Jo Tum Hoti Poem, इसमें एक लड़के की एक लड़की के लिए जवानी की दहलीज पर सच्चे प्रेम को दर्शाते हुए मन के अंदर उठने वाली भावनाओं के बारे में बताया गया है।
जो तुम होती कविता के बोल - Lyrics of Jo Tum Hoti Poem
जो तुम होती
पूर्णमासी के चाँद के माफिक
एकटक निहारता रहता तुम्हें
प्यासे चकोर के जानिब।
जो तुम होती
स्निग्ध, शीतल चाँदनी में
दिल से महसूस करता तुम्हें
अपनी साँसों की रागिनी में।
जो तुम होती
समुन्दर की हिलोरे मारती लहर बनकर
किनारे की रेत पर
महसूस करता तुम्हें गंगाजल समझकर।
जो तुम होती
नीर से भरा हुआ एक श्यामवर्णी बादल
मयूर की तरह
पंख फैलाकर नाच-नाच कर हो जाता पागल।
जो तुम होती
दूर समुन्दर के एक जजीरे जैसी खूबसूरत
जब मिलने को दिल चाहता
तुम्हें पुकारता लेकर दीवानी सी सूरत।
जो तुम होती
एक बदली, घनघोर बरसती हुई
समेटता रहता तुम्हें शुष्क रेत में
जो रहती पानी के लिए तरसती हुई।
जो तुम होती
हिमगिरी पर बिखरी श्वेत, कोमल हिम बनकर
दिल की गहराइयों से
तुम्हारी एक मूरत बनाता सिर्फ तुम्हें याद कर।
जो तुम होती
पहाड़ पर टकराती हुई स्वछंद बदली की तरह
अंक में भर लेता तुम्हें
गगनचुम्बी, दृढ़निश्चयी पहाड़ की तरह।
जो तुम होती
डूबते सूरज की मनमोहक लालिमा बनकर
दूर किसी पेड़ की ओट से
एकटक देखता रहता तुम्हें ओझल होने तक।
जो तुम होती
एक निस्वार्थ जलती हुई शमा की तरह
तुममें समाकर जल जाता
शमा के दीवाने परवाने की तरह।
जो तुम होती
मंद-मंद बहती हुई पुरवाई बयार की तरह
दोनों बाहें फैलाकर
अंक में भरने की कोशिश करता दीवानों की तरह।
जो तुम होती
किसी खिले हुए सुमन की तरह
मैं तुममें ही घुल मिल कर
शामिल रहता तुम्हारी सुगंध की तरह।
जो तुम होती
एक लहराती अधखुली कली बनकर
किसी को तुम्हारे पास
नहीं आने देता भंवरे की तरह गुनगुनाकर।
जो तुम होती कविता का वीडियो - Video of Jo Tum Hoti Poem
अस्वीकरण (Disclaimer):
इस कविता की समस्त रचनात्मक सामग्री रमेश शर्मा की मौलिक रचना है। कविता में व्यक्त विचार, भावनाएँ और दृष्टिकोण लेखक के स्वयं के हैं। इस रचना की किसी भी प्रकार की नकल, पुनर्प्रकाशन या व्यावसायिक उपयोग लेखक की लिखित अनुमति के बिना वर्जित है।
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Poetry
