Pakoda Rojgar Poem, इसमें पकौड़ा रोजगार नामक कविता के माध्यम से नेताओं द्वारा रोजगार के चुनावी वादों और पकौड़ा तलने को रोजगार बताने पर व्यंग्य किया है।
पकौड़ा रोजगार कविता के बोल - Lyrics of Pakoda Rojgar Poem
अपने जीवन को बनते देख जुआ,
नेताओं की इस सलाह से बहुत निराश आज का युवा,
कि पकौड़े तलना एक रोजगार है,
जो पकौड़े नहीं तल सकता, सही मायनों में वही बेरोजगार है।
जब से बेरोजगारी के नए उपायों में पकौड़ा दर्शन लागू हुआ,
तब बेरोजगारी का इलाज लगने लगा सिर्फ ईश्वर की दुआ,
नेताओं के तो भाषण ही उनके शासन बन जाते हैं,
सत्ता के मद में ये बेरोजगारों से सिर्फ पकौड़े तलवाते हैं।
ये नेतागण वादे करके क्यों मुकर जाते हैं?,
अपने किए हुए वादों को जुमला क्यों बतलाते हैं?,
ऐसा लगता है कि वादे करके मुकर जाना इनका जन्मसिद्ध अधिकार है,
तभी तो बेरोजगार, गरीब और आम आदमी का पूरा जीवन ही बेकार है।
रोजगार का वादा करके जिन्हें मँझधार में छोड़ दिया,
अपना इच्छित लक्ष्य पाकर बेरोजगारों से मुँह मोड़ लिया,
वादा था हर वर्ष करोड़ों नौकरियों का, कम से कम लाखों तो देते,
उम्मीद बनाये रखने के लिए कुछ और जुमले ही कह देते।
हुक्मरान के अनुचरों की अगुवाई में आज घर-घर पकौड़ा गान हो रहा है,
ऐसा लगता है कि पकौड़ा ही बेरोजगारों का भगवान हो रहा है,
वह दिन दूर नहीं जब पकौड़ा रोजगारेश्वर जैसी श्रद्धा पाएगा,
रोजगार के पूरक श्रद्धेय पकौड़े को फिर कोई कैसे खाएगा?
गलियों से संसद तक “पकौड़ा रोजगार” का गुणगान बढ़ा है,
ऐसा लगता है कि आम आदमी पकौड़ा ज्ञान के लिए ही खड़ा है,
कोई सभा में तो कोई कहीं ओर पकौड़ा भक्ति में लीन हुआ,
सभी भक्तजनों का मन पकौड़ा चालीसा में पूरा तल्लीन हुआ।
पकौड़े तलने वालों की शान में चार चाँद लगने लगे,
पकौड़े की रेहड़ी लगाने वालों से रातों रात लोग जलने लगे,
पकौड़ा टीवी और पकौड़ा न्यूज पर हर जगह इनके किस्से चलने लगे,
समझदार है ये लोग जो शिक्षा में वक्त बिगाड़े बिना पकौड़े तलने लगे।
शायद जल्द ही “पकौड़ा रोजगार मंत्रालय” और “पकौड़ा रोजगार मंत्री” सामने आएँ,
कई किस्म के पकौड़े तलवाकर “पकौड़ा रोजगार मंत्री” बेरोजगारों के हाथ थामते जाएँ,
बेरोजगारों को केवल एक शर्त पर बाँटा जाएगा “पकौड़ा रोजगार लोन”,
केवल “ड़िजिटल लाइफ” के साथ आपको करना होगा एक फोन।
बेरोजगारों की सत्ता प्रमुखों से यही इल्तिजा है कि शिक्षा का मखौल ना उड़ाएँ,
हर वर्ष करोड़ों रोजगार देने के जो वादे किए हैं बस उन्हें निभाएँ,
रोजगार के अवसर ना देकर, अपनी नाकामियों को पकौड़ों के पीछे ना छिपाएँ,
बेरोजगारों को रोजगार चाहिए, उनसे रोजगार के नाम पर पकौड़े ना तलवाएँ।
पकौड़े तलने के लिए उच्च शिक्षा की जरूरत नहीं होती है,
उच्च शिक्षित युवा जब पकौड़े तलता है तो ज्ञान की देवी रोती है,
पकौड़े तलना कोई गर्व की बात नहीं, यह तो पेट पालने की मजबूरी है,
अगर इसमें गर्व नजर आता है, तो क्या, आज से नेता पुत्रों के लिए पकौड़े तलना जरूरी है?
पकौड़ा रोजगार कविता का वीडियो - Video of Pakoda Rojgar Poem
अस्वीकरण (Disclaimer):
इस कविता की समस्त रचनात्मक सामग्री रमेश शर्मा की मौलिक रचना है। कविता में व्यक्त विचार, भावनाएँ और दृष्टिकोण लेखक के स्वयं के हैं। इस रचना की किसी भी प्रकार की नकल, पुनर्प्रकाशन या व्यावसायिक उपयोग लेखक की लिखित अनुमति के बिना वर्जित है।
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Poetry
