Mera Ghar Kaunsa Hai Poem, इसमें मेरा घर कौनसा है शीर्षक से एक लड़की के पीहर और ससुराल के बीच के जीवन को भावनापूर्ण तरीके से बताने की कोशिश की गई है।
मेरा घर कौनसा है कविता के बोल - Lyrics of Mera Ghar Kaunsa Hai Poem
बचपन से यही सुना है कि मैं इस घर में पराई हूँ
मैं तो बिना वजूद की एक नादान परछाई हूँ
मुझे यही भ्रम रहा कि मैं तो घर के कोने कोने में समाई हूँ
कचोटता मन और चिढ़ाते हुए घर को देखकर
दिल यही पूछता है कि मेरा घर कौनसा है?
बचपन में जब भाई के साथ घर में खेलती हूँ
कही अनकही, देखी अनदेखी परिस्थितियाँ झेलती हूँ
मुझे रखा जाता है एक अमानत की तरह संभालकर
अपने आप को एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी के रूप में देखकर
दिल यही पूछता है कि मेरा घर कौनसा है?
खाने पीनें से लेकर पढ़ने लिखने में अंतर
भाई हो जाता है बिना पूछे छूमंतर
मुझे हर जगह जाना पड़ता है पूछकर
हर जगह एक अजीब और छुपा हुआ सा पहरा महसूस कर
दिल यही पूछता है कि मेरा घर कौनसा है?
लड़कपन बीतने लगा, जैसे जैसे उम्र बढ़ने लगी
घरवालों के मन में कई परेशानियाँ भी घर करने लगी
कई लोग सचेत करने लगे हैं कि
बेटी होती है पराया धन, बंद तिजोरी की तरह
यह बात सुनकर और तड़पकर
सीने में एक लम्बी साँस भरकर
दिल यही पूछता है कि मेरा घर कौनसा है?
जैसे जैसे मैं सयानी होने लगी
बंदिशों की एक नई कहानी होने लगी
जमाने की चिंता और पड़ोसियों का डर बढ़ने लगा
अधछलके आँसुओं से भीगे तकिये में मुँह छिपाकर
दिल यही पूछता है कि मेरा घर कौनसा है?
फिर एक वक्त वो भी आया जब मेरा विवाह हुआ
सबको देखकर ऐसा लगा कि जैसे कर्तव्यों का पूर्ण निर्वाह हुआ
जैसे एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी आज पूरी हुई
“हमें न भूल जाना अपने घर जाकर” ये सुनकर
दिल यही पूछता है कि मेरा घर कौनसा है?
ससुराल में पहुँच कर अपने घर को निहारा
ढूंढने लगी थी अपनापन और सहारा
पीहर जाने पर यही कहा जाता है कि “बहु अपने घर जा रही है”
ये बात सुनकर, समझते हुए भी नासमझ बनकर
दिल यही पूछता है कि मेरा घर कौनसा है?
शायद औरत का अपना कोई वजूद नहीं होता
तभी तो जन्म से लेकर मृत्यु तक, त्रिशंकु की भाँति
पीहर और ससुराल के बीच लटकती रहती है
“तेरा घर वो है” यही एक बात बार बार सुनकर
दिल यही पूछता है कि मेरा घर कौनसा है?
जिस घर में बीस पच्चीस साल जब बिताए हों
जहाँ सब एक वृक्ष की अलग अलग शाखाएँ हों
फिर वृक्ष के लिए सभी शाखाएँ एक समान क्यों नहीं होती
सिर्फ एक तरह की शाखा को जिम्मेदारी और पराया धन देखकर
दिल यही पूछता है कि मेरा घर कौनसा है?
मेरा घर कौनसा है कविता का वीडियो - Video of Mera Ghar Kaunsa Hai Poem
अस्वीकरण (Disclaimer):
इस कविता की समस्त रचनात्मक सामग्री रमेश शर्मा की मौलिक रचना है। कविता में व्यक्त विचार, भावनाएँ और दृष्टिकोण लेखक के स्वयं के हैं। इस रचना की किसी भी प्रकार की नकल, पुनर्प्रकाशन या व्यावसायिक उपयोग लेखक की लिखित अनुमति के बिना वर्जित है।
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Poetry
