Mrityu Shayya Poem, इसमें मृत्यु शय्या कविता के माध्यम से इंसान के जीवन के अंतिम समय में मन में उठने वाली भावनाओं के बारे में जानकारी दी गई है।
मृत्यु शय्या कविता के बोल - Lyrics of Mrityu Shayya Poem
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे
मन बेचैन हो रहा है
मंथन कर रहा है कि जीवन भर
मैंने क्या पाया और क्या खोया
उसका हिसाब लगा रहा है
हिसाब सही नहीं लग पा रहा है
मन भूली बीती बातों को
सही सही नहीं तौल पा रहा है
सुख और दुःख के सारे पल
घूम-घूम कर सामने आ रहे हैं
न चाहते हुए भी
कातर आँखों से आँसू बहा रहे हैं।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे
कई हसरतें, कई उम्मीदें
मन को व्याकुल कर रही हैं
सोच रहा हूँ कुछ वक्त और मिलता तो
ये भी कर लेता, वो भी कर लेता
पर हसरतें और इच्छाएँ तो, कस्तूरी मृग जैसे हैं
जिनका खयाल तो आता है
पाने की लालसा होती है
और कभी पूरी नहीं हो पाती
लेकिन फिर भी मन उनके पीछे भागता है।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे
अभी भी मोह माया के मकड़जाल से
मुक्त नहीं हो पाया हूँ
सोच रहा हूँ अगर कुछ समय और मिल जाता तो
अपना लोक परलोक सुधार लेता
जन्म सफल हो जाता
परिजनों के लिए कुछ करता
सभी अधूरी तृष्णाओं को पूर्ण कर लेता
लेकिन फिर दिल में खयाल आता है
जब मैं कुछ करने में सक्षम था
तब कुछ भी करने की चाहत न थी
अब जब कुछ नहीं कर सकता
तब बहुत कुछ करना चाहता हूँ
क्या ये कुछ करने का जज्बा अभी पैदा हुआ है
या फिर कर्मों का फल पाने से मन घबरा रहा है क्योंकि
बचपन में सुना था कि चित्र-गुप्त कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं
जो जैसा कर्म करता है वैसा ही फल मिलता है।
मृत्यु शय्या पर लेटे लेटे
चित्त शांत क्यों नहीं है
किस बात की उधेड़बुन है
अकेलेपन का अहसास ड़रा रहा है
जीवन का खालीपन सता रहा है
जीवन की यात्रा अकेले ही करनी होती है
इंसान अकेला ही आता है और अकेला ही जाता है
अब समझ में आया है कि
जीवन तो नश्वर है
इस नश्वर जीवन का केंद्र, सिर्फ और सिर्फ ईश्वर है।
मृत्यु शय्या कविता का वीडियो - Video of Mrityu Shayya Poem
अस्वीकरण (Disclaimer):
इस कविता की समस्त रचनात्मक सामग्री रमेश शर्मा की मौलिक रचना है। कविता में व्यक्त विचार, भावनाएँ और दृष्टिकोण लेखक के स्वयं के हैं। इस रचना की किसी भी प्रकार की नकल, पुनर्प्रकाशन या व्यावसायिक उपयोग लेखक की लिखित अनुमति के बिना वर्जित है।
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Poetry
