Zindagi Ki Ret Poem, इसमें जिंदगी की रेत नामक कविता के माध्यम से इंसान की जवानी के बीते हुए दिनों की याद और कुछ कर पाने की कसक को बताने की कोशिश है।
जिंदगी की रेत कविता के बोल - Lyrics of Zindagi Ki Ret Poem
मैं चला जाऊँ
दुनिया से एक दिन यूँ ही
तो क्या होगा बताओ
कौन याद रखेगा मुझे?
रोएँगे चंद लोग थोड़ी देर
फिर सब अपने सफ़र में खो जाएँगे
कह देंगे, ये तो थी
बस भगवान की ही मर्ज़ी।
कुछ दिन बाद सब वैसा ही होगा
जैसा मेरे जाने से पहले था
ये दुनिया घूमती रहती है
कोई किसी के लिए कहाँ रुकता है…
इंसान का अस्तित्व तो
क्षणभर की एक छाया है
जिसे हम समझ न पाते
जब तक साँस साथ निभाती है।
यादों का बोझ उठाते-उठाते
दिल चुपचाप रो जाता है
और जिंदगी की रेत
हथेलियों से फिसलती जाती है…
पुराने ज़माने सालते हैं
बीता वक्त सताता है
जो पलों की मुट्ठी मैंने भींची
वही सबसे पहले फिसल जाता है।
रास्तों में बस इक मुसाफ़िर था मैं
धड़कनों में पल भर की आहट था
लोग आँसू पोंछकर आगे बढ़ते हैं
यही इस दुनिया का दस्तूर सदा।
इंसान का अस्तित्व तो
क्षणभर की एक छाया है
जिसे हम समझ न पाते
जब तक साँस साथ निभाती है।
यादों का बोझ उठाते-उठाते
दिल चुपचाप रो जाता है
और जिंदगी की रेत
हथेलियों से फिसलती जाती है…
काश समय कहीं ठहर जाता
मैं खुद को एक बार फिर जी लेता
जो बातें दिल में दबी रह गईं
वो सब आकाश में कह देता।
हर कहानी एक दिन पूरी होती है
हर सफ़र चुपचाप थम जाता है
हम बस हवा में घुलकर
एक याद बनके रह जाते हैं…
जिंदगी आई, चली भी गई
बिना शोर किए, बिना कहे
और मैं बस देखता रह गया
कैसे सबकुछ दूर… खोता गया…
इंसान का अस्तित्व तो
क्षणभर की एक छाया है
जिसे हम समझ न पाते
जब तक साँस साथ निभाती है।
यादों का बोझ उठाते-उठाते
दिल चुपचाप रो जाता है
और जिंदगी की रेत
हथेलियों से फिसलती जाती है…
जिंदगी की रेत कविता का वीडियो - Video of Zindagi Ki Ret Poem
अस्वीकरण (Disclaimer):
इस कविता की समस्त रचनात्मक सामग्री रमेश शर्मा की मौलिक रचना है। कविता में व्यक्त विचार, भावनाएँ और दृष्टिकोण लेखक के स्वयं के हैं। इस रचना की किसी भी प्रकार की नकल, पुनर्प्रकाशन या व्यावसायिक उपयोग लेखक की लिखित अनुमति के बिना वर्जित है।
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Poetry
