रहा है कि जीवन भर
मैंने क्या पाया और क्या खोया
उसका हिसाब लगा रहा है
हिसाब सही नहीं लग पा रहा है
मन भूली बीती बातों को
सही सही नहीं तौल पा रहा है
सुख और दुःख के सारे क्षण
घूम घूम कर सामने आ रहे हैं
न चाहते हुए भी
कातर आँखों से आँसू बहा रहे हैं।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे
कई हसरतें कई उम्मीदें
मन को व्याकुल कर रही हैं
सोच रहा हूँ कुछ वक्त और मिलता तो
ये भी कर लेता, वो भी कर लेता
पर हसरतें और इच्छाएँ तो, स्वर्ण मृग सदृश्य हैं
जिनका खयाल तो आता है
पूर्ण करने की लालसा होती है
परन्तु कभी पूर्ण नहीं हो पाती
लेकिन फिर भी मन उनके पीछे भागता है।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे
अभी भी मोह माया के मकड़जाल से
मुक्त नहीं हो पाया हूँ
सोच रहा हूँ अगर कुछ समय और मिल जाता तो
अपना लोक परलोक सुधार लेता
जन्म सफल हो जाता
स्वजनों के लिए कुछ करता
सभी अधूरी तृष्णाओं को पूर्ण कर लेता
लेकिन फिर दिल में खयाल आता है
जब मैं कुछ करने में सक्षम था
तब कुछ भी करने की चाहत न थी
अब जब कुछ नहीं कर सकता
तब बहुत कुछ करना चाहता हूँ
क्या ये कुछ करने का जज्बा अभी पैदा हुआ है
या फिर कर्मों का फल पाने से मन घबरा रहा है क्योंकि
बचपन से सुना था कि चित्रगुप्त कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं
जो जैसा कर्म करता है उसी अनुसार फल मिलता है।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे
चित्त शांत क्यों नहीं है
किस बात की उधेड़बुन है
अकेलेपन का अहसास डरा रहा है
जीवन का खालीपन सता रहा है
जीवन यात्रा अकेले ही पूर्ण करनी होती है
इंसान अकेला ही आता है और अकेला ही जाता है
अब समझ में आया है कि
जीवन तो नश्वर है
इस नश्वर जीवन का केंद्र, सिर्फ और सिर्फ ईश्वर है।
8. बचपन की बेफिक्री और भोलापन हिंदी कविता
न अपनो की चिंता, न परायों की फिकरबात बात पर इठलाकर बातें मनवाने का हठभोलेपन और मासूमियत में पूछे गए अनगिनत सवालउत्तर न मिलने पर बारम्बार वही पूछने का खयालयही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
छुप छुप कर घर से बाहर निकलकर मिट्टी में खेलनाकपड़े गंदे करके घर लौटकर माँ की डाँट खानावादा करना कि फिर ऐसा नहीं होगा लेकिन फिर वही करनामाँ का हर बार जानबूझकर नासमझ बनने का दिखावा करनायही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
तुतलाती आवाज में दोस्तों की शिकायत करके उन्हें चिढ़ानादोस्तों से रूठना और फिर अगले ही पल उनके साथ घुल मिलकर खेलनाअपनी माँ को दुनिया की सबसे अच्छी माँ बतलानामाँ में ही, और माँ के ही इर्दगिर्द, सारी दुनिया को समझनायही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
स्कूल न जाने के लिए ना ना प्रकार के बहाने बनानाकभी सिरदर्द तो कभी पेट दर्द या कभी जीभ दिखलानानित्यकर्म के क्रियाकलापों में बेवजह अधिक समय लगानास्कूल के लिए देरी हो जाने के आखिरी कारण की पैरवी करनायही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
न धन का मोह और न माया का लालचन कोई फिक्र और न ही कोई चाहतकोई एक चाँकलेट दिला दे तो वो देवदूत समान सुहावनाअगर चाँकलेट नहीं दिलाये तो यमदूत समान डरावनायही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
न जात का पता न धर्म को जानेहर इंसान को सिर्फ और सिर्फ इंसान मानेदोस्त ही दुनिया और खेल को ही सब कुछ मानेदोस्त के प्यार और दोस्ती को ही दिल पहचानेयही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
जब से बचपन बीता है अब तो ये आलम हैऐसा लगता है कि दुनिया में फिर से नया जन्म लिया हैसभी लोग दुनियादारी सिखाने लगे हैंजाति, धर्म, समाज, बिरादरी आदि के बारे में बतलाने लगे हैंदुनिया के हिसाब से जीओगे तो समझदार नागरिक कहलाओगेअगर अपने मन के हिसाब से जीओगे तो नासमझ बालक बन जाओगेयही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
न अपनो की चिंता, न परायों की फिकर
बात बात पर इठलाकर बातें मनवाने का हठ
भोलेपन और मासूमियत में पूछे गए अनगिनत सवाल
उत्तर न मिलने पर बारम्बार वही पूछने का खयाल
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
छुप छुप कर घर से बाहर निकलकर मिट्टी में खेलना
कपड़े गंदे करके घर लौटकर माँ की डाँट खाना
वादा करना कि फिर ऐसा नहीं होगा लेकिन फिर वही करना
माँ का हर बार जानबूझकर नासमझ बनने का दिखावा करना
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
तुतलाती आवाज में दोस्तों की शिकायत करके उन्हें चिढ़ाना
दोस्तों से रूठना और फिर अगले ही पल उनके साथ घुल मिलकर खेलना
अपनी माँ को दुनिया की सबसे अच्छी माँ बतलाना
माँ में ही, और माँ के ही इर्दगिर्द, सारी दुनिया को समझना
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
स्कूल न जाने के लिए ना ना प्रकार के बहाने बनाना
कभी सिरदर्द तो कभी पेट दर्द या कभी जीभ दिखलाना
नित्यकर्म के क्रियाकलापों में बेवजह अधिक समय लगाना
स्कूल के लिए देरी हो जाने के आखिरी कारण की पैरवी करना
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
न धन का मोह और न माया का लालच
न कोई फिक्र और न ही कोई चाहत
कोई एक चाँकलेट दिला दे तो वो देवदूत समान सुहावना
अगर चाँकलेट नहीं दिलाये तो यमदूत समान डरावना
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
न जात का पता न धर्म को जाने
हर इंसान को सिर्फ और सिर्फ इंसान माने
दोस्त ही दुनिया और खेल को ही सब कुछ माने
दोस्त के प्यार और दोस्ती को ही दिल पहचाने
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
जब से बचपन बीता है अब तो ये आलम है
ऐसा लगता है कि दुनिया में फिर से नया जन्म लिया है
सभी लोग दुनियादारी सिखाने लगे हैं
जाति, धर्म, समाज, बिरादरी आदि के बारे में बतलाने लगे हैं
दुनिया के हिसाब से जीओगे तो समझदार नागरिक कहलाओगे
अगर अपने मन के हिसाब से जीओगे तो नासमझ बालक बन जाओगे
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
9. प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है हिंदी कविता
हिंदी दिवस के दिन न जाने क्यों हमारा हिंदी प्रेम उमड़ आता हैहर कोई अपने आप को हिंदी भाषा प्रेमी बतलाता हैअंग्रेजी को छोड़ हिंदी भाषा की श्रेष्ठता के गुण गाता हैसोशल मीडिया पर अपना हिंदी प्रेम दिखाता हैअगले दिन उसका हिंदी ज्ञान ना जाने कहाँ खो जाता हैहिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।
फिर दस जनवरी को पुनः हिंदी भाषा को उसका गौरव दिलवाता हैबड़े जोर शोर से वह वर्ल्ड हिंदी डे यानी विश्व हिंदी दिवस मनाता हैसम्पूर्ण विश्व में एक दिन हिंदी भाषा का डंका जोर शोर से बजाता हैसभी को हिंदी भाषा का महत्व तथा उसकी समृद्धता के बारे में बताता हैआखिर वह हिंदी प्रेमी हैं इसलिए सोशल मीडिया पर पुनः अपने हथियार उठाता हैहिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।
इन दो दिवसों के अतिरिक्त हम सभी ने हिंदी से मुँह मोड़ लियागुलामी की भाषा के यशोगान में मातृभाषा से नाता तोड़ लियाभावनाओं का प्रस्तुतीकरण जो हिंदी में है उसे अनुभव करना छोड़ दियासंस्कृत की बेटी को यथोचित मान न देकर भावना विहीन भाषा से नाता जोड़ लियादिखावटी हिंदी प्रेम के प्रदर्शन के लिए हमें यह एक दिन बहुत भाता हैहिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।
शायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जिसके लिए कोई दिवस मनाते होंशायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जिसकी बदहाली पर आँसू बहाते होंशायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जो उसके जन्मदाता देश में उपेक्षित होंशायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जिसे बोलने वाले अशिक्षित समझे जाते होंशायद इन्हीं वजहों से हिंदी दिवस तथा विश्व हिंदी दिवस का महत्व बढ़ जाता हैहिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।
हिंदी दिवस के दिन न जाने क्यों हमारा हिंदी प्रेम उमड़ आता है
हर कोई अपने आप को हिंदी भाषा प्रेमी बतलाता है
अंग्रेजी को छोड़ हिंदी भाषा की श्रेष्ठता के गुण गाता है
सोशल मीडिया पर अपना हिंदी प्रेम दिखाता है
अगले दिन उसका हिंदी ज्ञान ना जाने कहाँ खो जाता है
हिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।
फिर दस जनवरी को पुनः हिंदी भाषा को उसका गौरव दिलवाता है
बड़े जोर शोर से वह वर्ल्ड हिंदी डे यानी विश्व हिंदी दिवस मनाता है
सम्पूर्ण विश्व में एक दिन हिंदी भाषा का डंका जोर शोर से बजाता है
सभी को हिंदी भाषा का महत्व तथा उसकी समृद्धता के बारे में बताता है
आखिर वह हिंदी प्रेमी हैं इसलिए सोशल मीडिया पर पुनः अपने हथियार उठाता है
हिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।
इन दो दिवसों के अतिरिक्त हम सभी ने हिंदी से मुँह मोड़ लिया
गुलामी की भाषा के यशोगान में मातृभाषा से नाता तोड़ लिया
भावनाओं का प्रस्तुतीकरण जो हिंदी में है उसे अनुभव करना छोड़ दिया
संस्कृत की बेटी को यथोचित मान न देकर भावना विहीन भाषा से नाता जोड़ लिया
दिखावटी हिंदी प्रेम के प्रदर्शन के लिए हमें यह एक दिन बहुत भाता है
हिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।
शायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जिसके लिए कोई दिवस मनाते हों
शायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जिसकी बदहाली पर आँसू बहाते हों
शायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जो उसके जन्मदाता देश में उपेक्षित हों
शायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जिसे बोलने वाले अशिक्षित समझे जाते हों
शायद इन्हीं वजहों से हिंदी दिवस तथा विश्व हिंदी दिवस का महत्व बढ़ जाता है
हिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।
10. कहाँ है वो लड़की हिंदी कविता
कहाँ है वो लड़की?जिसे ढूँढने को दिल चाहता हैजिसका दीदार करने की हसरत रहती हैजिससे बात करने का दिल करता हैजिसको मिलने को दिल मचलता है।
कहाँ है वो लड़की?जिसे अपने दिल का हाल बताऊँजिसे प्यार की कविता सुनाऊँजिसे अपने दिल को चीरकर दिखाऊँजिसके साथ प्रेम बंधन निभाऊँ।
कहाँ है वो लड़की?जिसके आने की खबर फिजा दे देती हैजिसके आने से माहौल खुशनुमा हो जाता हैजिसके आते ही संगीत बजने का अहसास होने लगता हैजिसके जाने पर पुष्प मुरझा जाते है।
कहाँ है वो लड़की?जिसकी पवित्रता ओस की बूंदों सी लगती हैजिसकी कोमलता रंगबिरंगी तितलियों के माफिक हैजिसकी अल्हड़ता कलरव करते पंछियों की तरह हैजिसका शर्मीलापन छुईमुई की माफिक है।
कहाँ है वो लड़की?जो बड़ी भोली भोली सी लगती हैजो निश्छल और मासूम प्रतीत होती हैजिसमें देवत्व का अहसास होता हैजो मन मंदिर ही मूरत सी प्रतीत होती है।
कहाँ है वो लड़की?जिसके दो पल के साथ में ही उम्रभर की खुशी मिलती हैजिसके साथ को दिल हमेशा तड़पता रहता हैदिन तो क्या रात में भी जिसकी कल्पना रहती हैहर जगह दिल सिर्फ और सिर्फ उसे ही ढूँढ़ता रहता है।
कहाँ है वो लड़की?जिसके साथ कहीं दूर किसी जजीरे पर जाने का दिल करता हैवहाँ जाकर प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ उसके सौन्दर्य को तोलने का मन करता हैउसके साथ सूर्यास्त के सूरज को देखने का दिल करता हैजजीरे के एक एक पेड़ पर उसका नाम लिख देने को दिल करता है।
कहाँ है वो लड़की?जिसके साथ तनहा किसी ऊँचे बर्फीले पहाड़ पर जाने का मन करता हैपहाड़ की ऊँचाई पर उसको मचलते हुए देखने का दिल करता हैजब पहाड़ पर आवारा बादल उसकी जुल्फों से टकरा कर खेलने लगेतब उन आवारा बादलों को अपने हाथों से बिखराने का मन करता है।
कहाँ है वो लड़की?जिसके साथ समुन्दर में किसी जहाज पर जाने का दिल करता हैसमुन्दर में उसे इठलाते हुए देखने को दिल तरसता हैजब घनघोर घटा आसमान में उमड़ घुमड़ कर छा जायेउस बारिश में उसके साथ भीगने को दिल करता है।
कहाँ है वो लड़की?जिसको देखकर ये अहसास होने लगेशायद हम दोनों जनम जनम के साथी हैप्यार की आग में जलकर रोशनी देने वालेहम दोनों ही वो दीया और बाती है।
कहाँ है वो लड़की?
जिसे ढूँढने को दिल चाहता है
जिसका दीदार करने की हसरत रहती है
जिससे बात करने का दिल करता है
जिसको मिलने को दिल मचलता है।
कहाँ है वो लड़की?
जिसे अपने दिल का हाल बताऊँ
जिसे प्यार की कविता सुनाऊँ
जिसे अपने दिल को चीरकर दिखाऊँ
जिसके साथ प्रेम बंधन निभाऊँ।
कहाँ है वो लड़की?
जिसके आने की खबर फिजा दे देती है
जिसके आने से माहौल खुशनुमा हो जाता है
जिसके आते ही संगीत बजने का अहसास होने लगता है
जिसके जाने पर पुष्प मुरझा जाते है।
कहाँ है वो लड़की?
जिसकी पवित्रता ओस की बूंदों सी लगती है
जिसकी कोमलता रंगबिरंगी तितलियों के माफिक है
जिसकी अल्हड़ता कलरव करते पंछियों की तरह है
जिसका शर्मीलापन छुईमुई की माफिक है।
कहाँ है वो लड़की?
जो बड़ी भोली भोली सी लगती है
जो निश्छल और मासूम प्रतीत होती है
जिसमें देवत्व का अहसास होता है
जो मन मंदिर ही मूरत सी प्रतीत होती है।
कहाँ है वो लड़की?
जिसके दो पल के साथ में ही उम्रभर की खुशी मिलती है
जिसके साथ को दिल हमेशा तड़पता रहता है
दिन तो क्या रात में भी जिसकी कल्पना रहती है
हर जगह दिल सिर्फ और सिर्फ उसे ही ढूँढ़ता रहता है।
कहाँ है वो लड़की?
जिसके साथ कहीं दूर किसी जजीरे पर जाने का दिल करता है
वहाँ जाकर प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ उसके सौन्दर्य को तोलने का मन करता है
उसके साथ सूर्यास्त के सूरज को देखने का दिल करता है
जजीरे के एक एक पेड़ पर उसका नाम लिख देने को दिल करता है।
कहाँ है वो लड़की?
जिसके साथ तनहा किसी ऊँचे बर्फीले पहाड़ पर जाने का मन करता है
पहाड़ की ऊँचाई पर उसको मचलते हुए देखने का दिल करता है
जब पहाड़ पर आवारा बादल उसकी जुल्फों से टकरा कर खेलने लगे
तब उन आवारा बादलों को अपने हाथों से बिखराने का मन करता है।
कहाँ है वो लड़की?
जिसके साथ समुन्दर में किसी जहाज पर जाने का दिल करता है
समुन्दर में उसे इठलाते हुए देखने को दिल तरसता है
जब घनघोर घटा आसमान में उमड़ घुमड़ कर छा जाये
उस बारिश में उसके साथ भीगने को दिल करता है।
कहाँ है वो लड़की?
जिसको देखकर ये अहसास होने लगे
शायद हम दोनों जनम जनम के साथी है
प्यार की आग में जलकर रोशनी देने वाले
हम दोनों ही वो दीया और बाती है।
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
Tags:
Poetry
