यहाँ भगवान को भोग की जगह चढ़ाई जाती है केसर - Kesariyajii Rishabhdev Mandir, इसमें उदयपुर के पास केसरियाजी जैन मंदिर तीर्थ के बारे में जानकारी दी है।
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आज हम आपको एक ऐसी धार्मिक जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ पर भोग प्रसाद की जगह भगवान को केसर चढ़ाई जाती है।
इस जगह भगवान की आरती का समय आजकल की घड़ियों के हिसाब से नहीं होता है बल्कि पुराने समय की जलघड़ी के हिसाब से ही तय किया जाता है।
यह जगह जैन और सनातन धर्म को मानने वालों के अलावा स्थानीय भील आदिवासियों के लिए भी पूजनीय है और यहाँ पर सभी लोग अपने हिसाब से पूजा अर्चना करते हैं।
इस जगह पर मेवाड़ के महाराणा सामने के दरवाजे से प्रवेश ना करके हमेशा पिछले भाग में बने दरवाजे से अंदर आते थे।
तो चलिए आज हम इस धार्मिक और ऐतिहासिक जगह को करीब से देखकर इसके इतिहास को जानते हैं, आइए शुरू करते हैं।
केसरियाजी मंदिर की विशेषता और इतिहास - Features and history of Kesariyaji Temple
अरावली की पहाड़ियों के बीच में कोयल नदी के किनारे पर धुलेव नगर में मौजूद यह जगह एक मंदिर है जहाँ पर पहले जैन तीर्थंकर भगवान आदिनाथ या ऋषभदेव की काले पत्थर की प्रतिमा की पूजा की जाती है।
यहाँ पर आने वाले श्रद्धालु इन्हें केसर चढ़ाते हैं जिसकी वजह से इनका नाम केसरियाजी या केसरियानाथ पड़ गया। मंदिर में जैन, हिन्दू और स्थानीय भील आदिवासियों का आना जाना लगा रहता है।
जैन धर्म के लोग इन्हें प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव, हिन्दू धर्म के लोग इन्हें भगवान विष्णु का आठवाँ अवतार और स्थानीय आदिवासी लोग कालिया बाबा के रूप में पूजते हैं।
अपना-अपना धार्मिक स्थल बताते हुए इन तीनों के बीच कई बार पूजा और आराधना को लेकर विवाद की स्थिति बनकर बात कोर्ट तक भी पहुँची है।
ऐसा बताया जाता है कि महाराणा भूपाल सिंह के समय पाकिस्तान बनाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना ने भी कोर्ट में एक पक्ष की तरफ से केस लड़ा था।
यह तीर्थ भारत का एकमात्र ऐसा जैन तीर्थ है जिसमें कई समुदाय के लोगों की आस्था है और ये सभी लोग प्रचलित परंपरा के अनुसार दर्शन और पूजा करते हैं।
केसरियानाथ में मेवाड़ के महाराणा फतेह सिंह की बहुत आस्था थी, जिस वजह से इन्होंने प्रतिमा को हीरे से जड़ी सोने की आंगी धारण कराई, जो आज भी प्रतिमा पर मौजूद है।
इस मंदिर की एक खास बात यह भी है कि मेवाड़ के महाराणा इसमें कभी भी नक्कारखाने के पास वाले दूसरे दरवाजे से यानी सामने के दरवाजे से अंदर ना आकर गर्भगृह के पिछले हिस्से में बने दरवाजे से आते थे।
इसका कारण दरवाजे के ऊपर वाली छत में एक सिर से जुड़े पाँच शरीर वाली मूर्ति का होना है। ऐसी मूर्ति को छत्रभंग कहते हैं और ये राजा के लिए अशुभ मानी जाती थी।
केसरियाजी के मंदिर में गर्भगृह तक जाने के लिए कुल तीन दरवाजे बने हुए हैं। मंदिर का सबसे बाहरी दरवाजा एक नक्कारखाने के रूप में है जो इसका पहला द्वार है।
मंदिर के पहले दरवाजे पर ही भगवान की आरती के लिए जलघड़ी रखी हुई है। इसके आगे मंदिर की परिक्रमा करने के लिए पूरा रास्ता बना हुआ है जिसे बाहरी परिक्रमा कह सकते हैं।
परिक्रमा पथ पर मंदिर की बाहरी दीवारों पर कई कलात्मक प्रतिमाएँ मौजूद हैं जिनमें प्राचीन हिन्दू मंदिरों की तरह कुछ मूर्तियाँ कामकला से प्रेरित भी नजर आती हैं।
इस परिक्रमा में चारभुजा नाथ और भगवान शंकर के मंदिर भी बने हुए हैं। मंदिर के पहले द्वार के सामने ही दूसरा द्वार बना हुआ है जिसके दोनों तरफ काले रंग के हाथी मौजूद हैं। पास में यज्ञ के लिए हवन कुंड है।
दरवाजे के स्तंभों पर कई मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। अंदर की ताखों में ब्रह्मा और शिव की मूर्तियाँ मौजूद हैं। सीढ़ियों से ऊपर जाने पर ऊपर के मंडप में काले हाथी पर मरुदेवी की प्रतिमा है। हाथी पर कई प्राचीन लेख खुदे हुए हैं।
पास में ही भागवत कथा के लिए जगह है। यहाँ पर मंदिर का आंतरिक परिक्रमा पथ मौजूद है जिसमें बावन देवकूलिकाएँ बनी हुई हैं। इनमें बीच की गुंबद वाली तीन देवकुलिकाएँ नेमिनाथ जी की मानी जाती है।
एक जगह पत्थर की बनी मंदिर जैसी आकृति है जिस पर तीर्थंकरों की बहुत छोटी-छोटी प्रतिमाएँ बनी है। इसे गिरनारजी के बिम्ब के नाम से जानते हैं।
गर्भगृह के बाहर आंतरिक परिक्रमा पथ में चारों तरफ कलात्मक स्तम्भ ही स्तम्भ नजर आते हैं जिन पर कलात्मक मूर्तियाँ बनी हुई हैं। पूरे मंदिर में एक हजार से भी ज्यादा स्तम्भ बताए जाते हैं।
मंदिर के दूसरे दरवाजे के सामने ही तीसरा दरवाजा मौजूद है जिसके बाहर की ताखों में शिव और सरस्वती की प्रतिमा मौजूद है। यहाँ पर मौजूद मंडप में 9 स्तम्भ होने की वजह से इसे नौ चौकी कहा जाता है।
तीसरे द्वार से अंदर जाने पर अंतराल या खेला मंडप आता है जहाँ से भक्त अपने भगवान के दर्शन करते हैं। सामने भगवान का गर्भगृह है जिसमें भगवान ऋषभदेव की काले पत्थर की भव्य प्रतिमा स्थापित है।
पद्मासन में विराजित इस प्रतिमा की ऊँचाई साढ़े तीन फीट बताई जाती है। गर्भगृह के अंदर और बाहर की दीवारों पर कई कलात्मक मूर्तियाँ बनी हुई हैं।
भगवान ऋषभदेव की इस प्रतिमा को हजारों साल पुराना बताया जाता है। कहा जाता है कि ये प्रतिमा किसी समय रावण के पास थी जो अयोध्या होते हुए धुलेव नगर पहुँची।
यहाँ पर भगवान ऋषभदेव की यह प्रतिमा एक आदिवासी व्यक्ति धुला भील को वर्तमान मंदिर से 300 मीटर दूर एक महुवे के पेड़ के नीचे मिली थी।
अब इस जगह पर भगवान ऋषभदेव के चरण चिन्ह बने हैं और इसे पगल्याजी के नाम से जाना जाता है। केसरियाजी का मंदिर 1500 साल से भी ज्यादा पुराना माना जाता है।
शुरुआत में यह मंदिर कच्ची ईंटों से बना था जिसे बाद में डूंगरपुर के पारेवा पत्थर से दोबारा बनाया गया।
केसरियाजी के मंदिर में पूजा का समय प्राचीनकाल की एक विशेष घड़ी द्वारा निर्धारित किया जाता है। इस घड़ी को जल घड़ी कहा जाता है।
यह जल घड़ी मंदिर के पहले दरवाजे में घुसते समय लेफ्ट साइड में एक लकड़ी के बॉक्स में रखी हुई है। इस बॉक्स में तांबे के एक भगोने में पानी भरकर रखा जाता है। इस भगोने में तांबे का एक कटोरा रखा जाता है जिसके नीचे एक छेद होता है।
धीरे-धीरे इस कटोरे में पानी भरने लग जाता है और 24 मिनट में यह कटोरा पानी में पूरी तरह डूब जाता है। जैसे ही कटोरा पानी में डूबता है, गार्ड मंदिर में समय की सूचना दे देता है।
पुराने समय में 24 मिनट के समय को एक घड़ी, 8 घड़ियों का एक प्रहर और 4 प्रहर का एक दिन माना जाता था। इस तरह 24 घंटे यानी एक दिन में 8 प्रहर होते थे।
इस जल घटी के समय की अगर हम आज के समय की घड़ी से तुलना करें तो इन दोनों के समय में 45 मिनट का अंतर होता है।
केसरियाजी मंदिर कैसे जाएँ? - How to reach Kesariyaji Temple?
अब हम बात करते हैं कि केसरियाजी के मंदिर तक कैसे जाएँ? केसरियाजी का मंदिर उदयपुर अहमदाबाद नेशनल हाईवे पर ऋषभदेव में मौजूद है।
उदयपुर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग 65 किलोमीटर है। उदयपुर से सड़क की अच्छी कनेक्टिविटी है। यहाँ पर आप अपनी कार या बाइक से जा सकते हैं।
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इस तरह की नई-नई जानकारियों के लिए हमारे साथ बने रहें। जल्दी ही फिर से मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ, तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।
केसरियाजी मंदिर की मैप लोकेशन - Map location of Kesariya Ji Mandir
केसरियाजी मंदिर का वीडियो - Video of Kesariya Ji Mandir
केसरियाजी मंदिर की फोटो - Photos of Kesariya Ji Mandir
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
डिस्क्लेमर (Disclaimer)
इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
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Rajasthan-Tourism