Ek Cup Chai Phir Se Piyun Poem, इसमें झीलों के शहर उदयपुर में नब्बे के दशक में बी एन कॉलेज की स्टूडेंट लाइफ और दोस्तों के साथ बिताए समय को याद किया है।
एक कप चाय फिर से पीऊँ कविता के बोल - Lyrics of Ek Cup Chai Phir Se Piyun Poem
उदयपुर मेरी जन्मस्थली नहीं, विद्यास्थली रही है
इस जैसा दूसरा शहर पूरी दुनिया में कहीं नहीं है
बहुत सीधे, सादे, भोले है लोग यहाँ के
रखते है सभी को अपने दिल में छुपा के
पर फिर भी, बीते दिन सभी को याद आते हैं
ये दिन अगर कॉलेज के हों, तो बहुत तड़पाते हैं
आँखों के सामने पुराना मंजर घूम जाता है
पल दो पल के लिए मन खुशी से झूम जाता है
बचपन के दोस्तों और परिवार के बिन
कॉलेज में था जब मेरा पहला दिन
दिल था थोड़ा उदास और थोड़ा सा खिन्न
लगता था, कैसे बीतेंगे मेरे ये पल छिन
कुछ दिन बीते, धीरे-धीरे मन बदलने लगा
उदासी ढलने लगी और दिल मचलने लगा
नए यारों के साथ दूर होने लगी तनहाई
उदयपुर की आबो हवा मेरे मन में समाई
दिन कॉलेज में और शाम को फतहसागर की पाल
यारों के साथ इधर उधर घूमते फिरते करते धमाल
पाल के चारों तरफ झुण्ड में बाइक से घूमना
बेफिक्र होकर इधर उधर, कहीं पर भी झूमना
पाल पे बैठे-बैठे हाथों से चाय का इशारा
चाय में देरी बिलकुल ना थी गवारा
किसी के हाथों में होता था भुना हुआ भुट्टा
कोई मारता था छुपा कर सिगरेट का सुट्टा
कई बार यहीं पर दिख जाते थे गुरुदेव हमारे
वो हमें निहारे हम उन्हें निहारे
गुरु शिष्य दोनों नजरे बचाकर अनदेखा कर जाते
अगले दिन क्लास में इशारों में पूरा किस्सा दोहराते
सहेलियों की बाड़ी में सहेलियों को तकना
ना जाने क्यों, दूर तलक पीछे पीछे चलना
पलटकर देखे जाने पर अचानक से रुकना
झुककर जूते की डोरी को बेवजह कसना
गुलाब बाग की मस्ती और पिछोला का जोश
गन्ने के रस का बड़ा गिलास उड़ाता था होश
चेतक सिनेमा की फिल्में और स्वप्नलोक का जुनून
कई बार अशोका में भी मिलता स्वप्नलोक सा सुरूर
कंधे पर एप्रिन और मदमस्त हाथी सी चाल
यारों का साथ और रुतबा बनता था ढाल
बिना पैसे दिए टेम्पो पर लटकने का खुमार
चाय की टपरी पे गप-शप में सभी होते शुमार
सिटी पैलेस, गुलाब बाग में विदेशियों को देखना
टूटी फूटी अंग्रेजी में उल्टा-सीधा कुछ भी फेंकना
उदयापोल, सूरजपोल और देहली गेट का नजारा
अब सिर्फ यादें है, बहुत बरसों से ना देख पाया दुबारा
जो गुजर गया वो एक सुन्दर सपना था
मेरा बी एन कॉलेज और उदयपुर सब अपना था
जहाँ मिला अमिट प्यार और अपनापन
उसी चाहत में आज भी तड़पता है मेरा मन
उम्र के साथ कई दोस्तों के ओहदे भी बड़े हो गए हैं
पैसे की चाहत और दुनियादारी के मसले खड़े हो गए हैं
मेरे दोस्तों को पुरानी जिंदगी याद तो आती होगी
सालों में ही सही कभी-कभी तो आँखें भिगाती होगी
फतेहसागर, सुखाडिया सर्किल, सब के सब वहाँ है
मगर मेरे कॉलेज के यार न जाने कहाँ है
बहुत बार दिल करता है कि वो पल फिर से जीऊँ
उन्हीं दोस्तों के साथ एक कप चाय फिर से पीऊँ
एक कप चाय फिर से पीऊँ
एक कप चाय फिर से पीऊँ
कॉलेज के सभी दोस्तों की दोस्ती के नाम
रमेश शर्मा का ये पैगाम
एक कप चाय फिर से पीऊँ कविता का वीडियो - Video of Ek Cup Chai Phir Se Piyun Poem
अस्वीकरण (Disclaimer):
इस कविता की समस्त रचनात्मक सामग्री रमेश शर्मा की मौलिक रचना है। कविता में व्यक्त विचार, भावनाएँ और दृष्टिकोण लेखक के स्वयं के हैं। इस रचना की किसी भी प्रकार की नकल, पुनर्प्रकाशन या व्यावसायिक उपयोग लेखक की लिखित अनुमति के बिना वर्जित है।
Tags:
Poetry
