Mitti Khandela Ri Poem, इसमें हजारों साल पुराने कस्बे खंडेला के गौरवशाली इतिहास के साथ इसकी कला और संस्कृति के बारे में कविता के माध्यम से जानकारी है।
मिट्टी खंडेला री कविता के बोल - Lyrics of Mitti Khandela Ri Poem
कांतली के तट पे बसी ये धरती,
इतिहास की खुशबू हर साँस में बसती।
बावड़ियों की गहराई में किस्से हैं छुपे,
खंडेला के लिए कई दिल है धड़कते।”
महाभारत का योद्धा यहाँ, खंड राजा का मान,
खंडस्य इला की धरती पे लिखी अमर पहचान।
शिशुपाल के वंशज ने जिस नगरी को बसाया,
वो खंडपुर से खंडेला बन, इतिहास में समाया।
नाग वंश के राजा धूसर ने शिव मंदिर बनवाया,
अर्धनारीश्वर के चरणों में दीपक जलाया।
खंडलेश्वर महादेव आज भी हैं गवाही,
सातवीं सदी से गूँजती शिव की वाहवाही।
मिट्टी खंडेला री... ओ मेरी धरती प्यारी,
तेरे कण-कण में छिपी है शौर्य की कहानी सारी।
तेरे किलों में गूँजता, वीरों का स्वर आज भी,
तेरी बावड़ियों में झलके, संस्कारों की लाज भी।
मिट्टी खंडेला री... ओ मेरी धरती प्यारी!
निर्बाणों का स्वाभिमान, ना झुके अकबर के आगे,
दिल्ली नजदीक थी, पर चले अपने रागे।
नाथू देव से पीपाजी तक, वीरों का ये सिलसिला,
रायसल ने लिखा इतिहास, बन गया जलजला।
बावन बावड़ियों वाला, वो खंडेला नगर निराला,
कालीबाय, सोनगिरी, मूनका हर नाम में उजाला।
जहाँ जल था जीवन, आज प्यासे हैं नयन,
पर यादों में अब भी गूँजता, वो मीठा बचपन।
गोटा का कारोबार था, चाँदी सा चमकता,
हर गली में हुनर था, हर दिल में दमकता।
पर वक्त बदला, रुख बदल गया,
समय का पहिया उल्टा चल गया।
मिट्टी खंडेला री... तू शौर्य की मिसाल,
तेरे आँगन में फूटा हर धर्म का कमल लाल।
करमेती बाई की भक्ति, जिनप्रभ सूरी का ध्यान,
तेरी मिट्टी में बसते हैं, हर युग के भगवान।
चार पुत्रों की कथा से, चार वंश निकले प्यारे,
बीजा, महेश, खांडू, सूंडा, समाजों के सहारे।
खंडेलवाल धाम में आज भी वो आस्था जलती,
जहाँ हर कुलदेवी मुस्काती, हर आत्मा पलती।
मिट्टी खंडेला री... तू अमर गाथा हमारी,
तेरे नाम से चलती हैं पहचानें सारी।
कांतली की लहरों में, पुरखों की यादें,
इस धरती के कण-कण में हैं, दिल की फरियादें।
जो खंडेला में जन्मा, वो दुनिया में कहीं भी जाए,
मगर उसके दिल में बस खंडेला ही गुनगुनाए…
मिट्टी खंडेला री... ओ मेरी धरती प्यारी,
मिट्टी खंडेला री... ओ मेरी धरती प्यारी।
मिट्टी खंडेला री कविता का वीडियो - Video of Mitti Khandela Ri Poem
अस्वीकरण (Disclaimer):
इस कविता की समस्त रचनात्मक सामग्री रमेश शर्मा की मौलिक रचना है। कविता में व्यक्त विचार, भावनाएँ और दृष्टिकोण लेखक के स्वयं के हैं। इस रचना की किसी भी प्रकार की नकल, पुनर्प्रकाशन या व्यावसायिक उपयोग लेखक की लिखित अनुमति के बिना वर्जित है।
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Poetry
