गुफा में विराजे टपकेश्वर महादेव - Tapkeshwar Mahadev Mandir, इसमें काँसावती नदी के किनारे पहाड़ी पर टपकेश्वर महादेव के गुफा मंदिर की जानकारी दी गई है।
नीमका थाना में अरावली की सुरम्य पहाड़ियों से घिरा होने के कारण यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य आँखों को बड़ा अजीब सा सुकून देता है।
पहाड़ी की तलहटी में नीचे बहती हुई कांसावती (कृष्णावती) नदी ऐसे प्रतीत होती है जैसे यह स्वयं भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए लालायित हो रही हो।
इस नदी के बहाव क्षेत्र में एक गूलर का पेड़ स्थित है। इस पेड़ की खास बात यह है कि इसकी जड़ों में से बारह महीनों लगातार पानी बहता रहता है। यह पानी जंगली जानवरों की प्यास बुझाने के काम आता है।
पहाड़ी पर मौजूद गुफा में दो शिवलिंग हैं जिनमें से एक काले पत्थर का तथा दूसरा सफेद पत्थर का है। दोनों पर हमेशा नैसर्गिक रूप से पहाड़ी के जल द्वारा अभिषेक होता रहता है।
पहाड़ी से जल लगातार शिवलिंग पर टपकता रहता है इस कारण ही इस स्थान को टपकेश्वर महादेव कहा जाता है।
काले पत्थर का शिवलिंग स्वयंभू शिवलिंग है जो पहाड़ी की चट्टान से बना हुआ है। दूसरा शिवलिंग इस क्षेत्र के तोमर राजा अचल सिंह ने स्थापित करवाया था इस वजह से इसे अचलेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
स्वयंभू शिवलिंग आदिकाल का बना हुआ माना जाता है। इस स्थान का जिक्र शिव पुराण में भी दिया हुआ है। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय इन तीनों जगहों पर भी बिताया था।
किसी समय यहाँ अचलगढ़ नामक राज्य था जिस पर राजा अचल सिंह शासन करते थे। पास ही पहाड़ी पर अचलगढ़ का किला जीर्ण शीर्ण हालत में मौजूद है। इस किले के निकट बाँस के बड़े बड़े पेड़ मौजूद है।
इस क्षेत्र में बहुत से पैंथर मौजूद है। बहुत बार ये पैंथर मंदिर में भी आकर बैठ जाते हैं। कई बार इन्हें मंदिर की सीढ़ियों से उतरते भी देखा गया है। इसी वजह से रात्रि में यहाँ कोई रहता नहीं है।
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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