हिंदी कविताएँ भाग 1 - Hindi Poems Part 1, इसमें हिन्दी भाषा की कविताएँ सम्मिलित की गई हैं जिसमें अलग अलग मूड की कुल दस कविताएँ शामिल की गई हैं।
उसके मुँह से आती है आवाज, लगातारशिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और विकासवो बात ना दूजी करता हैउसकी इन्हीं बातों सेजनता का ध्यान भटकता है,तुम कब इसको भटकाओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
मिश्रा, वर्मा, बग्गा, ठाकुरसब राष्ट्रवाद में डूबे हैंजो हमसे सहमत नहींउसके नेक नहीं मंसूबे हैं,तुम कब ये आभास कराओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
शाह गिनाते सीएएवो बात स्कूल की करता हैशाह बताते शाहीन बागवो बात स्वास्थ्य की करता है,तुम कब इनसे भटकाओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
सभी क्षत्रप आखिर कब तकउस आप प्रधान से टकराएँगेलगता है कि सीएए और शाहीन बागतब असली रंग दिखाएँगे,जब तुम इनको दोहराओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
बहुत कम समय है आ जाओसत्ता का वनवास मिटा जाओइस बार अगर तुम आओगेपिछला परिणाम ना पाओगे,बस तुम ही हमको जितवाओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
पिछली बार ना सीएए था, ना शाहीन बागइस बार हैं मनमाफिक मुद्दे तमामहिंदुत्व रुपी लोहा गर्म है हथौड़ा मारोचुनाव रुपी वैतरणी से हमें तारो,तुम कब नैया पार लगाओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
जिसने दिल्ली की सत्ता को साध लियाउसी ने हिंदुस्तान पर राज कियाकेंद्र की सत्ता के बाद भी कुछ कमी सी हैअजी, हमारे हाथ में अभी दिल्ली जो नहीं है,तुम कब दिल्ली दिलवाओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
यदि फिर भी समय ना माकूल हुआगर, इस बार भी परिणाम प्रतिकूल हुआतुम पर हार का लांछन ना आएगायह तो दिल्ली की फ्री फ्री जनता पर जाएगा,तुम कब भयमुक्त होकर आओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
उसके मुँह से आती है आवाज, लगातार
शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और विकास
वो बात ना दूजी करता है
उसकी इन्हीं बातों से
जनता का ध्यान भटकता है,
तुम कब इसको भटकाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
मिश्रा, वर्मा, बग्गा, ठाकुर
सब राष्ट्रवाद में डूबे हैं
जो हमसे सहमत नहीं
उसके नेक नहीं मंसूबे हैं,
तुम कब ये आभास कराओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
शाह गिनाते सीएए
वो बात स्कूल की करता है
शाह बताते शाहीन बाग
वो बात स्वास्थ्य की करता है,
तुम कब इनसे भटकाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
सभी क्षत्रप आखिर कब तक
उस आप प्रधान से टकराएँगे
लगता है कि सीएए और शाहीन बाग
तब असली रंग दिखाएँगे,
जब तुम इनको दोहराओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
बहुत कम समय है आ जाओ
सत्ता का वनवास मिटा जाओ
इस बार अगर तुम आओगे
पिछला परिणाम ना पाओगे,
बस तुम ही हमको जितवाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
पिछली बार ना सीएए था, ना शाहीन बाग
इस बार हैं मनमाफिक मुद्दे तमाम
हिंदुत्व रुपी लोहा गर्म है हथौड़ा मारो
चुनाव रुपी वैतरणी से हमें तारो,
तुम कब नैया पार लगाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
जिसने दिल्ली की सत्ता को साध लिया
उसी ने हिंदुस्तान पर राज किया
केंद्र की सत्ता के बाद भी कुछ कमी सी है
अजी, हमारे हाथ में अभी दिल्ली जो नहीं है,
तुम कब दिल्ली दिलवाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
यदि फिर भी समय ना माकूल हुआ
गर, इस बार भी परिणाम प्रतिकूल हुआ
तुम पर हार का लांछन ना आएगा
यह तो दिल्ली की फ्री फ्री जनता पर जाएगा,
तुम कब भयमुक्त होकर आओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
9. सोनू सूद नायक बन गया हिंदी कविता
कोरोना महामारी के इस डरावने दौर मेंजब चारों तरफ घूम रहे हैं यमदूततब वो लोगों की मदद कर रहा बनकर देवदूतउस इंसान का नाम है सोनू सूद, सोनू सूद
लॉकडाउन में लोगों को खाना खिलायापरदेसी मजदूरों को उनके घर भिजवायाबस तो बस, हवाई जहाज भी चलवा दियाइसने कई बिछुड़ों को फिर से मिलवा दिया
अब महामारी काफी विकराल रूप ले रही हैदवा के साथ-साथ दुआ भी बेअसर हो रही हैदुवाओं का ही आसरा है, दवा की कमी बता रहे हैंदवाओं के लिए भी अब लोग, इन पर ही भरोसा जता रहे हैं
बहुत से लोगों ने इस आपदा को अवसर बनाया हैपूरी उम्र में ना कमाया उससे अधिक कमाया हैमरीज अमीर हो या गरीब, जवान हो या बुजुर्ग, चाहे जैसा हैअवसरवादियों लिए तो जान की कीमत सिर्फ और सिर्फ पैसा है
जिनको करनी चाहिए थी मदद वो सभी गायब हो गएजिन्हें हमने बनाया था साहब ना जाने वो कहाँ खो गएइनकी जगह मदद कर ये "सूद" सहित दिलों में घर कर गयाफिल्मों का यह खलनायक "सोनू" ना जाने कब नायक बन गया
कोरोना महामारी के इस डरावने दौर में
जब चारों तरफ घूम रहे हैं यमदूत
तब वो लोगों की मदद कर रहा बनकर देवदूत
उस इंसान का नाम है सोनू सूद, सोनू सूद
लॉकडाउन में लोगों को खाना खिलाया
परदेसी मजदूरों को उनके घर भिजवाया
बस तो बस, हवाई जहाज भी चलवा दिया
इसने कई बिछुड़ों को फिर से मिलवा दिया
अब महामारी काफी विकराल रूप ले रही है
दवा के साथ-साथ दुआ भी बेअसर हो रही है
दुवाओं का ही आसरा है, दवा की कमी बता रहे हैं
दवाओं के लिए भी अब लोग, इन पर ही भरोसा जता रहे हैं
बहुत से लोगों ने इस आपदा को अवसर बनाया है
पूरी उम्र में ना कमाया उससे अधिक कमाया है
मरीज अमीर हो या गरीब, जवान हो या बुजुर्ग, चाहे जैसा है
अवसरवादियों लिए तो जान की कीमत सिर्फ और सिर्फ पैसा है
जिनको करनी चाहिए थी मदद वो सभी गायब हो गए
जिन्हें हमने बनाया था साहब ना जाने वो कहाँ खो गए
इनकी जगह मदद कर ये "सूद" सहित दिलों में घर कर गया
फिल्मों का यह खलनायक "सोनू" ना जाने कब नायक बन गया
10. ये रातों का सूनापन हिंदी कविता
ये रातों का सूनापन, ये सन्नाटाकब जाएगा मेरे मन सेकब तक चुराएगी नींदे मेरीये चिंताएँ।
क्यों सोचती हूँ उनके लिएजिन्होंने मुझे तोड़ा हैआज मैं उन्हीं लोगों के लिएव्याकुल हूँजिन्होंने मुझे यूँ इस हाल पे छोड़ा है।
क्या रिश्ते ऐसे होते हैंजो अपनों को यूँ ठुकराते हैंक्यूँ मुँह फेरा सबने मुझसेमैंने तो परायों को भी अपना मानादिए संस्कार माँ ने जोउन सबको जी जान से निभाया।
जन्म लिया जिस घर में मैंनेछोड़ आई उन अपनों कोइस घर में आकर त्याग दियाअपने सभी इच्छित सपनों को।
जो न किया माँ-बाप, भाई-बहन के लिएसब कुछ किया इन परायों के लिएकभी स्वीकारा नहीं दिल से इन्होंनेजिनको मैंने अपना माना।
क्या खता हुई मुझसेये समझ नहीं पाई हूँबहुत सी अनकही हरकतों से लगता हैमैं परायी थी और अभी भी पराई हूँ।
जब तक सर झुका करसारे आदेशों का अक्षरशः पालन कियातब तक सब खुश थे मुझसेलेकिन जब मैंने जीना चाहातो सबने मुझको ठुकराया।
ऐसी जगह पर भी मुझे मिलाकोई एक मेरा अपनाजो हाथ पकड़ लाया घर मेंवही समझता है मेरा सपना
उसने मुझे संबल देकर संभालाइस रिश्ते को जी करमन को खुश कर लेती हूँ।लेकिन फिर घबरा जाती हूँ
ये सोचकरक्यों हो गए सभी पराये मुझसेक्यों रिश्तों में खटास हुईक्यों वापस नहीं मिल जाते हममिल जुल कर रहें सभी एक साथसही मायने में यही जीवन है।
यही सोचकररातों को मैं सो नहीं पाती हूँक्या बिखरे रिश्ते कभी वापस जुड़ पायेंगेजो कर बैठे पराया मुझको
क्या कभी मुझे अपनाएँगेमन बार-बार यही पूछता है किये रातों का सूनापन, ये सन्नाटाकब जाएगा मेरे मन से।
ये रातों का सूनापन, ये सन्नाटा
कब जाएगा मेरे मन से
कब तक चुराएगी नींदे मेरी
ये चिंताएँ।
क्यों सोचती हूँ उनके लिए
जिन्होंने मुझे तोड़ा है
आज मैं उन्हीं लोगों के लिए
व्याकुल हूँ
जिन्होंने मुझे यूँ इस हाल पे छोड़ा है।
क्या रिश्ते ऐसे होते हैं
जो अपनों को यूँ ठुकराते हैं
क्यूँ मुँह फेरा सबने मुझसे
मैंने तो परायों को भी अपना माना
दिए संस्कार माँ ने जो
उन सबको जी जान से निभाया।
जन्म लिया जिस घर में मैंने
छोड़ आई उन अपनों को
इस घर में आकर त्याग दिया
अपने सभी इच्छित सपनों को।
जो न किया माँ-बाप, भाई-बहन के लिए
सब कुछ किया इन परायों के लिए
कभी स्वीकारा नहीं दिल से इन्होंने
जिनको मैंने अपना माना।
क्या खता हुई मुझसे
ये समझ नहीं पाई हूँ
बहुत सी अनकही हरकतों से लगता है
मैं परायी थी और अभी भी पराई हूँ।
जब तक सर झुका कर
सारे आदेशों का अक्षरशः पालन किया
तब तक सब खुश थे मुझसे
लेकिन जब मैंने जीना चाहा
तो सबने मुझको ठुकराया।
ऐसी जगह पर भी मुझे मिला
कोई एक मेरा अपना
जो हाथ पकड़ लाया घर में
वही समझता है मेरा सपना
उसने मुझे संबल देकर संभाला
इस रिश्ते को जी कर
मन को खुश कर लेती हूँ।
लेकिन फिर घबरा जाती हूँ
ये सोचकर
क्यों हो गए सभी पराये मुझसे
क्यों रिश्तों में खटास हुई
क्यों वापस नहीं मिल जाते हम
मिल जुल कर रहें सभी एक साथ
सही मायने में यही जीवन है।
यही सोचकर
रातों को मैं सो नहीं पाती हूँ
क्या बिखरे रिश्ते कभी वापस जुड़ पायेंगे
जो कर बैठे पराया मुझको
क्या कभी मुझे अपनाएँगे
मन बार-बार यही पूछता है कि
ये रातों का सूनापन, ये सन्नाटा
कब जाएगा मेरे मन से।
11. कुछ दिन तो उदयपुर में गुजार लो हिंदी कविता
अगर एक बार उदयपुर आ गए तो इसे भुला नहीं पाओगेजीवन भर के लिए कई खट्टी मीठी यादें साथ ले जाओगेले जाओगे मेवाड़ के स्वाभिमान और प्यार की सौगातयाद तो आयेंगे तुम्हें झीलों की नगरी में गुजारे हुए दिन रातसिटी पैलेस से पिछोला में जगनिवास और जगमंदिर का नजारादूध तलाई, म्यूजिकल गार्डन और करणी माता बुलाती है दुबाराअक्सर शहर का बाजार और तंग गलियाँ बन जाती हैं पहेलीअमराई और गणगौर घाट के साथ देख लो बागोर की हवेलीसुखाड़िया सर्किल से सहेलियों की बाड़ी होते हुए फतेहसागर की पालइस झील के आगोश में होती है सुबह, दोपहर और शाम बड़ी बेमिसालसर्पिलाकार सड़क से सज्जनगढ़ मानसून पैलेस की चढ़ाईबड़ी तालाब से बाहुबली हिल्स की ट्रेकिंग नही जाती भुलाईमोती मगरी और नीमच माता से इस रोमांटिक सिटी को निहार लोजीवन में कम से कम एक बार कुछ दिन तो उदयपुर में गुजार लो
11. साइको हिंदी कविता
कहते हैंबरसों के साथ के बादमन की बातें भीसमझ में आने लगती हैफिर कुछ कहने के लिएजुबां की जरूरत नहीं होती
शायद ये मेरी ही भूल हैजो मैं इन बातों कोसच मान बैठाऔर लगा बैठा किसी से उम्मीदकि वो मेरे मन की बातों कोबिना कहे समझता है
जब किसी बात परहोती है उससे नाराजगीतब इसी उम्मीद मेंकरता हूँ उसका इंतजारकि दूर कर देगा वो गिले शिकवेदेकर एक जादू की झप्पी
लेकिन उसने मेरे गुस्से कोमेरा गुरूर जान लियाबड़ी आसानी से मुझेइगोइस्ट मान लियाऔर साथ में दे दी मुझेसाइको की उपाधि
शायद मैं साइको ही हूँजो उसे इस कदरचाहता हूँ किउस पर गुस्सा आने पर भीखुद को ही तकलीफदेता रहता हूँ
शायद मैं साइको ही हूँजो मुझसेउसकी बेरुखीबर्दाश्त नहीं होतीऔर तड़पता रहता हूँ तब तकजब तक वो मेरे पास नहीं आता
मैं क्या करूंमुझे नही आता मनानामुझे नहीं आताबोलकर और जताकरकिसी तरह कीफॉर्मेलिटी निभाना
मेरे लिए उसके बिनाबेमानी हैजीवन की कल्पनाशायद इसीलिएबिना सोचे समझेजता देता हूँ हक अपना
लेकिन बहुत तकलीफ होती है तबजब आपका ये हकउसकी निगाह मेंआपका गुरूर बनकरआपको इंसान सेबना देता है साइको
कहते हैं
बरसों के साथ के बाद
मन की बातें भी
समझ में आने लगती है
फिर कुछ कहने के लिए
जुबां की जरूरत नहीं होती
शायद ये मेरी ही भूल है
जो मैं इन बातों को
सच मान बैठा
और लगा बैठा किसी से उम्मीद
कि वो मेरे मन की बातों को
बिना कहे समझता है
जब किसी बात पर
होती है उससे नाराजगी
तब इसी उम्मीद में
करता हूँ उसका इंतजार
कि दूर कर देगा वो गिले शिकवे
देकर एक जादू की झप्पी
लेकिन उसने मेरे गुस्से को
मेरा गुरूर जान लिया
बड़ी आसानी से मुझे
इगोइस्ट मान लिया
और साथ में दे दी मुझे
साइको की उपाधि
शायद मैं साइको ही हूँ
जो उसे इस कदर
चाहता हूँ कि
उस पर गुस्सा आने पर भी
खुद को ही तकलीफ
देता रहता हूँ
शायद मैं साइको ही हूँ
जो मुझसे
उसकी बेरुखी
बर्दाश्त नहीं होती
और तड़पता रहता हूँ तब तक
जब तक वो मेरे पास नहीं आता
मैं क्या करूं
मुझे नही आता मनाना
मुझे नहीं आता
बोलकर और जताकर
किसी तरह की
फॉर्मेलिटी निभाना
मेरे लिए उसके बिना
बेमानी है
जीवन की कल्पना
शायद इसीलिए
बिना सोचे समझे
जता देता हूँ हक अपना
लेकिन बहुत तकलीफ होती है तब
जब आपका ये हक
उसकी निगाह में
आपका गुरूर बनकर
आपको इंसान से
बना देता है साइको
2. बरगद की छाँव हिंदी कविता
सुना है बरगद की छाँव में शीतलता मिलती हैइसकी शाखाओं पर बहुत से पंछियों की शाम ढलती हैबरगद नहीं पनपने देता दूसरे पेड़ों को अपने साए मेंइसके साए में इन्हें तन्हा-तन्हा मृत्यु मिलती है
जब बरगद की दूसरी जड़ें जमीन को छूने लगती हैबरगद से अलग, अपने अस्तित्व को ढूँढने लगती हैंये जड़े बरगद के साये वाले पेड़ नहीं हैइन जड़ों से तो बरगद को मजबूती मिलती है
जब बरगद की सारी ताकत कुछ शाखाएँ ले जाती हैजब बरगद की बाकी शाखाएँ मुँह ताकती रह जाती हैझुकने लगता है जब बरगद सिर्फ एक ही तरफतब कोई भी शाख अपना अस्तित्व बचा नहीं पाती है
कहते हैं बरगद पर परमात्मा का वास होता हैइसके साये में सुरक्षित होने का आभास होता हैलेकिन अस्तित्व रहता है उसी बरगद का सदियों तकजिसको अपनी जड़ों में मजबूती का विश्वास होता है
जब बरगद की जड़ों को ताकत का अहसास होता हैजब बरगद की शाखाओं में आपसी विश्वास होता हैतब गुजर जाते हैं पतझड़ और तूफानों के कई मौसम यूँ हीऔर इसके घोंसलों का हर एक पंछी खुशहाल होता है
सुना है बरगद की छाँव में शीतलता मिलती है
इसकी शाखाओं पर बहुत से पंछियों की शाम ढलती है
बरगद नहीं पनपने देता दूसरे पेड़ों को अपने साए में
इसके साए में इन्हें तन्हा-तन्हा मृत्यु मिलती है
जब बरगद की दूसरी जड़ें जमीन को छूने लगती है
बरगद से अलग, अपने अस्तित्व को ढूँढने लगती हैं
ये जड़े बरगद के साये वाले पेड़ नहीं है
इन जड़ों से तो बरगद को मजबूती मिलती है
जब बरगद की सारी ताकत कुछ शाखाएँ ले जाती है
जब बरगद की बाकी शाखाएँ मुँह ताकती रह जाती है
झुकने लगता है जब बरगद सिर्फ एक ही तरफ
तब कोई भी शाख अपना अस्तित्व बचा नहीं पाती है
कहते हैं बरगद पर परमात्मा का वास होता है
इसके साये में सुरक्षित होने का आभास होता है
लेकिन अस्तित्व रहता है उसी बरगद का सदियों तक
जिसको अपनी जड़ों में मजबूती का विश्वास होता है
जब बरगद की जड़ों को ताकत का अहसास होता है
जब बरगद की शाखाओं में आपसी विश्वास होता है
तब गुजर जाते हैं पतझड़ और तूफानों के कई मौसम यूँ ही
और इसके घोंसलों का हर एक पंछी खुशहाल होता है
6. मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे हिंदी कविता
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटेमन उद्विग्न हो रहा हैमंथन कर रहा है कि जीवन भरमैंने क्या पाया और क्या खोयाउसका हिसाब लगा रहा हैहिसाब सही नहीं लग पा रहा हैमन भूली बीती बातों कोसही सही नहीं तौल पा रहा हैसुख और दुःख के सारे क्षणघूम घूम कर सामने आ रहे हैंन चाहते हुए भीकातर आँखों से आँसू बहा रहे हैं।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटेकई हसरतें कई उम्मीदेंमन को व्याकुल कर रही हैंसोच रहा हूँ कुछ वक्त और मिलता तोये भी कर लेता, वो भी कर लेतापर हसरतें और इच्छाएँ तो, स्वर्ण मृग सदृश्य हैंजिनका खयाल तो आता हैपूर्ण करने की लालसा होती हैपरन्तु कभी पूर्ण नहीं हो पातीलेकिन फिर भी मन उनके पीछे भागता है।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटेअभी भी मोह माया के मकड़जाल सेमुक्त नहीं हो पाया हूँसोच रहा हूँ अगर कुछ समय और मिल जाता तोअपना लोक परलोक सुधार लेताजन्म सफल हो जातास्वजनों के लिए कुछ करतासभी अधूरी तृष्णाओं को पूर्ण कर लेतालेकिन फिर दिल में खयाल आता हैजब मैं कुछ करने में सक्षम थातब कुछ भी करने की चाहत न थीअब जब कुछ नहीं कर सकतातब बहुत कुछ करना चाहता हूँक्या ये कुछ करने का जज्बा अभी पैदा हुआ हैया फिर कर्मों का फल पाने से मन घबरा रहा है क्योंकिबचपन से सुना था कि चित्रगुप्त कर्मों का लेखा जोखा रखते हैंजो जैसा कर्म करता है उसी अनुसार फल मिलता है।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटेचित्त शांत क्यों नहीं हैकिस बात की उधेड़बुन हैअकेलेपन का अहसास डरा रहा हैजीवन का खालीपन सता रहा हैजीवन यात्रा अकेले ही पूर्ण करनी होती हैइंसान अकेला ही आता है और अकेला ही जाता हैअब समझ में आया है किजीवन तो नश्वर हैइस नश्वर जीवन का केंद्र, सिर्फ और सिर्फ ईश्वर है।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे
मन उद्विग्न हो रहा है
मंथन कर रहा है कि जीवन भर
मैंने क्या पाया और क्या खोया
उसका हिसाब लगा रहा है
हिसाब सही नहीं लग पा रहा है
मन भूली बीती बातों को
सही सही नहीं तौल पा रहा है
सुख और दुःख के सारे क्षण
घूम घूम कर सामने आ रहे हैं
न चाहते हुए भी
कातर आँखों से आँसू बहा रहे हैं।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे
कई हसरतें कई उम्मीदें
मन को व्याकुल कर रही हैं
सोच रहा हूँ कुछ वक्त और मिलता तो
ये भी कर लेता, वो भी कर लेता
पर हसरतें और इच्छाएँ तो, स्वर्ण मृग सदृश्य हैं
जिनका खयाल तो आता है
पूर्ण करने की लालसा होती है
परन्तु कभी पूर्ण नहीं हो पाती
लेकिन फिर भी मन उनके पीछे भागता है।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे
अभी भी मोह माया के मकड़जाल से
मुक्त नहीं हो पाया हूँ
सोच रहा हूँ अगर कुछ समय और मिल जाता तो
अपना लोक परलोक सुधार लेता
जन्म सफल हो जाता
स्वजनों के लिए कुछ करता
सभी अधूरी तृष्णाओं को पूर्ण कर लेता
लेकिन फिर दिल में खयाल आता है
जब मैं कुछ करने में सक्षम था
तब कुछ भी करने की चाहत न थी
अब जब कुछ नहीं कर सकता
तब बहुत कुछ करना चाहता हूँ
क्या ये कुछ करने का जज्बा अभी पैदा हुआ है
या फिर कर्मों का फल पाने से मन घबरा रहा है क्योंकि
बचपन से सुना था कि चित्रगुप्त कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं
जो जैसा कर्म करता है उसी अनुसार फल मिलता है।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे
चित्त शांत क्यों नहीं है
किस बात की उधेड़बुन है
अकेलेपन का अहसास डरा रहा है
जीवन का खालीपन सता रहा है
जीवन यात्रा अकेले ही पूर्ण करनी होती है
इंसान अकेला ही आता है और अकेला ही जाता है
अब समझ में आया है कि
जीवन तो नश्वर है
इस नश्वर जीवन का केंद्र, सिर्फ और सिर्फ ईश्वर है।
8. बचपन की बेफिक्री और भोलापन हिंदी कविता
न अपनो की चिंता, न परायों की फिकरबात बात पर इठलाकर बातें मनवाने का हठभोलेपन और मासूमियत में पूछे गए अनगिनत सवालउत्तर न मिलने पर बारम्बार वही पूछने का खयालयही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
छुप छुप कर घर से बाहर निकलकर मिट्टी में खेलनाकपड़े गंदे करके घर लौटकर माँ की डाँट खानावादा करना कि फिर ऐसा नहीं होगा लेकिन फिर वही करनामाँ का हर बार जानबूझकर नासमझ बनने का दिखावा करनायही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
तुतलाती आवाज में दोस्तों की शिकायत करके उन्हें चिढ़ानादोस्तों से रूठना और फिर अगले ही पल उनके साथ घुल मिलकर खेलनाअपनी माँ को दुनिया की सबसे अच्छी माँ बतलानामाँ में ही, और माँ के ही इर्दगिर्द, सारी दुनिया को समझनायही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
स्कूल न जाने के लिए ना ना प्रकार के बहाने बनानाकभी सिरदर्द तो कभी पेट दर्द या कभी जीभ दिखलानानित्यकर्म के क्रियाकलापों में बेवजह अधिक समय लगानास्कूल के लिए देरी हो जाने के आखिरी कारण की पैरवी करनायही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
न धन का मोह और न माया का लालचन कोई फिक्र और न ही कोई चाहतकोई एक चाँकलेट दिला दे तो वो देवदूत समान सुहावनाअगर चाँकलेट नहीं दिलाये तो यमदूत समान डरावनायही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
न जात का पता न धर्म को जानेहर इंसान को सिर्फ और सिर्फ इंसान मानेदोस्त ही दुनिया और खेल को ही सब कुछ मानेदोस्त के प्यार और दोस्ती को ही दिल पहचानेयही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
जब से बचपन बीता है अब तो ये आलम हैऐसा लगता है कि दुनिया में फिर से नया जन्म लिया हैसभी लोग दुनियादारी सिखाने लगे हैंजाति, धर्म, समाज, बिरादरी आदि के बारे में बतलाने लगे हैंदुनिया के हिसाब से जीओगे तो समझदार नागरिक कहलाओगेअगर अपने मन के हिसाब से जीओगे तो नासमझ बालक बन जाओगेयही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
न अपनो की चिंता, न परायों की फिकर
बात बात पर इठलाकर बातें मनवाने का हठ
भोलेपन और मासूमियत में पूछे गए अनगिनत सवाल
उत्तर न मिलने पर बारम्बार वही पूछने का खयाल
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
छुप छुप कर घर से बाहर निकलकर मिट्टी में खेलना
कपड़े गंदे करके घर लौटकर माँ की डाँट खाना
वादा करना कि फिर ऐसा नहीं होगा लेकिन फिर वही करना
माँ का हर बार जानबूझकर नासमझ बनने का दिखावा करना
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
तुतलाती आवाज में दोस्तों की शिकायत करके उन्हें चिढ़ाना
दोस्तों से रूठना और फिर अगले ही पल उनके साथ घुल मिलकर खेलना
अपनी माँ को दुनिया की सबसे अच्छी माँ बतलाना
माँ में ही, और माँ के ही इर्दगिर्द, सारी दुनिया को समझना
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
स्कूल न जाने के लिए ना ना प्रकार के बहाने बनाना
कभी सिरदर्द तो कभी पेट दर्द या कभी जीभ दिखलाना
नित्यकर्म के क्रियाकलापों में बेवजह अधिक समय लगाना
स्कूल के लिए देरी हो जाने के आखिरी कारण की पैरवी करना
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
न धन का मोह और न माया का लालच
न कोई फिक्र और न ही कोई चाहत
कोई एक चाँकलेट दिला दे तो वो देवदूत समान सुहावना
अगर चाँकलेट नहीं दिलाये तो यमदूत समान डरावना
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
न जात का पता न धर्म को जाने
हर इंसान को सिर्फ और सिर्फ इंसान माने
दोस्त ही दुनिया और खेल को ही सब कुछ माने
दोस्त के प्यार और दोस्ती को ही दिल पहचाने
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
जब से बचपन बीता है अब तो ये आलम है
ऐसा लगता है कि दुनिया में फिर से नया जन्म लिया है
सभी लोग दुनियादारी सिखाने लगे हैं
जाति, धर्म, समाज, बिरादरी आदि के बारे में बतलाने लगे हैं
दुनिया के हिसाब से जीओगे तो समझदार नागरिक कहलाओगे
अगर अपने मन के हिसाब से जीओगे तो नासमझ बालक बन जाओगे
यही बचपन की बेफिक्री और भोलापन है।
9. प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है हिंदी कविता
हिंदी दिवस के दिन न जाने क्यों हमारा हिंदी प्रेम उमड़ आता हैहर कोई अपने आप को हिंदी भाषा प्रेमी बतलाता हैअंग्रेजी को छोड़ हिंदी भाषा की श्रेष्ठता के गुण गाता हैसोशल मीडिया पर अपना हिंदी प्रेम दिखाता हैअगले दिन उसका हिंदी ज्ञान ना जाने कहाँ खो जाता हैहिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।
फिर दस जनवरी को पुनः हिंदी भाषा को उसका गौरव दिलवाता हैबड़े जोर शोर से वह वर्ल्ड हिंदी डे यानी विश्व हिंदी दिवस मनाता हैसम्पूर्ण विश्व में एक दिन हिंदी भाषा का डंका जोर शोर से बजाता हैसभी को हिंदी भाषा का महत्व तथा उसकी समृद्धता के बारे में बताता हैआखिर वह हिंदी प्रेमी हैं इसलिए सोशल मीडिया पर पुनः अपने हथियार उठाता हैहिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।
इन दो दिवसों के अतिरिक्त हम सभी ने हिंदी से मुँह मोड़ लियागुलामी की भाषा के यशोगान में मातृभाषा से नाता तोड़ लियाभावनाओं का प्रस्तुतीकरण जो हिंदी में है उसे अनुभव करना छोड़ दियासंस्कृत की बेटी को यथोचित मान न देकर भावना विहीन भाषा से नाता जोड़ लियादिखावटी हिंदी प्रेम के प्रदर्शन के लिए हमें यह एक दिन बहुत भाता हैहिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।
शायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जिसके लिए कोई दिवस मनाते होंशायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जिसकी बदहाली पर आँसू बहाते होंशायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जो उसके जन्मदाता देश में उपेक्षित होंशायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जिसे बोलने वाले अशिक्षित समझे जाते होंशायद इन्हीं वजहों से हिंदी दिवस तथा विश्व हिंदी दिवस का महत्व बढ़ जाता हैहिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।
हिंदी दिवस के दिन न जाने क्यों हमारा हिंदी प्रेम उमड़ आता है
हर कोई अपने आप को हिंदी भाषा प्रेमी बतलाता है
अंग्रेजी को छोड़ हिंदी भाषा की श्रेष्ठता के गुण गाता है
सोशल मीडिया पर अपना हिंदी प्रेम दिखाता है
अगले दिन उसका हिंदी ज्ञान ना जाने कहाँ खो जाता है
हिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।
फिर दस जनवरी को पुनः हिंदी भाषा को उसका गौरव दिलवाता है
बड़े जोर शोर से वह वर्ल्ड हिंदी डे यानी विश्व हिंदी दिवस मनाता है
सम्पूर्ण विश्व में एक दिन हिंदी भाषा का डंका जोर शोर से बजाता है
सभी को हिंदी भाषा का महत्व तथा उसकी समृद्धता के बारे में बताता है
आखिर वह हिंदी प्रेमी हैं इसलिए सोशल मीडिया पर पुनः अपने हथियार उठाता है
हिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।
इन दो दिवसों के अतिरिक्त हम सभी ने हिंदी से मुँह मोड़ लिया
गुलामी की भाषा के यशोगान में मातृभाषा से नाता तोड़ लिया
भावनाओं का प्रस्तुतीकरण जो हिंदी में है उसे अनुभव करना छोड़ दिया
संस्कृत की बेटी को यथोचित मान न देकर भावना विहीन भाषा से नाता जोड़ लिया
दिखावटी हिंदी प्रेम के प्रदर्शन के लिए हमें यह एक दिन बहुत भाता है
हिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।
शायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जिसके लिए कोई दिवस मनाते हों
शायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जिसकी बदहाली पर आँसू बहाते हों
शायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जो उसके जन्मदाता देश में उपेक्षित हों
शायद ही विश्व में अन्य कोई मातृभाषा हो जिसे बोलने वाले अशिक्षित समझे जाते हों
शायद इन्हीं वजहों से हिंदी दिवस तथा विश्व हिंदी दिवस का महत्व बढ़ जाता है
हिंदी प्रेम प्रदर्शन के लिए प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है।
10. कहाँ है वो लड़की हिंदी कविता
कहाँ है वो लड़की?जिसे ढूँढने को दिल चाहता हैजिसका दीदार करने की हसरत रहती हैजिससे बात करने का दिल करता हैजिसको मिलने को दिल मचलता है।
कहाँ है वो लड़की?जिसे अपने दिल का हाल बताऊँजिसे प्यार की कविता सुनाऊँजिसे अपने दिल को चीरकर दिखाऊँजिसके साथ प्रेम बंधन निभाऊँ।
कहाँ है वो लड़की?जिसके आने की खबर फिजा दे देती हैजिसके आने से माहौल खुशनुमा हो जाता हैजिसके आते ही संगीत बजने का अहसास होने लगता हैजिसके जाने पर पुष्प मुरझा जाते है।
कहाँ है वो लड़की?जिसकी पवित्रता ओस की बूंदों सी लगती हैजिसकी कोमलता रंगबिरंगी तितलियों के माफिक हैजिसकी अल्हड़ता कलरव करते पंछियों की तरह हैजिसका शर्मीलापन छुईमुई की माफिक है।
कहाँ है वो लड़की?जो बड़ी भोली भोली सी लगती हैजो निश्छल और मासूम प्रतीत होती हैजिसमें देवत्व का अहसास होता हैजो मन मंदिर ही मूरत सी प्रतीत होती है।
कहाँ है वो लड़की?जिसके दो पल के साथ में ही उम्रभर की खुशी मिलती हैजिसके साथ को दिल हमेशा तड़पता रहता हैदिन तो क्या रात में भी जिसकी कल्पना रहती हैहर जगह दिल सिर्फ और सिर्फ उसे ही ढूँढ़ता रहता है।
कहाँ है वो लड़की?जिसके साथ कहीं दूर किसी जजीरे पर जाने का दिल करता हैवहाँ जाकर प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ उसके सौन्दर्य को तोलने का मन करता हैउसके साथ सूर्यास्त के सूरज को देखने का दिल करता हैजजीरे के एक एक पेड़ पर उसका नाम लिख देने को दिल करता है।
कहाँ है वो लड़की?जिसके साथ तनहा किसी ऊँचे बर्फीले पहाड़ पर जाने का मन करता हैपहाड़ की ऊँचाई पर उसको मचलते हुए देखने का दिल करता हैजब पहाड़ पर आवारा बादल उसकी जुल्फों से टकरा कर खेलने लगेतब उन आवारा बादलों को अपने हाथों से बिखराने का मन करता है।
कहाँ है वो लड़की?जिसके साथ समुन्दर में किसी जहाज पर जाने का दिल करता हैसमुन्दर में उसे इठलाते हुए देखने को दिल तरसता हैजब घनघोर घटा आसमान में उमड़ घुमड़ कर छा जायेउस बारिश में उसके साथ भीगने को दिल करता है।
कहाँ है वो लड़की?जिसको देखकर ये अहसास होने लगेशायद हम दोनों जनम जनम के साथी हैप्यार की आग में जलकर रोशनी देने वालेहम दोनों ही वो दीया और बाती है।
कहाँ है वो लड़की?
जिसे ढूँढने को दिल चाहता है
जिसका दीदार करने की हसरत रहती है
जिससे बात करने का दिल करता है
जिसको मिलने को दिल मचलता है।
कहाँ है वो लड़की?
जिसे अपने दिल का हाल बताऊँ
जिसे प्यार की कविता सुनाऊँ
जिसे अपने दिल को चीरकर दिखाऊँ
जिसके साथ प्रेम बंधन निभाऊँ।
कहाँ है वो लड़की?
जिसके आने की खबर फिजा दे देती है
जिसके आने से माहौल खुशनुमा हो जाता है
जिसके आते ही संगीत बजने का अहसास होने लगता है
जिसके जाने पर पुष्प मुरझा जाते है।
कहाँ है वो लड़की?
जिसकी पवित्रता ओस की बूंदों सी लगती है
जिसकी कोमलता रंगबिरंगी तितलियों के माफिक है
जिसकी अल्हड़ता कलरव करते पंछियों की तरह है
जिसका शर्मीलापन छुईमुई की माफिक है।
कहाँ है वो लड़की?
जो बड़ी भोली भोली सी लगती है
जो निश्छल और मासूम प्रतीत होती है
जिसमें देवत्व का अहसास होता है
जो मन मंदिर ही मूरत सी प्रतीत होती है।
कहाँ है वो लड़की?
जिसके दो पल के साथ में ही उम्रभर की खुशी मिलती है
जिसके साथ को दिल हमेशा तड़पता रहता है
दिन तो क्या रात में भी जिसकी कल्पना रहती है
हर जगह दिल सिर्फ और सिर्फ उसे ही ढूँढ़ता रहता है।
कहाँ है वो लड़की?
जिसके साथ कहीं दूर किसी जजीरे पर जाने का दिल करता है
वहाँ जाकर प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ उसके सौन्दर्य को तोलने का मन करता है
उसके साथ सूर्यास्त के सूरज को देखने का दिल करता है
जजीरे के एक एक पेड़ पर उसका नाम लिख देने को दिल करता है।
कहाँ है वो लड़की?
जिसके साथ तनहा किसी ऊँचे बर्फीले पहाड़ पर जाने का मन करता है
पहाड़ की ऊँचाई पर उसको मचलते हुए देखने का दिल करता है
जब पहाड़ पर आवारा बादल उसकी जुल्फों से टकरा कर खेलने लगे
तब उन आवारा बादलों को अपने हाथों से बिखराने का मन करता है।
कहाँ है वो लड़की?
जिसके साथ समुन्दर में किसी जहाज पर जाने का दिल करता है
समुन्दर में उसे इठलाते हुए देखने को दिल तरसता है
जब घनघोर घटा आसमान में उमड़ घुमड़ कर छा जाये
उस बारिश में उसके साथ भीगने को दिल करता है।
कहाँ है वो लड़की?
जिसको देखकर ये अहसास होने लगे
शायद हम दोनों जनम जनम के साथी है
प्यार की आग में जलकर रोशनी देने वाले
हम दोनों ही वो दीया और बाती है।
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
Tags:
Poetry